वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकल प्रभाकर सरकार की आलोचना करने के लिए एक बार फिर खबरों में हैं। अपने यूट्यूब चैनल पर साप्ताहिक कार्यक्रम 'मिडवीक मैटर्स' में उन्होंने कोरोना से लड़ने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की है।
उन्होंने कहा है कि सरकार ने समय रहते हुए और पहले से चेतावनी मिलने के बावजूद कोरोना से लड़ने की ज़रूरी तैयारी नहीं की और सिर्फ हेडलाइन्स मैनेजमेंट में ही लगी रही। उन्होंने चेतावनी दी है कि समय रहते कुछ नहीं किया गया तो जल्द ही लोग का मोदी के प्रति मोहभंग होगा, उनकी लोकप्रियता बुरी तरह गिरेगी।
'हम सुन्न हो चुके हैं'
परकल प्रभाकर ने कहा है कि 'हम त्रासदियों के प्रति सुन्न हो चुके हैं, अपने आँखों के सामने घट रही मानवीय त्रासदियों के प्रति भी हमारी संवेदनाएं कुंद हो चुकी हैं। दूसरों की मौत सिर्फ एक आँकड़ा हो सकती है, पर हम अपनों की मौत से वाकई बहुत ही दुखी होते हैं। मेरे पिता की असमय मौत 1981 में होने के बाद ही मैं समझ पाया कि यह कितनी दुखद होती है, त्रासदपूर्ण होती है और किस तरह हमारे जीवन तो अस्त-व्यस्त कर सकती है।'
प्रभाकर ने कहा कि 'बीते एक साल में उनके कई मित्रों की मौत कोरोना के कारण हो गई। इन लोगों के माता-पिता, पति या पत्नी, बच्चों, सहकर्मियों और परिवार के दूसरे लोगों पर क्या बीतती है, यह मैं अच्छी तरह समझ सकता हूं। मेरे एक मित्र की मौत कोरोना से हो गई और वह अपने पीछे पत्नी व शादी की उम्र की दो बेटियों को छोड़ गए। उसकी अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी, उसके परिवार के लोग उसे अंतिम बार देख भी नहीं सके।'
'कोरोना से बुरा हाल'
उन्होंने कह कि 'मेरे एक मित्र ने अपने 81 साल के पिता को एक अस्पताल में दाखिल कराया, जो उससे रोज़ाना एक लाख रुपए लेता था और यह पैसा भी उसे दो-तीन दिन अग्रिम ही देना होता था। अस्पताल उसे हमेशा धमकाता था कि अग्रिम पैसा नहीं दिया गया तो इलाज रोक दिया जाएगा। इसके बावजूद मेरे मित्र को यह पता नहीं चलता था कि उसके पिता का क्या इलाज किया जा रहा है। उनकी मौत 15 दिन बाद हो गई और परिवार पर 20 लाख रुपए का कर्ज चढ़ गया।'
परकल प्रभाकर ने कहा.
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पिछली कोरोना लहर से ही बहुत से लोग नहीं उबर सके, उन्हें रोजगार वापस नहीं मिला, उनकी आर्थिक स्थिति एकदम बिगड़ गई और उन्हें कोई आर्थिक मदद या इकोनॉमिक स्टिमुलस नहीं मिला।
परकल प्रभाकर, आर्थिक विद्वान व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति
ख़तरनाक दूसरी लहर
परकल प्रभाकर ने कहा कि कोरोना दूसरी लहर पहले से अधिक ख़तरनाक है, यह पूरी तरह स्वास्थ्य आपातकाल है, बहुत बड़ी त्रासदी है। कोरोना संक्रमण बहुत ही तेजी से फैल रहा है, एक दिन में ही 2.59 लाख से अधिक संक्रमित हो गए। एक दिन में मरने वालों की तादाद 1,761 थी। कोरोना से अब तक एक लाख 80 हज़ार 550 लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक एक करोड़ 53 लाख 14 हज़ार 714 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं।
