राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने शनिवार को नगालैंड में आम नागरिकों पर हुई फायरिंग का स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस दिया है और छह हफ़्ते के अंदर इस वारदात पर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है।
आयोग ने केंद्रीय रक्षा सचिव, केंद्रीय गृह सचिव, नगालैंड के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस भेजा है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी ने यह मामला मानवाधिकार आयोग के सामने रखा और इसे 'मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन' बताते हुए घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की माँग की।
क्या है मामला?
बता दें कि शनिवार को नगालैंड के मोन ज़िले में केंद्रीय सुरक्षा बलों ने एक गाड़ी में लौट रहे लोगों पर गोलियाँ चला दीं। इसमें छह लोग मारे गए। इसके बाद हथियारों से लैस स्थानीय लोगों ने जवानों को घेर लिया तो सुरक्षा बलों ने फिर गोलीबारी कर दी। कुल मिला कर एक सैनिक समेत 14 लोग मारे गए।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा है कि गलत पहचान से यह गोलीबारी हुई।
आयोग ने इसके साथ ही मृतकों के परिवारों को दी गयी मदद, घायलों को दी गयी चिकित्सकीय मदद और दोषियों के ख़िलाफ़ दर्ज किए गए मुक़दमों की जानकारी भी माँगी है।
संसद में सरकार का बयान
गृह मंत्री ने लोकसभा में इस पर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा, "4 दिसंबर की शाम को 21 पैरा कमांडो का एक दस्ता संदिग्ध क्षेत्र में तैनात था। इस दौरान एक वाहन उस जगह पहुंचा, इस वाहन को रुकने का इशारा किया गया। लेकिन यह वाहन रुकने के बजाय तेज़ी से निकल गया। इस आशंका पर कि वाहन में संदिग्ध विद्रोही जा रहे थे, वाहन पर गोली चलाई गई जिससे वाहन में सवार 8 में से 6 लोगों की मौत हो गई, बाद में यह ग़लत पहचान का मामला पाया गया, जो 2 लोग घायल हुए थे, उन्हें सेना ने स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया।"
गृह मंत्री ने कहा कि यह ख़बर मिलने के बाद स्थानीय ग्रामीणों ने सेना की टुकड़ी को घेर लिया, दो वाहनों को जला दिया और उन पर हमला कर दिया। इसमें सुरक्षा बल के एक जवान की मौत हो गई और कई जवान घायल हो गए।
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