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अंडमान निकोबार में भारत की किलेबंदी से बदल जाएगा सामरिक समीकरण?

चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अपनी किलेबंदी शुरू कर दी है। वहाँ अतिरिक्त सैन्य बल भेजा जा रहा है, नौसेना अपने युद्ध पोत वहाँ भेजने की तैयारी में है। ढाँचागत सुविधाएँ विकसित करने की दीर्घकालिक योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एक ख़बर में कहा है कि चीन के बढ़ते दबदबे को देखते हुए यह सोचा जा रहा है कि अंडमान द्वीप समूह में भारत भी अपना सैनिक जमावड़ा करे और सैन्य बुनियादी सुविधाएँ विकसित करे।
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उपेक्षित सामरिक क्षेत्र

यह स्वाभाविक है कि भारत अपने इस उपेक्षित पड़े द्वीप समूह पर ध्यान दे और वहाँ अपनी सैन्य मौजूदगी दर्ज ही नहीं करे, उसे मजबूत करे। 
योजना बन रही है कि भारत अंडमान निकोबार में युद्ध पोत, लड़ाकू जहाज़ और पनडुब्बियाँ तैनात करे ताकि ज़रूरत पड़ने पर तुरन्त इस्तेमाल किया जा सके। यह भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत भी होगा।

चीन को घेरने की नीति?

अंडमान निकोबार में युद्ध पोतों की तैनाती से चीन को घेरा जा सकता है क्योंकि यह मलक्का स्ट्रेट से बहुत दूर नहीं है। चीन के दक्षिण में है मलक्का स्ट्रेट। चीन के लिए यह दो कारणों से बेहद अहम है। एक है व्यावसायिक हित और दूसरा है सामरिक रणनीतिक कारण।
मलक्का स्ट्रेट वह इलाक़ा है जिससे हर साल तकरीबन 70 हज़ार मालवाही जहाज़ गुजरते हैं जो चीन ही नहीं, मलेशिया, इंडोनेशिया, जापान, फिलीपीन्स, ब्रूनेई, वियतनाम और दूसरे देशों के लिए सामान लाते हैं और इनके उत्पाद पूरी दुनिया खास कर अफ्रीका और यूरोप तक ले जाते हैं। चीन के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण इसलिए है कि यह सबसे बड़ा निर्यातक है और इस मलक्का स्ट्रेट के बिना निर्यात की कल्पना नहीं की जा सकती।
चीन ने इस स्ट्रेट के विकल्प के रूप में ही बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) की कल्पना की है जिससे उसे यूरोप तक पहुँचने का थलमार्ग यानी सड़क मार्ग मिल जाए।

मलक्का स्ट्रेट का सामरिक महत्व

लेकिन इससे बड़ी वजह है सामरिक रणनीति। इस इलाक़े पर नज़र डालने से साफ़ है कि यह दक्षिण चीन सागर से बहुत दूर नहीं है। दक्षिण चीन सागर चीन की सुरक्षा के लिए बेहद अहम है। मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपीन्स, वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान वे देश हैं जो इस सागर से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। इसमें से ज़्यादातर देशों के साथ चीन के सीमा विवाद भी हैं।
चीन का मानना है कि अमेरिका उसे रोकने के लिए चीन सागर में अपनी मोर्चेबंदी कर रहा है। भारत को अमेरिका ने अपने पक्ष में मिला लिया है, दोनों अपने-अपने हितों के लिए एक दूसरे के साथ हैं और चीन के ख़िलाफ़ हैं।
बीजिंग का मानना है कि चीन सागर से भारत को कोई मतलब नहीं है पर वह सिर्फ उसे रोकने के लिए अमेरिका के साथ मिला हुआ है, उसका रणनीतिक सहयोगी बन गया है। 

क्वाडिलैटरल स्ट्रैटेजिक डायलॉग

इसी नीति के तहत भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया ने मिल कर क्वाडिलैटरल स्ट्रैटिजिक डायलॉग (क्वैड) नामक संगठन बनाया है। एक बार फिर इस इलाक़े पर नज़र डालने की ज़रूरत है।

दक्षिण चीन सागर से सीधे और इंडोनेशिया-पूर्व तिमोर को पार करने के बाद ही ऑस्ट्रेलिया है। ऑस्ट्रेलिया के डार्विन बंदरगाह पर अमेरिकी युद्ध पोत की तैनाती पहले से है। वहाँ से अमेरिकी लड़ाकू जहाज़ मिनटों में चीन के तटीय इलाके में पहुँच सकते हैं।  अब यदि इसमें अंडमान निकोबार द्वीप समूह भी जुड़ जाता है तो कल्पना कीजिए। 
चीन को दक्षिण चीन सागर में पश्चिम में वियतनाम जैसे पुराने विरोधी, पूर्व में जापान और दक्षिण पूर्व में ऑस्ट्रेलिया और उसके पहले अंडमान निकोबार द्वीप समूह में चुनौतियां मिलेंगी।
अंडमान निकोबार द्वीप समूह अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है कि वह चीन से कुछ नॉटिकल मील की दूरी पर ही है, वहाँ से ऑस्ट्रेलिया बहुत दूर नहीं है।
अंडमान निकोबार की किलेबंदी मलक्का स्ट्रेट को ब्लॉक करने के काम आ सकती है और दक्षिण चीन सागर को बंद करने के काम भी आ सकती है।
अंडमान निकोबार में भारत के साथ दिक्क़त यह है कि इस ओर अब तक किसी का ध्यान नहीं जाने के कारण यहाँ कोई सैन्य सुविधा नहीं है। भारत को इसे विकसित करना होगा और इस पर अरबों-खरबों रुपए का खर्च बैठेगा, कई साल लगेंगे।क्या भारत इसके लिए तैयार है?
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प्रमोद मल्लिक

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