प्रभाकर ने कहा कि यह तो सरकारी आँकड़ा है, वास्तविक संख्या इससे अधिक है। डॉक्टर निजी बातचीत में कहते हैं कि वास्तविक स्थिति बहुत ही भयानक है। अब तो पूरी जाँच भी नहीं हो रही है, प्रयोगशाला व अस्पताल अब नमूने लेने से इनकार कर रहे हैं क्योंकि प्रयोगशालाओं के पास उनकी क्षमता से अधिक मामले जा रहे हैं, वे जब तक उनकी जाँच करेंग तब तक वे नमूने खराब हो चुके होंगे। वे अब जाँच करने की स्थिति में नहीं हैं। रविवार को 3.65 लाख लोगों की जांच हुई।
परकल प्रभाकर ने प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा कि टेलीविज़न चैनलों पर दिखाया गया कि कोरोना के इस संकट के दौरान भी किस तरह प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और विपक्षी दलों के नेताओं ने बड़ी रैलियां की, सभाएं कीं, जिनमें हज़ारों लोगों ने शिरकत की। उनके लिए लोगों के स्वास्थ्य, लोगों की जिंदगी का कोई महत्व नहीं था।
कुंभ, चुनाव प्रचार
वित्त मंत्री के पति ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि कुंभ मेला का आयोजन किया गया, शाही स्नान हुआ, लाखों लोगों ने कुंभ में भाग लिया। राजनेताओं ने कहा कि उनके लिए धर्म बहुत ही ज़रूरी है।
प्रभाकर ने कहा कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी और टीएमसी ने कोरोना दिशा निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन किया। राजनीतिक दलों के लोगों ने हज़ारों की भीड़ वाली चुनाव रैलियों को उचित ठहराया।
उन्होंने बगैर किसी का नाम लिए सरकार में बैठे उन लोगों की आलोचना की जो भारत में कोरोना की स्थिति की तुलना दूसरे देशों से करते हैं और सरकार की पीठ थपथपाते हैं। प्रभाकर ने कहा कि इन लोगों ने बहुत ही हृदयहीन होकर, क्रूरतापूर्वक तुलना की और कहा कि भारत में कोरोना संक्रमण की दर कम है, यहां कम लोगों की मौत हुई है, कम लोग प्रभावित हुए हैं या कोरोना पॉजिटिव होने की दर कम है। पर जिनके परिजन मारे गए हैं उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता है कि किसी दूसरे देश में ज़्यादा लोग मरे हैं।
नेपाल, बांग्लादेश से बदतर
प्रभाकर ने कहा कि पहले तो सिर्फ संख्या के आधार पर तुलना नहीं की जानी चाहिए, इससे जिन्होंने अपने लोग खोए हैं, उनका दर्द कम नहीं हो जाता। दूसरे यदि आकड़ों पर भी ध्यान दिया जाए तो सरकार के दावे गलत हैं।
प्रति दस लाख व्यक्ति के आँकडे़ से हिसाब किया जाए तो कुल संक्रमित लोगों की संख्या, कुल मार गए लोगों की संख्या, प्रति दिन आने वाले केस, मौजूदा संक्रमितों की संख्या इन सबमें हमारी स्थिति पाकिस्तान, भूटान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश से भी बदतर स्थिति भारत की है।
टीकाकरण
प्रभाकर ने कोरोना टीके की चर्चा करते हुए कहा कि कोरोना रोकने के लिए कम से कम 70 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण ज़रूरी है। इसका मतलब यह है कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया जाए तो भी कम से कम 70 करोड़ लोगों का टीकाकरण ज़रूरी है। इसका मतलब यह है कि हमें 140 करोड़ टीका खुराकों की ज़रूरत है। देश का कोई कोना तभी सुरक्षित है जब पूरा देश सुरक्षित है। क्या हम इसके लिए तैयार हैं?
