loader

मोदी सरकार की वजह से पाकिस्तान की ओर मुखातिब बांग्लादेश?

अमित शाह यह भूल रहे थे कि वह देश के गृह मंत्री भी हैं और उनका बयान भारत सरकार का आधिकारिक बयान माना जाएगा। वह यह भी भूल रहे थे कि बार-बार बांग्लादेशियों को कोस कर ढाका को नाराज़ कर रहे थे, वहाँ सत्ता में बैठे हुए लोगों के मन मे भारत-विरोधी भावनाएं भर रहे थे। वह बांग्लादेश के लोगों में भारत के प्रति नफ़रत भर रहे थे। 
प्रमोद मल्लिक
नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति और कूटनीति की नाकामी इस तरह जाहिर हो रही है कि अब बांग्लादेश जैसे पुराने व पारंपरिक मित्र देश भी भारत के ख़िलाफ़ हो रहे हैं और पाकिस्तान जैसे देशों की ओर मुखातिब हो रहे हैं, जिससे भारत की हमेशा ही तनातनी रही है। 
यह ज़्यादाआश्चर्यजनक, दुखद और परेशान करने वाला इसलिए है कि बांग्लादेश पाकिस्तान की ओर उस समय झुक रहा है जब वहाँ आवामी लीग की सरकार है और शेख हसीना प्रधानमंत्री हैं, जो भारत के नज़दीक समझी जाती हैं और बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में उन्हें भारत-परस्त कह कर चिढाया जाता है।
देश से और खबरें
यह वही बांग्लादेश है, जिसने भारत की मदद से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हथियारबंद युद्ध लड़ कर आज़ादी हासिल की थी। यह वही शेख हसीना हैं, जिनके पिता शेख मुजीब उर रहमान सेना के तख़्तापलट में मारे गए थे और उसके बाद स्वयं हसीना ने भारत में लंबे समय तक रह कर अपनी जान बचाई थी।

इमरान-हसीना बातचीत

लेकिन बदले हुए समय में यही बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ खड़ा दिख रहा है। यह बात इसलिए उठ रही है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने शेख हसीना से फ़ोन पर लंबी बातचीत की। बातचीत के बाद लंबे 8 पैराग्राफ़ के प्रेस बयान में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इमरान ख़ान ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भी बातचीत की और कश्मीर समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने अपने छोटे 3 पैराग्राफ़ के प्रेस बयान में जम्मू-कश्मीर की कोई चर्चा नहीं की और कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ कोरोना और दूसरे मुद्दों पर बात हुई।

पाकिस्तान की ओर झुका बांग्लादेश?

बांग्लादेश ने अपनी प्रेस रिलीज़ में जम्मू-कश्मीर का कोई जिक्र नहीं किया, यह नई दिल्ली के लिए राहत की बात हो सकती है, पर उसने खुले तौर पर बातचीत से इनकार भी नहीं किया है। मूल सवाल यह है कि ढाका इस तरह पाकिस्तान की ओर क्यों झुक रहा है?
इसकी शुरुआत असम विधानसभा चुनाव के समय से ही हुई। गृह मंत्री और सत्तारूढ़ बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव प्रचार करते हुए बांग्लादेश से आए हुए शरणार्थियों और दूसरे लोगों पर तीखा हमला बोला था।

वोट के लिए?

गृह मंत्री यह एलान करते हुए बांग्लादेश सरकार के बारे में कुछ नहीं कह रहे थे। यह भी साफ़ था कि वह इसके ज़रिए बहुसंख्यक हिन्दू समाज को रिझाने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें यह संकेत दे रहे थे कि बांग्लादेश से आए हुए मुसलमानों को बाहर कर दिया जाएगा। 
अमित शाह यह भूल रहे थे कि वह देश के गृह मंत्री भी हैं और उनका बयान भारत सरकार का आधिकारिक बयान माना जाएगा। वह यह भी भूल रहे थे कि बार-बार बांग्लादेशियों को कोस कर ढाका को नाराज़ कर रहे थे, वहाँ सत्ता में बैठे हुए लोगों के मन मे भारत-विरोधी भावनाएं भर रहे थे।
वह बांग्लादेश के लोगों में भारत के प्रति नफ़रत भर रहे थे। यह बांग्लादेशियों की वह पीढ़ी है जो 1971 के मुक्ति युद्ध के समय बहुत ही छोटी उम्र की थी या जिसका जन्म ही नहीं हुआ था। उन्हें उनकी आज़ादी में भारत की भूमिका न याद है न ही भारत से वह लगाव है। ऐसे लोगों के सामने भारत का गृह मंत्री बांग्लादेश पर हमले कर रहा था, भले ही उसकी वजह उसकी घरेलू राजनीति हो।

एनआरसी-सीएए से नाराज़गी बढ़ी?

बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जो एनआरसी बना, उसे लागू करने की कोशिश में भी बांग्लादेशियों पर लगातार हमले हुए। इसमें बीजेपी की मुख्य भूमिका थी। 

उसके बाद बीजेपी सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून पारित कराया, जिसमें यह व्यवस्था की गई है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान ने आए हुए हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, जैन, सिख और पारसी धर्म के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसमें मुसलमानों को छोड़ दिया गया और मोदी सरकार ने इसके पक्ष में लोकसभा के अंदर और बाहर ज़बरदस्त दलीलें दीं।
मुसलिम बहुसंख्यक आबादी वाले बांग्लादेश में इससे बहुत ही बुरा संकेत गया, लोगों को लगा कि भारत उसके ख़िलाफ़ साजिश कर रहा है।

रिश्ते हुए तनावपूर्ण

इससे भारत और बांग्लादेश के संबंध तनावपूर्ण हुए। ढाका ने बाहरी रूप से इसे भारत का आंतरिक मामला कहा, पर वह अंदर ही अंदर नाराज़ था। 
यह नाराज़गी इस रूप में प्रकट हुई कि उसके विदेश मंत्री की भारत यात्रा अंतिम समय टाल दी गई और उनके व्यस्त होने का बहाना गढ़ा गया। बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा भी टाल दी गई।
यह बहुत साफ़ हो गया था कि बांग्लादेश भारत से नाराज़ है। लेकिन उसे समझाने-बुझाने की कोई कोशिश नहीं की गई।

क्या कहा था थल सेना प्रमुख ने?

इसी तरह भारतीय थल सेना के तत्कालीन प्रमुख और अब चीफ़ ऑफ डीफेंस स्टाफ़ जनरल बिपिन सिंह रावत ने भी बांग्लादेश पर ज़ोरदार हमला किया था। वह किसी सेनाध्यक्ष की टिप्पणी के रूप में तो ग़लत थी ही, तथ्यात्मक रूप से भी ग़लत थी।
जनरल रावत ने असम और वहाँ रहने वाले मुसलमानों के बारे में घोर आपत्तिजनक बयान दिया था। उसकी काफ़ी आलोचना भी हुई थी। उन्होंने एक सेमिनार में भाषण देते हुए कहा था कि 'असम की जनसंख्या पूरी तरह बदल चुकी है।' उनके कहने का आशय यह था कि 'जहाँ पहले हिन्दू बहुमत में थे, वहाँ मुसलमानों की आबादी ज़्यादा है। पहले पाँच जि़लों में ऐसा था, फिर आठ और नौ ज़िलों में यह हो गया। इसे बदला नहीं जा सकता।'

बांग्लादेश का प्रॉक्सी वॉर?

सेनाध्यक्ष ने असम में मुसलमानों की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए इसे देश और राज्य के लिए ख़तरनाक क़रार दिया था। उनका यह भी मानना था कि यह बांग्लादेश का 'प्रॉक्सी वॉर' है।
जनरल साहब ने कहा, ‘बांग्लादेश यह सुनिश्चित करेगा कि असम के इस इलाक़े पर उसके भेजे लोग काबिज हो जाएं।’ साफ़ है, वे मुसलमानों की बढ़ती तादाद से चिंतित हैं।
कुल मिला कर भारत में बांग्लादेश-विरोधी, मुसलमान-विरोधी वातावरण बनाया गया, जो शुद्ध रूप से सत्तारूढ़ दल के फ़ायदे के लिए था, और जिससे देश को नुक़सान हो रहा था। इसे दुरुस्त करने की कोई कोशिश अब तक नहीं की गई है।

शेख हसीना का संकेत

इन तमाम बातों से चिढ़ी और घरेलू राजनीति में भारत-परस्त होने का तमगा ली हुई शेख हसीना इमरान ख़ान के साथ बात कर भारत को यह संकेत देना चाहती है कि दिल्ली बांग्लादेश को हलके में न ले। पिछले कुछ समय से पाकिस्तान बांग्लादेश को मनाने की कोशिश में लगा हुआ है और उसे धीरे-धीरे कामयाबी मिलने लगी थी। 

बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सीधा व्यापार संबंध नहीं था, जो भारत की बेरुखी के कारण बन गया। जब भारत ने बांग्लादेश को व्यापारिक छूटों में कटौती करनी शुरू की और व्यापार अंसतुलन को कम करने के उसके आग्रह पर जोर नहीं दिया तो पाकिस्तान की ओर रुख किया। नतीजा सबके सामने है।
सवाल यह है कि इसके आगे क्या रास्ता बचा है? क्या अभी भी नरेंद्र मोदी सरकार अपनी विदेश नीति को सुधारने, लचीला बनाने पड़ोसियों के साथ उदारता से पेश आने के पुराने रास्ते पर चलेगी या उन्हें 'ठीक करने' की नीति अपनाएगी?
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रमोद मल्लिक

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें