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लोग मर रहे हैं, पिछले साल घोषित ऑक्सीजन प्लांट नहीं लग पाए

ऑक्सीजन बिना लोग मर रहे हैं और पिछले साल घोषित ऑक्सीजन प्लांट अभी तक नहीं लग पाए हैं। कोरोना के हालात और ऑक्सीजन की कमी को लेकर जिस तरह अब एक के बाद एक बैठकें हो रही हैं, फ़ैसले लिए जा रहे हैं यदि उस तरह की जल्दबाज़ी नहीं भी की गई होती और सामान्य प्रक्रिया के तहत भी काम हुआ होता तो शायद ये हालात नहीं बनते। 

जल्दबाज़ी में ऐसे फ़ैसले पिछले साल भी लिए गए थे जब कोरोना फैलना शुरू ही हुआ था। कोरोना में गंभीर मरीज़ों को दिक्कतें ऑक्सीजन की आ रही थीं, यह स्वास्थ्य महकमा जानता था और सरकारी तंत्र भी। ऑक्सीजन की कमी का शायद अंदेशा भी रहा होगा इसलिए ऑक्सीजन प्लांट का विचार आया। तो सरकार ने देश के 162 ज़िला अस्पतालों में ऑक्सीज़न प्लांट लगाने की घोषणा की। लेकिन जान बचाने वाली इतनी ज़रूरी चीज के लिए भी सरकारी प्रक्रिया कितनी धीमी है, इसका अंदाज़ा इस तथ्य से लगाइए। 30 जनवरी को देश में संक्रमण के मामले आने के बाद आठ महीने में यानी अक्टूबर महीने में टेंडर निकाला गया और अभी भी सिर्फ़ 33 प्लांट ही लगाए जा सके हैं। यह बात ख़ुद सरकार ही मान रही है। स्वास्थ्य विभाग ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय का साफ़ कहना है कि मंजूर किए गए 162 प्रेशर स्विंग एब्जॉर्प्शन यानी पीएसए ऑक्सीजन प्लांट में से 33 को लगाया गया है। इसके अनुसार अप्रैल 2021 के अंत तक 59 लगाया जाएगा और मई 2021 के अंत तक 80 लगाया जाएगा। मंत्रालय ने यह साफ़ नहीं किया है कि मई तक कुल मिलाकर 80 लगा दिए जाएँगे या फिर 33+59+80 लगाए जाएँगे। इनका कुल जोड़ 172 हो जाएगा जबकि 162 प्लांट ही मंजूर किए गए हैं। हालाँकि मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ऐसे 100 से ज़्यादा प्लांट और मंजूर किए जा रहे हैं। 

स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसको लेकर एक के बाद एक कई ट्वीट जारी किए हैं, लेकिन यह साफ़ नहीं किया है कि इन प्लांटों में से कितने प्लांट चालू हालत में हैं। हालाँकि स्क्रॉल की एक खोजपरक रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 राज्यों के जिन 60 से ज़्यादा अस्पतालों में प्लांट लगाया जाना प्रस्तावित है वहाँ पता करने पर पता चला कि सिर्फ़ 11 में प्लांट को लगाया गया है और उसमें से भी सिर्फ़ 5 ही चालू हालत में हैं। 

पीएसए प्रौद्योगिकी वायुमंडल में एक मिश्रण से गैसों को अलग करती है और ऑक्सीजन को एक पाइपलाइन के माध्यम से सीधे अस्पताल के बेड तक आपूर्ति की जा सकती है।

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बता दें कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा सोसाइटी ने 21 अक्टूबर को देश भर के 150 ज़िला अस्पतालों में प्रेशर स्विंग एब्जार्प्शन ऑक्सीजन प्लांट यानी पीएसए की स्थापना के लिए ऑनलाइन निविदा जारी की थी। लगता है कि बाद में 12 और प्लांट जोड़े गए और इसलिए कुल प्लांटों की संख्या 162 हो गई।

इसका पूरा ख़र्च केंद्र सरकार वहन कर रही है। 'स्क्रॉल डॉट इन' की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि निविदा प्रक्रिया को शुरू करने में देरी धन की कमी के कारण हुई। 162 ऑक्सीजन प्लांटों के लिए ख़र्च सिर्फ़ 201.58 करोड़ रुपये है। रिपोर्ट के अनुसार यह धनराशि पीएम-केयर्स फंड से आवंटित की गई है।

ऐसे हालात तब हैं जब अस्पतालों में अब ऑक्सीजन की कमी से मौत की शिकायतें आ रही हैं। यह मामला अब अदालत में भी चला गया है और कोर्ट ऑक्सीजन उपलब्ध कराने को कह रहा है।
इस बीच प्रधानमंत्री भी अब एक के बाद एक बैठकें ले रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को ऑक्सीजन के स्टॉक का जायजा लिया था और इसके उत्पादन को बढ़ाने को कहा था। प्रधानमंत्री को इसकी जानकारी दी गई थी कि ऑक्सीजन आपूर्ति और खपत के बीच के अंतर को पाटने के लिए सरकार द्वारा इसके आयात के प्रयास किए जा रहे हैं। 
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केंद्र सरकार ने हाल ही में ऑक्सीजन विदेशों से आयात करने का फ़ैसला लिया है। उस दिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि इसमें प्रधानमंत्री ने 12 राज्यों में 15 दिन के लिए अनुमानित ऑक्सीजन की आपूर्ति की समीक्षा की। देश के 12 राज्यों- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कोरोना संक्रमण से हालात ख़राब हैं और वहाँ ऑक्सीज़न की माँग बढ़ गई है।
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क़मर वहीद नक़वी

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