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एससीओ बैठक में न्योता: भारत ने पाक के साथ बातचीत के दरवाज़े खोले!

संघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी एससीओ की बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को भी निमंत्रण देने का फ़ैसला कर भारत ने एक तरह से पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत के लिए बंद दरवाज़े खोल दिए हैं। एससीओ की बैठक दिल्ली में होने वाली है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि इसमें सभी सदस्य देशों और ऑब्जर्वर देशों को न्योता जाएगा। इसका मतलब है कि पाकिस्तान को भी न्योता जाएगा और इसमें पाकिस्तान के प्रतिनिधि के रूप में या तो इमरान ख़ान या फिर कोई दूसरा मंत्री शामिल होगा। जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 में फेरबदल के बाद पाकिस्तान के साथ संबंध और भी ख़राब हो गए हैं, लेकिन अब इसमें कुछ सुधार की उम्मीद है। 

हालाँकि, इससे कई सवाल भी खड़े होते हैं। क्या आतंकवाद पर भारत सरकार की नीति बदल गई है? ‘आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती’ कहने वाली नरेंद्र मोदी सरकार क्या अब इस नीति से पीछे हट रही है? 

एससीओ एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 15 जून 2001 को हुई थी। उस समय चीन, रूस, किर्गीस्तान, तज़िकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाखस्तान इसके सदस्य देश थे। बाद में इसमें भारत और पाकिस्तान को भी शामिल कराया गया। अफ़ग़ानिस्तान, बेलारुस, मंगोलिया और ईरान ऑब्जर्वर देश हैं। 

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आठ सदस्यों वाले इस देश की बैठक हर साल होती है। पिछले साल उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में बैठक हुई थी।
एससीओ क्षेत्रीय संगठन है, जिसके फ़ोकस में मुख्य रूप से सेंट्रल एशिया है। इस संगठन के अजेंडे में सामरिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सहयोग है।

सीएसओ का महत्व

पर्यवेक्षकों का कहना है कि संघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की शुरुआत चीन और रूस ने सेंट्रल एशिया पर निगरानी रखने और एक तरह से उसे अमेरिकी प्रभाव में जाने से रोकने के लिए की थी।
इसका सामरिक महत्व यह है कि यह दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व के बीच एक तरह का बफ़र ज़ोन है। इस पर नियंत्रण रहने से दक्षिण एशिया की राजनीति में सुविधा होगी।
दूसरी बात यह है कि सेंट्रल एशिया के देशों के पास प्राकृतिक गैस का बहुत बड़ा भंडार है। इस पर चीन, रूस और भारत, तीनों की निगाहें टिकी हैं क्योंकि इन्हें आने वाले समय में इसकी बहुत ज़रूरत होगी।

इमरान को न्योतने पर विवाद क्यों?

लेकिन मूल सवाल तो वही है कि इमरान को न्योता देने पर विवाद क्यों हो? यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसमें भारत और पाकिस्तान के  अलावा दूसरे देश भी हैं। इसमें पाकिस्तान को नहीं न्योतने से भारत की किरकिरी होती। 

कोई किसी मुद्दे पर सरकार की आलोचना करे तो उसे पाकिस्तानी कहने और पाकिस्तान भेजने की बात बीजेपी के नेता ही करते हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बार-बार कहा है कि वे अमुक को पाकिस्तान भेज देंगे तो अमुक को।
 गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता क़ानून पर सदन में अपनी बात रखते हुए कांग्रेस पर तंज किया था और कहा था कि राहुल गाँधी पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पाकिस्तान के ‘अंदर घुस कर मारने’ की बात कही है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पास परमाणु बम दीवाली के लिए नहीं है।

इसके पहले भारत ने पाकिस्तान से हर तरह की बातचीत की संभावना को यह कह कर खारिज कर दिया  था कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते हैं। पुलवामा में आतंकवादी हमला और उसके बाद दोनों देशों के बीच बढ़ा तनाव सबको याद ही है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पाकिस्तान ने भारत में आतंकवाद की मदद करना बंद कर दिया? या भारत की नीति बदल गई? क्या अब दोनों देशों के बीच संबंध सुधरेंगे?

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क़मर वहीद नक़वी

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