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दिल्ली हिंसा: आलोचना के बीच सरकार ने दोनों टीवी चैनलों से प्रतिबंध हटाया

चौतरफ़ा आलोचनाओं के बीच सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने शनिवार को उन दोनों मलयालम न्यूज़ चैनलों से प्रतिबंध हटा लिया है जिन पर इसने दिल्ली दंगों में रिपोर्टिंग के लिए 48 घंटे का प्रतिबंध लगा दिया था। यह प्रतिबंध एशियानेट न्यूज़ और मीडिया वन टीवी पर लगाया गया था। इसका आदेश शुक्रवार शाम को जारी किया गया था। इसमें कहा गया था कि एशियानेट न्यूज़ और मीडिया वन टीवी ने 25 फ़रवरी को 'एक ख़ास समुदाय के पक्ष में होकर धार्मिक स्थलों पर हमले को हाइलाइट करने वाली रिपोर्ट' प्रकाशित कर केबल टेलीविज़न नेटवर्क्स नियम 1994 का उल्लंघन किया है। दिल्ली दंगे पर रिपोर्टिंग के लिए सरकार के इस फ़ैसले को अप्रत्याशित बताया गया क्योंकि सूचना प्रसारण मंत्रालय से जारी आदेश में कहा गया है कि दिल्ली दंगे के दौरान चैनलों ने 'एक समुदाय का पक्ष' लिया और 'दिल्ली पुलिस और आरएसएस' की आलोचना की।

इस पर अब 'पीटीआई' ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि एशियान न्यूज़ से रात को डेढ़ बजे और मीडिया वन से शनिवार सुबह साढ़े नौ बजे प्रतिबंध हटा लिया गया है।

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इस प्रतिबंध के साथ ही सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या सरकार मीडिया की स्वतंत्रता को दबाना चाहती है। मीडिया वन के मुख्य संपादक सी एल थॉमस ने कहा है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय का मीडिया वन चैनल पर प्रतिबंध दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग पर साफ़-साफ़ हमला है। मीडिया वन मंत्रालय की इस अभूतपूर्व और अलोकतांत्रिक कार्रवाई के ख़िलाफ़ क़ानूनी रूप से लड़ाई लड़ेगी। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया, 'भारत के इतिहास में ऐसा प्रतिबंध कभी नहीं लगा है। आपातकाल में मीडिया पर प्रतिबंध थे। लेकिन देश में फ़िलहाल आपातकाल नहीं लगा है। टीवी चैनलों पर प्रतिबंध सभी मीडिया घरानों के लिए एक चेतावनी है कि उन्हें सरकार की आलोचना नहीं करनी चाहिए।'

केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथाला ने ट्वीट किया, 'मोदी द्वारा मीडिया वन और एशियानेट न्यूज़ के प्रसारण को रोकने का निर्णय असंवैधानिक और प्रेस की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है। इस फासीवादी फ़ैसले के ख़िलाफ़ सभी लोकतांत्रिक मतों को एकजुट होना चाहिए। दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा की गंभीरता को सामने लाने के लिए इन मीडिया ने शानदार काम किया।'

बता दें कि यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी बीजेपी सरकार पर मीडिया की स्वतंत्रता को दबाने का आरोप लगा था। तब सूचना प्रसारण मंत्रालय ने संवेदनशील जानकारी साझा करने का आरोप लगाते हुए पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमले की रिपोर्टिंग के लिए 2016 में एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। 'एनडीटीवी' ने आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और उसे स्टे मिल गया था। 
2016 में जब यह मामला हुआ था तब भी इस पर काफ़ी हंगामा हुआ था और कहा गया था कि मीडिया को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है ताकि वे सरकार के ख़िलाफ़ कोई ख़बर नहीं दिखा सकें। अब ऐसे ही आरोप इन दो मलयालम न्यूज़ चैनलों पर कार्रवाई के बाद लगाए जा रहे हैं।

मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा था कि नियमों के मुताबिक़ ऐसा कोई भी कार्यक्रम नहीं चलाया जाना चाहिए जिसमें धर्म और समुदायों पर हमले का ज़िक्र हो या धार्मिक समूहों के प्रति घृणा के शब्द और विजुअल्स शामिल हों। 

मीडिया वन न्यूज़ के ख़िलाफ़ आदेश में कहा गया था कि चैनल ने आरएसएस पर सवाल उठाए और दिल्ली पुलिस पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया। आदेश में यह भी कहा गया था कि लगता है कि यह दिल्ली पुलिस और आरएसएस के प्रति आलोचनात्मक है और 'नागरिकता क़ानून के समर्थकों की तोड़फोड़' पर फ़ोकस करता है। 

मंत्रालय ने कहा था कि एशियानेट ने हमले को साम्प्रदायिक हिंसा बताया और एंकरों और संवाददाताओं ने कहा कि 'केंद्र ने हिंसा को मौन सहमति दी'।

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आदेश के अनुसार, इसने टेलीकास्ट की एक कॉपी की जाँच की थी, जिसमें ऐसे कमेंट शामिल थे- "... सड़क पर आने वाले यात्रियों को जय श्री राम कहने के लिए मजबूर किया गया था... मुसलिमों पर क्रूर हमला किया गया... केंद्र घंटों के भीतर हिंसा को नियंत्रित कर सकता है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है।'

इन आदेशों पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सवाल उठाए। उन्होंने ट्वीट कर पूछा कि मलयालम चैनल सांप्रदायिक हिंसा को दिल्ली में कैसे भड़का सकते हैं? 

मीडिया वन मध्यामम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड का हिस्सा है। एशियानेट न्यूज़ के मालिक अप्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार एशियानेट न्यूज़ के संपादक एम जी राधाकृष्णन ने कहा, 'इस वक़्त हम प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं। इस मुद्दे पर पूरा विचार करने के बाद हम इस पर बाद में अपनी राय रखेंगे।'
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क़मर वहीद नक़वी

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