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कोरोना: गांव लौट रहे दिहाड़ी मजदूरों पर जुल्म ढा रही पुलिस

कोरोना वायरस से जुड़े तमाम वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं। कुछ वीडियो में महानगरों में काम-धंधा बंद होने के बाद गांवों की ओर लौट रहे लोग अपना दर्द बता रहे हैं। कुछ और वीडियो में पुलिसकर्मी गांव जा रहे इन लोगों को मुर्गा बनाते हुए दिखाई दिये हैं या उन पर लाठी फटकार रहे हैं। 

कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारें लगातार लोगों से घरों में कैद रहने के लिये कह रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में कह चुके हैं कि 21 दिनों के लिये घर से निकलना भूल जाइये। लेकिन दिहाड़ी मजदूर जिनके पास महानगरों में रहने के लिये जगह नहीं है, अब काम भी नहीं रहा, ऐसे में वे अपने गांव की ओर चल पड़े हैं। लेकिन पुलिस को सरकार की ओर से हुक्म मिला है कि ज़रूरी सेवाओं से जुड़े लोगों के अलावा एक भी इंसान सड़क पर नहीं दिखना चाहिए। ऐसे में पुलिस ज़्यादा सख़्त होकर अपना काम कर रही है। 

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संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा होने और इस वायरस की भयावहता को देखने के बाद भी जो लोग सड़कों पर निकल रहे हैं, ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस को क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई ज़रूर करनी चाहिए। सोशल मीडिया में वायरल हो रहे वीडियो में देखा जा सकता है कि पुलिस ऐसे लोगों पर बल प्रयोग कर रही है। लेकिन दिहाड़ी मजदूर, युवा लड़के जो नौकरियां करने अपने घरों से कोसों दूर गये हैं और अब किसी भी क़ीमत पर अपने गांव, अपने लोगों के बीच पहुंच जाना चाहते हैं, उन्हें पुलिस उकड़ू बैठकर आगे जाने को कह रही है, इसे क़तई जायज नहीं ठहराया जा सकता। नीचे दिख रहा वीडियो उत्तर प्रदेश के बदायूं का है। ये लड़के ग्वालियर से पैदल आ रहे हैं लेकिन बदायूं में पुलिस उनसे घिसट-घिसट कर आगे जाने के लिये कह रही है। 

लेकिन पुलिस का यही पहलू नहीं है। कई ऐसे वीडियो हैं, जिनमें पुलिस लोगों को खाना खिलाते, लोगों के घरों में राशन और दवा पहुंचाते दिखी है। संपूर्ण लॉकडाउन के हालात में पुलिस को सरकार के आदेश का पालन भी कड़ाई से करवाना है और लोगों की मुश्किलों को भी समझना है। अगर पुलिस कड़ी कार्रवाई न करे तो लोग लॉकडाउन के बीच भी बाहर घूमते मिलेंगे और अगर कड़ी कार्रवाई करे तो उसे आलोचना का शिकार होना पड़ेगा। 

लेकिन कम से कम पुलिस गांवों की ओर पैदल लौट रहे इन लोगों का दर्द ज़रूर समझे। वह इस बात को समझे कि इन लोगों के पास शहर में काम नहीं है, दो वक़्त का खाना भी नसीब नहीं है, तभी वे शहर छोड़कर जा रहे हैं। भयंकर धूप में किलोमीटरों चलते-चलते उनके पांव में छाले पड़ चुके हैं। उनके पास खाने के लिये सिर्फ़ बिस्कुट या पानी ही होगा या ज़्यादा से ज़्यादा सूखी रोटी। ऐसे में इन्हें सजा देना क़तई जायज नहीं है।  
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यह सही है कि भारत अपनी आज़ादी के बाद से अब तक के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। ऐसे में ज़रूरत इस बात है कि हम न ख़ुद धैर्य खोयें और न परेशान हों, साथ ही दूसरों को भी हौसला दें। तभी कोरोना जैसी महामारी जिसके सामने दुनिया के ताक़तवर देश तक घुटने टेक रहे हैं, उसे हरा सकेंगे। 

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क़मर वहीद नक़वी

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