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RTI: आरोग्य सेतु को किसने बनाया, मंत्रालय को भी पता नहीं!

जिस आरोग्य सेतु ऐप पर डाटा की सुरक्षा और निजता के अधिकार के उल्लंघन को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं, अब उसके बारे में एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। आरोग्य सेतु को किसने बनाया, उसके बारे में उससे जुड़ी सरकारी संस्था और मंत्रालय को ही जानकारी नहीं है। आरोग्य सेतु वेबसाइट पर ही लिखा है कि इसे नेशनल इन्फ़ॉर्मेटिक्स सेंटर और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने विकसित किया है लेकिन दोनों ने ही इसकी जानकारी होने से इनकार किया है कि उस ऐप को किसने बनाया है। आरटीआई से जानकारी माँगी गई थी इसलिए अब केंद्रीय सूचना आयोग ने 'ढुलमुल जवाब' देने के लिए सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि आरोग्य सेतु ऐप को किसने बनाया है।

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आयोग ने जिस शिकायत पर नोटिस जारी किया है उसको सामाजिक कार्यकर्ता सौरव दास ने दायर किया था। दास ने कहा है कि ऐप के बनाने वाले के संबंध में न तो एनआईसी यानी नेशनल इन्फ़ॉर्मेटिक्स सेंटर और न ही मंत्रालय के पास डाटा है। बता दें कि इस ऐप को देश में करोड़ों लोगों ने मोबाइल फ़ोन में इंस्टॉल किया है। इस ऐप को गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित किए गए नियम के अनुसार रेस्तरां, सिनेमा हॉल, मेट्रो स्टेशनों में प्रवेश करने से पहले मोबाइल एप्लिकेशन डाउनलोड करना ज़रूरी है।

कोरोना संक्रमण के फैलने के शुरुआती दिनों में तो नोएडा में घर से निकलने वालों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को अनिवार्य कर दिया गया था, लेकिन जब काफ़ी ज़्यादा आलोचना हुई तो उस नियम को हटा लिया गया था।
कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाने के लिए इस आरोग्य ऐप को केंद्र सरकार द्वारा तैयार किया गया है।

इस ऐप को 2 अप्रैल को लॉन्च किया गया था। यह ऐप ब्लू टूथ और लोकेशन डाटा के आधार पर ऐप का प्रयोग करने वाले की स्थिति पर निगरानी रखती है और यह भी कि वह किन-किन व्यक्तियों के संपर्क में आया है।

इस ऐप के उपयोग करने वाले लोगों के 30 दिन के अंदर संपर्क में आए लोगों का डाटा सर्वर पर रखा जाता है। ऐसे में किसी कोरोना पॉजिटिव केस के आने पर या कोरोना फैलने का ख़तरा होने पर यह उस व्यक्ति के संपर्क में आए सभी लोगों को एलर्ट भेज देता है। हालाँकि इस ऐप से फ़ायदे के बीच ही साइबर सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञ निजी सूचना की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ जता रहे हैं।

'आधार' ऐप में गड़बड़ियाँ उजागर करने वाले फ़्रांसीसी हैकर इलिएट एल्डर्सन ने भी दावा किया था कि आरोग्य सेतु ऐप में डाटा सुरक्षित नहीं हैं और क़रीब 9 करोड़ भारतीयों की निजता ख़तरे में है। 

हैकर के इस दावे के जवाब में सरकार को सफ़ाई जारी करनी पड़ी थी। सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और कहा था कि इसमें कोई भी सुरक्षा चूक नहीं है। इसने कहा कि उस हैकर द्वारा किसी भी यूज़र के बारे में कोई ऐसी जानकारी नहीं दी गई है जिससे सिद्ध हो कि लोगों का डाटा ख़तरे में है। इससे पहले दौरान अभिव्यक्ति और निजता को लेकर काम करने वाली संस्था इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन यानी आईएफ़एफ़ ने कहा था कि इस ऐप में कई कमियाँ हैं।

क़ानूनी वैधता पर भी सवाल

डाटा सुरक्षा के अलावा आरोग्य सेतु ऐप को ज़रूरी किए जाने के मुद्दे पर भी सवाल उठाए गए। क़ानूनी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्ण ने भी सवाल उठाए थे। जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण उस सरकारी कमेटी के अध्यक्ष रहे थे जिसने व्यक्तिगत सुरक्षा संरक्षण अधिनियम का पहला मसौदा तैयार किया था। हालाँकि सरकार ने उनके सुझावों को नहीं माना था। उन्होंने कहा था कि आरोग्य सेतु ऐप को लोगों के लिए ज़रूरी करना पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में उन्होंने कहा था, 'किस क़ानून के तहत आप किसी पर इसे ज़बरदस्ती लाद रहे हैं? अभी तक तो इसके लिए कोई क़ानून नहीं है।'

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने भी आरोग्य सेतु ऐप का यह कह कर विरोध किया था कि इससे विदेशी कंपनियों को मदद मिलती है और यह ग़ैरक़ानूनी है।

इन्हीं विवादों के बीच सीआईसी में आरोग्य सेतु को बनाने वाले के बारे में जानकारी नहीं दिए जाने को लेकर शिकायत की गई थी। इस पर आयोग ने सरकार को नोटिस जारी किया है। 

नोटिस में आयोग ने कहा, 'अधिकारियों द्वारा सूचना को अस्वीकार करना स्वीकार नहीं किया जा सकता है।' इसने कहा है, 'मुख्य सार्वजनिक सूचना अधिकारियों में से कोई भी इस बारे में कुछ भी बताने में सक्षम नहीं था कि ऐप को किसने बनाया, फ़ाइलें कहाँ हैं, और यह बेहद अतर्कसंगत है।' संबंधित विभागों को 24 नवंबर को आयोग के समक्ष उपस्थित होने को कहा गया है।

अधिकारियों और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आरोग्य सेतु ऐप के बनाने वाले के बारे में जानकारी नहीं होने और केंद्रीय सूचना आयोग यानी सीआईसी द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद अब फिर से इसके डाटा सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए जा सकते हैं। यह इसलिए कि जब संबंधित मंत्रालय ही उस ऐप के बनाने वाले के बारे में सूचना होने से इनकार कर दे तो संदेह ज़्यादा होने लगते हैं।
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क़मर वहीद नक़वी

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