कोरोना के कारण हुई मौतों पर मुआवजे के भुगतान में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकारों को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर महीने में कोरोना से मरने वाले लोगों के परिवारों को 50,000 रुपये के भुगतान को मंजूरी दी थी। यह राशि उन भुगतान के अलावा दी जानी थी जिसे विभिन्न परोपकारी योजनाओं के तहत केंद्र और राज्य द्वारा भुगतान की गई। कोरोना से मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए सुप्रीम कोर्ट शुरू से ही सख्त रवैया अपनाए हुए है, लेकिन राज्य सरकारों ने इस मामले में उस तरह की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई है।
अदालत ने इसी साल जून महीने में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए को कहा था कि वह कोरोना से हताहत हुए लोगों के परिवार वालों को मुआवजा देने के नियम और राशि तय करे। इससे पहले केंद्र सरकार मुआवजा देने से इनकार कर चुकी थी।
मुआवजा देने से इनकार करने के पीछे केंद्र ने तर्क दिया था कि सभी मृतकों को मुआवजा देने से पूरी आपात राहत निधि खाली हो जाएगी। सरकार ने यह भी तर्क दिया था कि कोविड-19 के पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि आपदा प्रबंधन क़ानून में केवल भूकंप, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं पर ही मुआवजे का प्रावधान है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बार-बार तीखे सवाल करने और इसके आदेश देने के बाद केंद्र इसके लिए राजी हुआ। इस मामले में कई राज्यों में सरकारों ने कुछ लोगों को मुआवजा दिया है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की दो जजों की बेंच ने सोमवार को इसी मामले की सुनवाई की। अदालत ने महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान की सरकारों को फटकार लगाई।
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हम महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। महाराष्ट्र में 1 लाख से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं, लेकिन केवल 37,000 आवेदन प्राप्त हुए हैं। अभी तक एक भी व्यक्ति को मुआवजा नहीं दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस शाह ने कहा कि यह 'हास्यास्पद' है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जब महाराष्ट्र सरकार के वकील सचिन पाटिल ने मुआवजे का भुगतान शुरू करने के लिए और समय मांगा और कहा, 'हम जल्द ही अनुपालन पर एक हलफनामा दायर करेंगे', तो जस्टिस शाह ने उन्हें चेतावनी दी कि अदालत राज्य सरकार के ख़िलाफ़ सख्ती करेगी। उन्होंने कहा कि आप हलफनामा अपनी जेब में रखें और अपने मुख्यमंत्री को दे दें। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को तुरंत मुआवजे का भुगतान शुरू करने का आदेश दिया।
पश्चिम बंगाल के मामले में अदालत ने कहा कि 19,000 से अधिक कोविड मरीज़ों की मौत हुई है, लेकिन केवल 467 आवेदन प्राप्त हुए हैं। उनमें से केवल 110 को ही अब तक मुआवजा दिया गया है। राजस्थान को लेकर अदालत ने कहा कि राज्य में क़रीब 9,000 कोविड मरीज़ों की मौतें दर्ज की गईं, जिनमें से अब तक केवल 595 आवेदन प्राप्त हुए हैं और अभी तक किसी को मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद ही 3 दिसंबर के बाद ऑनलाइन पोर्टल स्थापित कर पाई हैं।
इससे पहले 30 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख़्ती दिखाई थी। तब केंद्र ने जो आंकड़े सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे थे उसके मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में कोरोना से 22,909 लोगों की मौत हुई थी। हालाँकि इनमें से मुआवजे के लिए सिर्फ़ 3,071 मृतकों के परिवारों ने ही आवेदन किया। उत्तर प्रदेश ही नहीं, केरल समेत बाक़ी सभी राज्यों का लगभग यही हाल है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा था कि वे केंद्र सरकार के सामने विस्तार से आँकड़े पेश करें कि कितने लोगों का दावा उनके सामने आया है और कितनों के दावे के बाद उन्हें मुआवजा दिया गया।
अदालत ने सोमवार को राज्य सरकारों को मुआवजा योजना के बारे में समाचार पत्रों, टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से व्यापक प्रचार सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया ताकि अधिक लोग सामने आगे आ सकें। मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।
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