उन्होंने कहा कि टीकाकरण की रफ़्तार कम हो रही है। प्रभाकर ने अपनी बात के पक्ष में आँकड़ा देते हुए कहा कि सोमवार की सुबह सात बजे तक उसके पिछले 24 घंटों में 22.29 लाख खुराकें दी गईं। यह इसके पहले के 24 घंटों में दी गुई खुराकों से 14.59 लाख खुराक कम है। यह पिछले सप्ताह से 17 लाख खुराक कम है। इसी तरह पूरी दुनिया में 100 लोगों में 11.61 लाख खुराक दिया जाना चाहिए, पर हम सिर्फ 9 खुराक प्रति सौ लोगों पर दे रहे हैं।
प्रभाकर ने कहा कि सरकार कोरोना से लड़ने के लिए तैयारियों पर किसी तरह की आलोचना किसी तरह के सुझाव सुनने को ही तैयार नहीं है। उन्होंने कहा,
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मनमोहन सिंह के सकारात्मक सुझावों पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने जिस तरह असभ्य और हड़बड़ी में जवाब दिया, उससे साफ है कि सरकार अपना आपा खो चुकी है। सरकार कोरोना वायरस से लड़ने के बजाय अपने राजनीतिक विरोधियों से लड़ने और उन पर घूंसे चलाने में यकीन करती है।
परकल प्रभाकर, आर्थिक विद्वान व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति
लॉकडाउन फ़ौरी उपाय
वित्त मंत्री के पति ने लॉकडाउन के मुद्दे पर भी सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन अपने आप में कोई समाधान नहीं है, यह सिर्फ जब तक टीका तैयार न हो जाए और स्वास्थ्य सुविधाएं खड़ी न हो जाएं तब तक के लिए एक फौरी उपाय है।
परकल प्रभाकर न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बगैर उन पर बहुत ही तीखा हमला किया। उन्होंने कहा,
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'स्वास्थ्य सेवाएं तैयार करने के बजाय सरकार ने तालियाँ और थालियाँ बजाने व दीया जलाने जैसे प्रतीकात्मक काम किए।'
परकल प्रभाकर, आर्थिक विद्वान व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति
वित्त मंत्री की आलोचना
प्रभाकर ने नाम लिए बगैर अपनी पत्नी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि आर्थिक पैकेज का अध्ययन करने से यह साफ होता है कि सरकार का मकसद किसी की मदद करना नहीं बल्कि हेडलाइन मैनेजमेंट था। इससे किसी को कोई फ़ायदा नहीं हुआ। यह एक लाचार देश को दिया गया नकली आर्थिक स्टीमुलस था।
प्रवासी मजदूरों का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि हजारों की तादाद में इनका पलायन सरकार की हृदयहीनता ही दिखाता है।
साल भर में क्या तैयारी हुई?
प्रभाकर ने कोरोना से लड़ने की सरकार की साल भर की तैयारियों की विस्तार से चर्चा की और आँकड़ों से बताया कि किस तरह सरकार इसमें नाकाम रही। उन्होंने कहा,
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साल भर में सिर्फ 19,461 वेंटीलेटर बनाए गए, 8,648 आईसीयू बिस्तर, 94,880 ऑक्सीजन युक्त बिस्तर का ही इंतजाम किया जा सका।
परकल प्रभाकर, आर्थिक विद्वान व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति
यह भी पूरे देश में एक समान नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह कहा है कि 9 राज्यों में अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या पहले से कम हुई है। इस पर किसी को अस्पतालों के बाहर एंबुलेंसों की लंबी कतार देख कर ताज्जुब नहीं होना चाहिए।
मोदी की लोकप्रियता
उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि उसने किसी विशेषज्ञ से सलाह मशविरा किया हो या सरकार के बाहर के विशाल अनुभव व जानकारी का कोई फ़ायदा उठाया हो ऐसा नहीं है।
प्रभाकर ने कहा,
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प्रधानमंत्री की लोकप्रियता, अपनी बात कहने की उनकी क्षमता और उनकी राजनीतिक पूंजी सरकार की नाकामी, अकुशलता और हृदयहीनता के प्रभावों से उन्हें मुक्त कर देंगे, ऐसा लगता है। प्रधानमंत्री जिम्मेदारी से बच रहे हैं। ऐसा लगता है कि सरकार अब लोगों के गुस्से को मैनेज करने में जुट गई है।
परकल प्रभाकर, आर्थिक विद्वान व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति
सुन्न संवेदना
प्रभाकर ने कहा कि सरकार को यह समझ में आ गया है कि शुरुआती चीख पुकार के बाद लोगों की संवेदना सुन्न हो गई हैं, संवेदनाओं के सुन्न होने की वजह से ही सरकार नोटबंदी पर लोगों के गुस्से से बच निकली। संवेदनाएओं के सुन्न होने की वजह से हज़ारों प्रवासियों की लंबी कतारों को देख कर भी लोग चुप रहे। सरकार को लगता है कि इस बार भी लोगो की संवेदना सुन्न हो जाएगी और वह बच निकलेगी।
उन्होंने एक बार फिर मोदी का नाम लिय बगैर कहा कि राजनीतिक पूंजी और लोकप्रियता एक सीमा के बाद खत्म हो जाती है, लोगों से संवाद करने का बेहतर तरीका भी बाद में प्रहसन लगने लगता है। और लोग हमेशा सुन्न ही नहीं रहेंगे। पारदर्शिता, मानवीय शासन, लोगों के दर्द को समझने की इच्छा ही किसी नेता को राष्ट्र के इतिहास में अपना स्थान बनाने लायक बनाती है।
प्रभाकर ने कहा कि यह प्रधानमंत्री पर निर्भर करता है कि वह क्या चुनते हैं।
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