पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ग़ैर-मुसलिम नागरिकों से भारत की नागरिकता के लिए आवेदन माँगने के केंद्र सरकार के नोटिस के ख़िलाफ़ याचिका दायर की गई है। इंडियन यूनियन मुसलिम लीग ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर माँग की है कि इस पर तुरन्त रोक लगाई जाए।
केंद्र सरकार इसके पहले कह चुकी है कि इस नोटिस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए क्योंकि नागरिकता संशोधन क़ानून से जुड़े नियम क़ानून अब तक बने ही नहीं हैं।
क्यों हो रहा है विरोध?
सरकार का कहना है कि इन मुसलिम बहुल देशों में मुसलमानों के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। पर सच यह है कि मुसलमानों में शिया, अहमदिया और दूसरे कई समुदायों के लोगों के साथ भेदभाव होता है।
सीएए के ख़िलाफ़ देश के कई हिस्सों में ज़ोरदार आन्दोलन इस आधार पर हुआ कि संविधान के ख़िलाफ़ है क्योंकि इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है।
क्यों नहीं बना क़ानून?
विपक्षी दलों की तमाम आशंकाओं और आपत्तियों को नजरअंदाज तथा व्यापक जन विरोध का दमन करते हुए केंद्र सरकार ने सितंबर 2019 में सीएए को संसद से पारित कराया था और उसी महीने राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। उसके बाद करीब डेढ़ साल में अब तक सरकार इस क़ानून को लागू करने संबंधी नियम ही नहीं बना पाई है।
इसका सीधा मतलब है कि नागरिकता क़ानून अभी सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। इससे यह भी जाहिर होता है कि इस क़ानून को पारित कराने के पीछे सरकार का मकसद सिर्फ देश के एक समुदाय विशेष को चिढ़ाना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करना था।
गौरतलब है कि इस क़ानून के खिलाफ हुए देशव्यापी जनआंदोलन को दबाने और उसे बदनाम करने के लिए सरकार ने इसे एक समुदाय विशेष का आंदोलन करार दिया था। तब देश के कई इलाकों में गृहयुद्ध जैसे हालात बन गए थे।
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