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क्या भारत को कोरोना जाँच की रणनीति बदलने की ज़रूरत है?

भारत में कोरोना संक्रमण जाँच का सारा ज़ोर इस पर है कि उन लोगों की जाँच की जाए, जिनमें संक्रमण के लक्षण पाए गए हों। पर चीन में जो मामले सामने आए, उनमें से 44 प्रतिशत उन लोगों से संक्रमित हुए थे, जिनमें कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं दिखे थे। यह पाया गया कि संक्रमण दिखने से दो-तीन दिन पहले ही उन लोगों ने दूसरे लोगों को संक्रमित कर दिया था। 

शोध का नतीजा?

मशहूर पत्रिका ‘नेचर मेडिसिन’ ने 15 अप्रैल को एक अध्ययन रिपोर्ट छापी, जिसमें चीन के गुआंगज़ू पीपल्स हॉस्पिटल में भर्ती 94 लोगों का विस्तार से अध्ययन किया गया था।
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इस रिपोर्ट में कहा गया है : 

'हमने देखा कि गले से लिए गए नमूनों के वायरस में दूसरों को संक्रमित करने की क्षमता सबसे अधिक उस समय थी, जब उसमें लक्षण दिखने शुरू भी नहीं हुए थे। हमने अध्ययन में पाया कि 44 प्रतिशत मामलों में संक्रमण उस समय हुआ था, जब संक्रमित करने वाले व्यक्ति में लक्षण नहीं दिखे थे।’


नेचर मेडिसिन की रिपोर्ट का अंश

जिनमें लक्षण नहीं दिखे थे, उनसे संक्रमित होने वालों की तादाद सिंगापुर में 48 प्रतिशत तो चीन के तियानजिन में 62 प्रतिशत थी। यह रिपोर्ट देने वाले शोधकर्ताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन, सेंटर फ़ॉर इनफेक्शस डिजीज़ एपडेमियोलॉजी और हॉगकॉग विश्वविद्यालय के साथ मिल कर गुआंगुज़ू अस्पताल में शोध किया था। 

भारत की अलग रणनीति

भारत में जाँच सिर्फ़ उन लोगों की हो रही है, जिनमें संक्रमण के लक्षण पाए गए हैं, जो विदेश से आए हैं, जिनमें सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस हैं और वे स्वास्थ्य कर्मी जो कोरोना का इलाज कर रहे हैं। यानी भारत में उन लोगों की जाँच नहीं हो रही है, जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं हैं। अपवाद सिर्फ विदेश से आए लोग हैं। 
इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने 15 फरवरी से 2 अप्रैल के बीच सारी (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस) के लक्षण वाले 5,911 लोगों के नमूने लिए।
इसमें से 104 लोग (1.8 प्रतिशत) में कोरोना संक्रमण पाया गया। ये नमूने 20 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के 52 ज़िलों से लिए गए थे। जो 104 कोरोना संक्रमित लोग पाए गए, उनमें से 40 लोग उन इलाक़ों के थे, जहाँ कोई विदेश से नहीं आया था।
भारत में स्वास्थ्य अधिकारियों ने बार-बार कहा है कि जिनमें लक्षण नहीं देखे गए, उनसे संक्रमण के बहुत ही कम मामले हैं। इसलिए जाँच की रणनीति बदलने की ज़रूरत नहीं है। 
लेकिन ‘नेचर मेडिसिन’ ने अपने लेख में कहा है, 30 प्रतिशत से ज़्यादा संक्रमण यदि उन लोगों से हों जिनमें कोरोना के लक्षण नहीं देखे गए हों, ऐसे मामलों में रोगी को अलग-थलग करने से ही काम नहीं चलेगा। 
नेचर मेडिसिन में छपे इस शोध रिपोर्ट पर भरोसा किया जाए तो भारत को अपनी जाँच की रणनीति बदलनी होगी, उन लोगों की भी जाँच करनी होगी, जिनमें लक्षण नहीं दिखे हैं। गुआंगज़ू अस्पताल के मामले इसकी पुष्टि करते हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी

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