loader

‘ग़रीबी हटाओ’ रिटर्न्स के सहारे वापसी करेगी कांग्रेस?

48 साल बाद कांग्रेस ने एक बार फिर ‘ग़रीबी हटाओ’ जैसा नारा दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि सत्ता में आने पर वह 72 हजार रुपये सालाना यानी हर महीने 6000 रुपये ग़रीब परिवार को देगी और यह रुपये न्यूनतम आमदनी योजना के तहत दिए जाएँगे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा है कि कांग्रेस इस योजना से देश से ग़रीबी को ख़त्म कर देगी। लेकिन सवाल यह है कि न्यूनतम आमदनी योजना से क्या कांग्रेस 2019 में सत्ता में वापसी कर पाएगी? कांग्रेस अपने इस वादे से देश की 25 करोड़ लोगों को साधने का प्रयास करेगी। 
ताज़ा ख़बरें
कांग्रेस का कहना है कि ग़रीबी हटाने की दिशा में यह उसकी दूसरी बड़ी योजना साबित होगी। कांग्रेस के मुताबिक़, उसकी पहली योजना मनरेगा रही जिसके तहत देश के 14 करोड़ लोगों को रोज़गार देकर उनकी ग़रीबी कम करने का प्रयास हुआ। अब इस योजना के तहत 20 फ़ीसदी ग़रीब परिवारों को लाभ पहुँचाने का उसका उद्देश्य है। 
  • बता दें कि 48 साल पहले 1971 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा दिया था। उस समय कांग्रेस विघटन पर थी, बड़े-बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे थे। विपक्ष इंदिरा हटाओ के नारे दे रहा था तभी इंदिरा गाँधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा बुलंद किया और सत्ता में जबरदस्त वापसी की थी।
1969 में जब कांग्रेस पार्टी टूटी तो लोकसभा में इंदिरा गाँधी के साथ मात्र 228 सांसद रह गए थे। लेकिन राजाओं के प्रिवी पर्स बंद करने, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण, कोयला खदानों का अधिग्रहण जैसे उनके समाजवादी फ़ैसलों के चलते वामपंथी दलों ने इंदिरा गाँधी की सरकार को समर्थन जारी रखा। सरकारी आँकड़ों को देखें तो 1971 में ग़रीबी की दर 57 प्रतिशत थी। इंदिरा गाँधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा देकर कई योजनाएँ शुरू कीं। 1973 में श्रीमान कृषक एवं खेतिहर मजदूर एजेन्सी व लघु कृषक विकास एजेन्सी तथा 1975 में ग़रीबी उन्मूलन के लिए बीस सूत्रीय कार्यक्रम लागू किए। 
इंदिरा गाँधी द्वारा चलाए गए कार्यक्रम ग्रामीणों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और ग़रीबी घटाने में अहम साबित हुए। 1977 में ग़रीबी दर 52 प्रतिशत और 1983 में 44 प्रतिशत हो गई। इसके बाद यह 1987 में 38.9 प्रतिशत तक आ गई।

मौजूदा समय में ग़रीबी की दर लगभग 27.5 प्रतिशत ज़रूर है। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त देखें तो ग़रीबी आज भी बड़ी समस्या है और ग़रीबी के आँकड़ों को हर सरकार अपने हिसाब से बदलने की कोशिश भी करती है। देश में किसान ही नहीं, हर मेहनतकश वर्ग परेशानी के दौर से गुजर रहा है। 

रोज़गार में गिरावट ऐसी है जैसी पिछले 45 सालों में कभी नहीं रही। यानी अपनी आजीविका चलाने के लिए जद्दोजहद बहुत ज़्यादा हो चली है। महंगी स्वास्थ्य सेवा के चलते हर साल बड़ी संख्या में वे परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे चले जा रहे हैं जिनके परिवार का एक भी सदस्य किसी बड़ी बीमारी का शिकार हो जाता है। 

देश से और ख़बरें
  • बढ़ते कृषि संकट के चलते बड़े पैमाने पर छोटे व सीमान्त किसान ग़रीबी की लाइन में खड़े होने को मजबूर हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में सरकार की उद्योगपरक नीतियों के चलते आय में विषमता की बहुत बड़ी खाई देश में बन रही है और यह तेज़ी से बढ़ती जा रही है।
कांग्रेस आज सत्ता में नहीं है लेकिन किसानों में आक्रोश और युवाओं में बेरोज़गारी के मुद्दे पर उसने हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में बीजेपी से सत्ता छीनी है।
किसानों के आक्रोश को कम करने के लिए चुनाव से ठीक पूर्व मोदी सरकार ने तो 6 हजार रुपये सालाना उनके खाते में डालने शुरू कर दिए। यही नहीं साल भर में जो पैसा दिया जाना था वह मात्र तीन महीने में उनके खातों में भेजा जा रहा है जबकि देश में आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी हुई है। लेकिन अब कांग्रेस ने न्यूनतम आमदनी योजना की घोषणा करके मोदी सरकार की योजना को बौना साबित करने की कोशिश की है। 
दरअसल, राहुल गाँधी ने पहली बार न्यूनतम आमदनी योजना की बात किसानों की कर्ज माफ़ी के वादे पर छत्तीसगढ़ में हुई आभार सभा के दौरान कही थी। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी घोषणा का मजाक यह कहकर उड़ाया था कि राहुल की नानी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ की बात की थी लेकिन ग़रीबी आज तक नहीं हटी। लेकिन अब मोदी को यह भी जवाब देना पड़ेगा कि उनके कार्यकाल में कितनी ग़रीबी हटी है। 
सम्बंधित खबरें
वैसे, मनरेगा के साथ पक्षपात करने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पहले से ही आरोपों के घेरे में हैं। मनरेगा का प्रभाव ग्रामीण भारत के ग़रीबों के जीवन पर पड़ा था, इसको कोई नकार नहीं सकता। ऐसे में कांग्रेस को लोगों को यह विश्वास दिलाने की ज़रूरत है कि जैसे उसने तीन राज्यों के अलावा पंजाब व कर्नाटक में भी किसानों की कर्ज माफ़ी का वादा निभाया, वैसे ही वह न्यूनतम आमदनी योजना को भी प्राथमिकता से लागू करेगी। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें