नेपाली नेताओं से मिलीं चीनी राजदूत
नेपाल में चीनी राजदूत होऊ यांकी गुरुवार को काफी मशक्क़त के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल उर्फ़ प्रचंड से मुलाक़ात करने में कामयाब हुईं। यांकी उनसे मिलने की कोशिश कई दिनों से कर रही थीं, लेकिन प्रचंड उनसे मिलना नहीं चाहते थे और लगातार टाल रहे थे।सवाल यह है कि चीनी राजदूत नेपाल के सत्तारूढ़ दल के नेताओं से लगातार क्यों मिल रही हैं और उनसे क्या बात कर रही हैं। आधिकारिक स्तर की बातचीत या दो देशों के रिश्तों पर बातचीत तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से होती है।
ओली को बचाना चाहता है चीन?
दरअसल ओली ज़बरदस्त सत्ता संघर्ष में फँसे हुए हैं। एक तरफ वह हैं तो दूसरी तरफ उन्हें चुनौती देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड हैं। कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के 45 सदस्यों में 33 ओली के ख़िलाफ़ हैं और उनका इस्तीफ़ा चाहते हैं। पर ओली अड़े हुए हैं और किसी कीमत पर इस्तीफ़ा देने को तैयार नहीं है।क्या कहा था ओली ने?
पर दोनों गुटों के बीच लड़ाई का मौजूदा कारण या कहें कि ट्रिगर प्रधानमंत्री का वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें भारत पद से हटाना चाहता है।ओली के कहने का मतलब यह था कि नक्शा विवाद में कड़ा रुख अपनाने और नेपाली इलाक़ों को हर हाल में भारत से वापस लेने के उनके रवैये की वजह से ही नई दिल्ली उन्हें पद से हटाना चाहती है और इसमें उनकी पार्टी के लोग उसके साथ हैं।
ख़ुद कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को यह अच्छा नहीं लग रहा है कि पार्टी के अंदरूनी मामले में किसी दूसरे देश की दिलचस्पी खुले आम दिखे, भले ही वह कम्युनिस्ट देश ही क्यों न हो।
चीन से एनसीपी की नज़दीकी!
ओली और प्रचंड दोनों ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नज़दीक हैं, जिसकी वजह रणनीतिक ही नहीं, वैचारिक भी है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि नेपाली कम्युनिस्ट यह नहीं भूल सकते कि पंयायत प्रणाली के ख़िलाफ़ विद्रोह और हथियारबंद संघर्ष में भारत ने नेपाल सरकार का साथ दिया था, वह कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ था। यह तो चीन था जिसने नेपाली विद्रोहियों की हर तरह से मदद की थी।हालांकि यह भी सच है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नज़र में यह वास्तविक अर्थों में कम्युनिस्ट क्रांति नहीं, बल्कि बुर्जुआ सत्ता परिवर्तन ही साबित हुआ। नेपाल में भारत जैसी बहुदलीय प्रणाली ही कायम हुई, वहां 'सर्वहारा का अधिनायकत्व' कायम नहीं हुआ। इसके बावजूद चीन ने कम्युनिस्टों का साथ रणनीतिक कारणों से दिया था।
भारत का समर्थन, भारत का विरोध
प्रचंड और ओली दोनों ही अलग-अलग समय में भारत-समर्थक और भारत-विरोधी दोनों रह चुके हैं। ओली एक समय इतने ज़बरदस्त भारत समर्थक समझे जाते थे कि उनकी वजह से पार्टी टूट का शिकार हुई थी। अब वही ओली भारत-विरोधी इसलिए बने हुए हैं कि नेपाल में भारत की तरह ही नए किस्म का राष्ट्रवाद जन्म ले रहा है। इस नए नेपाली राष्ट्रवाद में भारत का विरोध ज़रूरी है।चीन नेपाल की सत्ता में ऐसे आदमी को ही बनाए रखना चाहता है जो ज़ोरदार भारत विरोधी हो। भारत के साथ चीन के हालिया तनातनी के दौर में ओली प्रचंड से बेहतर विकल्प हैं।
ओली का विरोध
लेकिन चीन की दिक्क़त यह भी है कि ओली अपनी पार्टी में बुरी तरह अलोकप्रिय हो चुके हैं, पार्टी का बड़ा वर्ग उनके ख़िलाफ़ है, उन्हें पद से हटाना चाहता है।
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