29-30 अगस्त को पैंगोंग त्सो झील के इलाक़े में चीन के सैनिकों की ओर से भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश के बाद सीमा पर हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। सोमवार को भारत ने आनन-फानन में फ़ैसला लेते हुए श्रीनगर-लेह हाईवे को आम लोगों के लिए बंद कर दिया। सिर्फ सुरक्षा बलों को ही इस हाईवे से जाने की इजाजत होगी। यह भी कहा गया है कि इसके आसपास रहने वाले लोगों को वहां से हटा दिया गया है।
पहले भी भारत को धोखा दे चुका चीन मई के महीने से लगातार भारतीय सीमा में घुसपैठ की हरकतें करता रहा है। 29-30 अगस्त को भी उसने पैंगोंग त्सो झील के इलाक़े में ऐसी ही कोशिश की। लेकिन भारतीय सेना ने उसकी इस कोशिश को नाकाम कर दिया।
गलवान में हुई खूनी झड़प के बाद चीन ने कई बार इस तरह के बयान दिए कि वह भारत के साथ बेहतर संबंध चाहता है लेकिन एक बार फिर उसके द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश करने के बाद उसका चेहरा बेनक़ाब हो गया है।
1962 के बाद सबसे गंभीर स्थिति
बीते हफ़्ते ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव के मौजूदा हालात 1962 के बाद सबसे गंभीर स्थिति है। उन्होंने रेडिफ़ डॉट कॉम से कहा था, ''निश्चित तौर पर 1962 के बाद यह सबसे गंभीर स्थिति है। यहाँ तक कि 45 साल बाद चीन के साथ संघर्ष में सैनिक हताहत हुए हैं। सीमा पर दोनों तरफ़ से सैनिकों की तैनाती भी अप्रत्याशित है।'
पीछे नहीं हटेगी चीनी सेना?
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने साफ़ कह दिया है कि सीमांत इलाक़ों में वह जहाँ है, वही वास्तविक नियंत्रण रेखा है और वह वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करती हुई वहीं टिकी रहेगी। भारत की ओर से भी यह साफ है कि भारत भी अपनी सेना तैनात कर वहां मजबूती से टिका रहेगा।
30 जुलाई को जिस तरह चीन के राजदूत सुन वेई तुंग ने कहा कि पैंगोंग त्सो झील का इलाक़ा चीन का है, उसके बाद सैन्य कमांडरों की बातचीत का कोई अर्थ नहीं रह गया था।
सैन्य विकल्प पर विचार का बयान
चीन के साथ कई स्तरों पर और कई बार की बातचीत नाकाम होने के बाद कुछ दिन पहले ही भारत ने रूख़ कड़ा कर लिया था। चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि चीनी सेना की घुसपैठ की समस्या के समाधान के लिए सैन्य विकल्प पर विचार किया जा सकता है।
जनरल रावत ने यह तो नहीं कहा था कि वह सैन्य विकल्प क्या है, लेकिन यह ज़रूर कहा था कि दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत नाकाम होने के बाद ही इस विकल्प पर विचार किया जा सकता है। बीते कई महीनों से चल रहे तनाव के बीच सैन्य विकल्प को लेकर भारत की ओर से यह पहला बयान आया था।
जनरल रावत ने यह बात तब कही जब भारत और चीन की सीमा के बीच 5 बार कमांडर स्तर की बातचीत हो चुकी है। चीन के सैनिक अभी भी डेपसांग और पैंगोंग त्सो इलाक़े में जमे हुए हैं और पीछे हटने से इनकार कर रहे हैं।
राजनीतिक बातचीत नाकाम
इसके पहले दोनों देशों के राजनीतिक व कूटनीतिक स्तर पर बातचीत हुई। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात की। इसके अलावा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी वांग यी से बात की। इसके अलावा चीन में भारत के राजदूत विवेक मिस्री ने भी कई स्तर पर बातचीत की।
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