लोकसभा चुनाव में मिली क़रारी शिकस्त के बाद जब राहुल गाँधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था तो पार्टी के सामने उनके उत्तराधिकारी को खोजने की चुनौती थी। पहले तो राहुल की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा और पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें समझाया कि वह पद से इस्तीफ़ा न दें। लेकिन जब राहुल अड़ गए तो नए अध्यक्ष के चयन के लिए दौड़-भाग शुरू हुई। कई नामों पर चर्चा चली लेकिन कोई भी नेता पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं हुआ। थक-हारकर सोनिया गाँधी को पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। सोनिया गाँधी को अंतरिम अध्यक्ष चुनने का मतलब साफ था कि पार्टी अध्यक्ष का पद खाली है और नेताओं को इस बात की उम्मीद थी कि देर-सबेर राहुल गाँधी जिद छोड़ देंगे और अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल लेंगे।
शनिवार को कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में ‘भारत बचाओ रैली’ की। रैली में राहुल गाँधी के विशालकाय कट आउट लगाये गए। रैली के रणनीतिकारों ने सोनिया, प्रियंका से ज़्यादा फ़ोकस राहुल गाँधी पर रखा। रैली को देखकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक बार फिर राहुल गाँधी को कांग्रेस की कमान सौंपी जा सकती है।
कहा जा रहा है कि ‘भारत बचाओ रैली’ के जरिये पार्टी के नेताओं ने एक बार फिर राहुल गाँधी को अध्यक्ष के रूप में प्रोजेक्ट किया है। इस रैली में कांग्रेस के बाक़ी फ्रंटल संगठनों के अलावा युवक कांग्रेस और एनएसयूआई के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में मौजूद रहे और इन्होंने राहुल गाँधी के पक्ष में माहौल भी तैयार किया।
लेकिन कांग्रेस को इस बात के लिए अपनी चूक स्वीकार करनी होगी कि 134 साल पुरानी पार्टी आज भी गाँधी-नेहरू परिवार पर ही आश्रित है और तमाम कोशिशों के बाद भी वह ऐसी लीडरशिप खड़ी नहीं कर सकी है, जिससे उस पर एक ही परिवार पर आश्रित रहने के आरोप न लगें।
फिर ग़ुस्से में दिखे राहुल
‘भारत बचाओ रैली’ में राहुल गाँधी एक बार फिर ‘एंग्री यंग मैन’ की भूमिका में दिखाई दिये। राहुल ने अर्थव्यवस्था से लेकर बीजेपी के द्वारा उनके ‘रेप इन इंडिया’ वाले बयान को मुद्दा बनाए जाने को लेकर मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला। राहुल ने इस बहाने हिंदू महासभा के नेता वी.डी. सावरकर का नाम लेते हुए अपने इरादे ज़ाहिर कर दिये कि वह अपने बयान पर माफ़ी भी नहीं माँगेंगे और बीजेपी, आरएसएस के सामने झुकेंगे भी नहीं।
मोदी, शाह पर रहे हमलावर
राहुल ने गृह मंत्री अमित शाह को नरेंद्र मोदी का असिस्टेंट बताते हुए कहा कि माफ़ी तो नरेंद्र मोदी और उनके असिस्टेंट अमित शाह को माँगनी चाहिए, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है। इसके अलावा राहुल ने नोटबंदी, जीएसटी को लेकर फिर से प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लिया।
राहुल का कमान संभालना क्यों ज़रूरी?
लोकसभा चुनाव में जोरदार शिकस्त मिलने के बाद कांग्रेस एकदम से लुंज-पुंज हो गई थी। बीजेपी नेता यह कहकर पार्टी का मजाक उड़ाते थे कि मोदी सरकार ने 70 दिनों के भीतर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया लेकिन कांग्रेस अभी तक अपना अध्यक्ष तक नहीं चुन पाई है। इसके अलावा अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पार्टी के कई नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व के स्टैंड के ख़िलाफ़ बयान दिये तो यह लगने लगा कि पार्टी के कमजोर समय में नेता आलाकमान को आंखें दिखाने लगे हैं। ऐसे में राहुल को आगे आकर पार्टी संभालनी ही होगी वरना शीर्ष नेतृत्व की पकड़ ढीली होते ही पार्टी में बिखराव शुरू हो सकता है।हरियाणा, महाराष्ट्र से मिली ऊर्जा
हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजों से कांग्रेस को थोड़ी संजीवनी मिली और उसे यह अहसास हुआ कि अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत, बढ़ती बेरोज़गारी, महंगाई जैसे मुद्दों को उठाकर वह मोदी सरकार को घेर सकती है और हरियाणा के नतीजों ने तो यह दिखाया कि पार्टी थोड़ा और जोर लगाये तो वह बीजेपी को हरा भी सकती है। इसके बाद उसे महाराष्ट्र में सरकार में भी हिस्सेदारी मिली और झारखंड के विधानसभा चुनाव में राहुल गाँधी फिर सक्रिय भूमिका में नज़र आ रहे हैं। राहुल ने बीते कुछ दिनों में अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड में आयोजित कई कार्यक्रमों में भी भाग लिया है।
‘भारत बचाओ रैली’ के बाद यह लगता है कि राहुल बीजेपी से लड़ने के लिए कमर कस चुके हैं क्योंकि नागरिकता क़ानून को लेकर देश भर में उबाल है। तमाम विपक्षी दल इसके विरोध में आवाज बुलंद कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस का पीछे रहना उसके लिए सियासी नुक़सान का सौदा होगा।
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