loader

सरकार ने कहा, वही मान गया कोर्ट लेकिन कहाँ से आई CAG की रिपोर्ट?

रफ़ाल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ़्रेन्स की और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी पर ज़बरदस्त हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गाँधी झूठ बोल रहे हैं और उन्हें प्रधानमंत्री से माफ़ी माँगनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री को रफ़ाल सौदे के हवाले से बार-बार चोर कहा था। संसद में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने रफ़ाल सौदे पर क्लीन चिट दे दी है तो कांग्रेस अध्यक्ष को प्रधानमंत्री और देश से माफ़ी माँगनी चाहिए।

अपनी बात पर अड़े राहुल

इस विषय पर पूरे देश में बहस शुरू हो गई है और मामला बहुत गरम हो गया है। राहुल गाँधी अपनी बात पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि रफ़ाल विमान की ख़रीद में भ्रष्टाचार हुआ है, उन्होंने फ़ैसला आने के बाद बाक़ायदा प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी को कोई क्लीन चिट नहीं दी है। भ्रष्टाचार के जो मुद्दे हैं, वे ज्यों-के-त्यों हैं। कोर्ट के फ़ैसले के बाद यह ज़रूरी हो गया है कि संयुक्त संसदीय  समिति (जेपीसी) से सारे मामले की जाँच करा ली जाए और दूध का दूध, पानी का पानी हो जाए।

क्या करती है सीएजी

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में सीएजी और पीएसी का ज़िक्र आया है। सीएजी भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत स्थापित की गई एक संवैधानिक संस्था है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) का काम है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों और उनकी संस्थाओं के राजस्व यानी जमा-खर्च की जाँच करे। सरकारी धन का अगर कहीं दुरुपयोग हुआ है तो उसे पकड़ कर उसकी रिपोर्ट सरकार को देती है।

क्या करती है पीएसी

सरकार की पाबंदी यह है कि वह सीएजी की रिपोर्ट को संसद को देती है और संसद की पीएसी उस पर बहस करके उसको लोकसभा में प्रस्तुत करती है। जब तक सीएजी की रिपोर्ट संसद में पेश नहीं होती, तब तक उसका कोई महत्व नहीं है और वह पब्लिक दस्तावेज़ के रूप में इस्तेमाल नहीं की जा सकती। पीएसी (लोकलेखा समिति) संसद की एक बहुत ही ताकतवर समिति है और उसका प्रमुख विपक्ष का कोई बड़ा नेता होता है। सभी पार्टियों के सांसद इस समिति  के सदस्य हो सकते हैं लेकिन अध्यक्ष का पद विपक्ष के पास ही रहता है। आजकल पीएसी के अध्यक्ष कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के पृष्ठ 21 पर लिखा है कि, ‘रफ़ाल की कीमत की डिटेल भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) के साथ शेयर की गई है और सीएजी की रिपोर्ट की जाँच पीएसी (लोकलेखा समिति) ने कर ली है (नीचे देखें रिपोर्ट का वह हिस्सा)।’ माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के इसी वाक्य पर सरकार, बीजेपी, कांग्रेस, प्रधानमंत्री, राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की प्रतिष्ठा दाँव पर लग गई है।
rafal deal supreme court cag report pac - Satya Hindi

पीएसी को नहीं मिली रिपोर्ट

पीएसी के अध्यक्ष माल्लिकार्जुन खडगे ने साफ़ कह दिया है पीएसी को रफ़ाल के सम्बन्ध में कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। सीएजी से ही यह भी पता लगा है कि रफ़ाल से सम्बंधित रिपोर्ट जनवरी के अंत तक सरकार को दी जाएगी क्योंकि अभी रिपोर्ट तैयार नहीं है। सवाल यह उठता है कि अगर रिपोर्ट तैयार ही नहीं है तो सरकार के अटॉर्नी जनरल ने कौनसी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा की है जिसकी बुनियाद पर ही सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला दे दिया गया है।
rafal deal supreme court cag report pac - Satya Hindi
राहुल गाँधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में साफ़-साफ़ कहा कि पीएसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को जब कोई रिपोर्ट नहीं मिली और पीएसी ने उस पर बहस ही नहीं की, तो यह कौनसी रिपोर्ट है जिसकी बात फ़ैसले में की गई है। उनका आरोप है कि सरकार ने कोर्ट को बरगलाया है और झूठ बोला है।

कौन बोल रहा है झूठ?

