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सीएए: बिड़ला ने यूरोपीय संसद से कहा - साथी विधायिकाओं की संप्रभुता का सम्मान करें

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में यूरोप की संसद में लाये गये प्रस्ताव पर लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने नाराज़गी जताई है। बिड़ला ने सोमवार को यूरोपीय संसद के अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा है कि यह सही नहीं है कि एक विधायिका दूसरी विधायिका के लिये इस तरह का प्रस्ताव पास करे। यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/ नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट ग्रुप की ओर से लाये गये इस प्रस्ताव पर बुधवार को बहस होनी है और इसके एक दिन बाद यानी 30 जनवरी को मतदान होगा। 

यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को संबोधित इस पत्र में बिड़ला ने लिखा है, ‘अंतर संसदीय संघ का सदस्य होने के नाते हमें अपनी साथी विधायिकाओं की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए और विशेषकर लोकतंत्र में ऐसा होना ही चाहिए।’ बिड़ला ने आगे लिखा है कि किसी एक विधायिका का दूसरी विधायिका के लिए फ़ैसला देना सही नहीं है और इसका अपने निहित स्वार्थों के लिये दुरुपयोग हो सकता है। 

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पत्र में ओम बिड़ला ने इस बात पर जोर दिया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून भारत के पड़ोसी देशों में धार्मिक रूप से प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने के लिए लाया गया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि भारत की संसद के दोनों सदनों में लंबी बहस और चर्चा के बाद इस विधेयक को पास किया गया है। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा है कि यह क़ानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता। 

बिड़ला ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष ससौली से अपील की है कि वह इस प्रस्ताव पर विचार करें और उन्हें इस बात की पूरी उम्मीद है कि एक ग़लत उदाहरण पेश नहीं होगा। 

भारत सरकार ने बार-बार कहा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून उसका आंतरिक मामला है और यह किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करता। सरकार ने कहा है कि यूरोप में भी पहले इस तरह के क़ानून बन चुके हैं।

यूरोपीय संसद में लाये गये इस प्रस्ताव में नागरिकता क़ानून को ‘भेदभाव पर आधारित’ और ‘ख़तरनाक रूप से विभाजनकारी’ बताया गया है। प्रस्ताव में भारत सरकार से मांग की गई है कि वह इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों से बात करे और क़ानून को वापस लिये जाने की उनकी मांग को सुने। प्रस्ताव को 24 देशों के 154 सांसदों का समर्थन मिला है। प्रस्ताव में कहा गया है कि सरकार से जुड़े कई नेता प्रदर्शनकारियों को धमकाने की कोशिशों में शामिल हैं।

प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि इस क़ानून में भारत की नागरिकता देने के लिये धर्म को आधार बनाया गया है और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस को लेकर भी चिंता जताई गई है। कहा गया है कि इससे कई मुसलिम नागरिकों की नागरिकता चली जाएगी।

अमेरिका ने दी थी नसीहत

पिछले महीने अमेरिका के विदेश विभाग ने भारत को नसीहत देते हुए कहा था कि वह संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे। इसके अलावा ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) ने भी इस क़ानून को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि यह भारतीय मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है। इस क़ानून के विरोध में दुनिया में कई जगहों पर प्रदर्शन हुए हैं। 

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भारत में विपक्षी दलों की कुछ राज्य सरकारों ने इस क़ानून के विरोध में अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पास किया है। केरल, छत्तीसगढ़ की सरकार ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग़ में एक महीने से ज़्यादा समय से चल रहे आंदोलन की चर्चा दुनिया भर में है। इसके अलावा भी दिल्ली में और देश में कई जगहों पर इस क़ानून के ख़िलाफ़ लोग जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं।
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क़मर वहीद नक़वी

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