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पत्रकार प्रशांत कन्नौजिया की गिरफ़्तारी से उठे ढेरों सवाल

कहावत है कि गए थे नमाज को रोजे गले पड़े। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तमाम तरह के आरोप लगाकर उनके घर के बाहर हंगामा काटने वाली एक महिला की ख़बर तो प्रमुख टीवी चैनलों, अख़बारों और वेबसाइटों पर नहीं चली लेकिन यूपी पुलिस की एक कार्रवाई ने इसे सबकी नज़रों में ला दिया है। आरोप लगाने वाली महिला को मानसिक रूप से विक्षिप्त बताया जा रहा है।
योगी आदित्यनाथ की छवि बिगाड़ने वाली पोस्ट लिखने और एक आपत्तिजनक वीडियो शेयर करने के आरोप में दिल्ली के पत्रकार प्रशांत कन्नौजिया को यूपी पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है। प्रशांत कन्नौजिया ने चार जून को मुख्यमंत्री आवास पर हंगामा काटने वाली महिला का वीडियो कुछ आपत्तिजनक वाक्यों के साथ जोड़कर अपने फ़ेसबुक अकाउंट से वायरल किया था। 
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इसी को आधार बनाते हुए यूपी में हजरतगंज थाने की पुलिस ने एक मुक़दमा लिखा और आनन-फानन में प्रशांत कन्नौजिया को दिल्ली के विनोद नगर स्थित उनके आवास से शुक्रवार रात को हिरासत में ले लिया। हजरतगंज पुलिस ने आईपीसी की धारा 500 व आईटी एक्ट की धारा 66 के तहत चालान काटते हुए प्रशांत को शनिवार रात को जेल भेज दिया। 
प्रशांत कन्नौजिया की गिरफ़्तारी के बाद यह पूरा मसला और भी जोर-शोर से लोगों की नज़रों में आ गया है। पुलिस का कहना है कि आरोपी ने सुनियोजित साज़िश के तहत मुख्यमंत्री को बदनाम करने का प्रयास किया और सोशल मीडिया का सहारा लिया।
प्रशांत को लेकर पुलिस की एफ़आईआर और उसकी ओर से जारी गुडवर्क संबंधी प्रेस नोट में भी विरोधाभास नज़र आया। एफ़आईआर में जहाँ आईपीसी की धारा 505 का जिक्र नहीं था, वहीं प्रेस नोट में इसे भी लगाया गया। हालाँकि देर रात यूपी पुलिस ने साफ़ किया कि बाद में धारा 505 भी जोड़ दी गयी है।

चैनल पर भी हुई कार्रवाई

शनिवार देर रात नोएडा पुलिस ने जानकारी दी कि नेशन लाइव न्यूज़ चैनल पर नोएडा में दो मुक़दमे दर्ज किए गए हैं। एक मुक़दमा मानहानि संबंधी धारा 505, 502, 501 व 153 में जबकि दूसरा जालसाज़ी के संबंध में धारा 419, 420, 467, 468 व 471 का दर्ज करते हुए चैनल हेड इशिका सिंह व संपादक अनुज शुक्ला को गिरफ़्तार कर लिया गया। पुलिस का कहना है कि चैनल नेशन लाइव बिना किसी अनुमति के दिखाया जा रहा था। इस चैनल पर इस मामले को लेकर पैनल चर्चा का कार्यक्रम किया गया था। 
अब हैरत की बात यह है कि जहाँ इस पूरे मामले में फ़िलहाल कहीं नौकरी न करने वाले स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कन्नौजिया व एक अपेक्षाकृत कम दिखने वाले चैनल पर कार्रवाई कर दी गयी है, वहीं उन तमाम चैनलों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है जो घटना वाले दिन उकसा-उकसा कर उक्त महिला हेमा सक्सेना की बाइट लेते रहे और उसे वॉट्सएप ग्रुपों में वायरल करते रहे।

इतना ही नहीं, राजधानी लखनऊ के कई मीडिया वॉट्सएप ग्रुपों में भी इस प्रकरण से संबंधित खबर चलाई गयी। पंजाब केसरी अख़बार में इस ख़बर को प्रकाशित भी किया गया और उक्त समाचार पत्र की वेबसाइट का ख़बर से संबंधित लिंक अब भी मौजूद है।

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तेज़ी से वायरल हो रहा वीडियो

इस घटना को जहाँ ज़्यादातर अख़बारों, टीवी चैनलों व वेबसाइटों ने मामूली व ग़ैर संजीदा समझते हुए कोई तरजीह नहीं दी थी, वहीं अब पुलिस की कार्रवाई के बाद यह घटना और संबंधित वीडियो तेज़ी से वायरल होने लगा है। सवाल उठ रहे हैं कि प्रशांत कन्नौजिया की हरक़त मुख्यमंत्री की छवि को बदनाम करने की सुनियोजित साज़िश थी या उसे आनन-फानन में गिरफ़्तार कर अपराधियों की तरह छुपा कर जेल भेजने की घटना।
प्रशांत की गिरफ़्तारी की ख़बर के बाद यूट्यूब पर मौजूद इस वीडियो को देखने वालों की बाढ़ आ गयी है। जिन छोटे-मोटे अख़बारों व चैनलों में इस ख़बर को दिखाया गया, उनके लिंक शेयर किए जा रहे हैं। फ़ेसबुक पर गिरफ़्तारी और पुलिसिया सुलूक की निंदा हो रही है।
जानकारों का कहना है कि पुलिस की इस कार्रवाई ने बेवजह मामले को ख़ासा तूल दे दिया है। पत्रकार की गिरफ़्तारी के बाद जहाँ पूरे मसले पर विरोध प्रदर्शन होने की ख़बरें हैं, वहीं लोगों में भी रोष व्याप्त है। बीजेपी संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री का ख़ास दिखने के चक्कर में कुछ लोगों ने ज़्यादा ही उत्साह दिखा दिया है और पूरे मामले को फिर से जिंदा कर दिया है।

सक्रिय हो गया था सरकार का तंत्र

मुख्यमंत्री आवास के बाहर इस महिला के पहुँचने और उसके मीडिया को बाइट देने के बाद से प्रदेश सरकार का सूचना विभाग सहित मुख्यमंत्री के कुछ  क़रीबी अधिकारी सक्रिय हो गए थे। न केवल घटना से संबंधित वीडियो बाइट मंगायी गई बल्कि जिन वॉट्सएप ग्रुपों पर इसे चलाया गया था उनके स्क्रीनशॉट भी इकट्ठा किए गए। अब सवाल उठते हैं कि सारे सुबूत सरकार के पास मौजूद होने के बाद भी अकेले प्रशांत कन्नौजिया या एक अपेक्षाकृत मामूली व्यूअरशिप वाले चैनल को कार्रवाई के लिए क्यों चुना गया। यह सवाल तब तो और भी मौजूं हो जाता है जब खुद प्रमुख सचिव (सूचना) इस पूरे मामले की मॉनिटरिंग कर रहे थे।

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कुमार तथागत

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