इस फ़ैसले के बाद देश की राजनीति में झूठ का तूफ़ान आ गया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष झूठ बोल रहे हैं और उनको देश से माफ़ी माँगनी चाहिए। राहुल गाँधी ने भी प्रधानमंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है। पार्टी के नेताओं के जो आरोप हैं, वे राजनीतिक बयानबाज़ी भी हो सकते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सीएजी की रिपोर्ट शामिल करने के मामले में तो कोई न कोई निश्चित रूप से झूठ बोल रहा है।

अदालत नहीं बोल सकती झूठ

इस बात में दो राय नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट तो झूठ नहीं बोल या लिख सकता क्योंकि अब तक ऐसा कोई भी रेकॉर्ड कहीं भी उपलब्ध नहीं है। ज़्यादा-से-ज़्यादा कहीं किसी टाइपो की ग़लती के कारण फ़ैसला अपूर्ण रह सकता है। लेकिन सभी कोर्टों की परम्परा रही है कि अगर टाइपो के कारण कोई चूक होती है तो उसको वही अदालत ठीक कर देती है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस केस में अगर किसी टाइपो की बात है तो वह ठीक हो जाएगा। इसलिए यह तय है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से किसी तरह के झूठ का कोई सवाल ही नहीं है।

जनवरी के अंत में आएगी सीएजी की रिपोर्ट

सीएजी की तरफ से भी साफ़ संकेत हैं कि उनकी रिपोर्ट जनवरी के अंत तक आएगी। यानी उनकी कोई रिपोर्ट कहीं है ही नहीं। अब झूठ का ज़िम्मा केवल दो पार्टियों पर आकर  टिक जाता है। या तो पीएसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर यह आरोप लगेगा और या सरकार पर। यह तय है कि उन दोनों में से कोई एक निश्चित तौर पर झूठ बोल रहा है। जहाँ तक पीएसी की बात है उसके पास झूठ बोलने के विकल्प नहीं हैं क्योंकि सीएजी की रिपोर्ट पीएसी के अधिकारियों के पास आती है और वही उसको अध्यक्ष के सामने प्रस्तुत करते हैं। कोई भी अफ़सर अपनी नौकरी दाँव पर लगाना नहीं चाहेगा।
पीएसी में बीजेपी सहित सभी महत्वपूर्ण पार्टियों के सांसद बतौर सदस्य शामिल हैं। अध्यक्ष, सदस्यों से चर्चा किए बिना कोई भी रिपोर्ट आगे नहीं बढ़ा सकते। इसलिए इस बात की संभावना बहुत कम है। लेकिन अगर मल्लिकार्जुन खड़गे इन बातों को छुपा रहे हैं तो वे अपनी प्रतिष्ठा का तो बहुत नुक़सान कर ही रहे हैं, उनकी पार्टी कांग्रेस का भी बहुत बड़ा नुक़सान होना तय है। उन पर तो झूठ बोलने का आरोप पक्के तौर पर लग ही जाएगा और उनके अध्यक्ष ने पिछले विधानसभा चुनावों में जो राजनीतिक बढ़त हासिल की है, वह भी मटियामेट हो जाएगी।

अटॉर्नी जनरल खड़ी करेंगे मुश्किल!

अब बात आकर टिकती है उस व्यक्ति पर जिसने सुप्रीम कोर्ट में लिख कर दिया कि ‘क़ीमत की डिटेल भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के साथ शेयर की गई है और सीएजी की रिपोर्ट की जाँच पीएसी (लोकलेखा समिति) ने कर ली है।’ जिस भी व्यक्ति ने यह लिख कर दिया है, उसके ऊपर झूठ का ज़िम्मा फ़िक्स हो जाएगा। इस केस में सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल ने रखा था। अगर साबित हो गया कि यह सारी कारस्तानी उनकी ही है तो उन्होंने सरकार को भारी मुसीबत में डाल दिया है।
अटॉर्नी जनरल अपने मन से कुछ नहीं करते। उनकी ड्यूटी है कि सरकार की बात को सुप्रीम कोर्ट में रखें। अगर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सामने ग़लतबयानी की है तो उनका तो जो होगा सो होगा ही, सरकार की प्रतिष्ठा को बहुत नुक़सान होगा और बीजेपी को घेरने के लिए कांग्रेस को बहुत बड़ा हथियार मिल चुका होगा।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शेष नारायण सिंह

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें