सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तो सुदर्शन न्यूज़ चैनल के ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम के प्रसारण को लेकर थी, लेकिन कोर्ट ने कुछ टेलिविज़न चैनलों के ‘बेलगाम’ कार्यक्रमों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। अदालत ने आज जिस तरह की टिप्पणियाँ कीं उससे लगता है कि कुछ टेलिविज़न चैनलों ने देश को बड़ा नुक़सान पहुँचाया, सामाजिक तानेबाने को तोड़ने की कोशिश की और समाज में ज़हर घोलने का काम किया। तभी तो सुप्रीम कोर्ट ने टीआरपी के लिए मुसलिम समुदाय को बदनाम करने से लेकर किसी व्यक्ति की छवि को ख़राब करने तक, मीडिया के मालिकाना हक व उनकी कमाई की जानकारी, न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन की नियमन पर सफ़ाई, मीडिया इथिक्स और प्रेस की आज़ादी, इन सभी मुद्दों पर खरी-खरी टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट उस मामले में सुनवाई कर रहा था जिसमें सुदर्शन न्यूज़ के ‘बिंदास बोल’ में ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए 7 पूर्व नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर तीन न्यायाधीशों की बेंच सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा, ‘ऐसा लगता है कार्यक्रम का उद्देश्य मुसलिम समुदाय को बदनाम करना है और उन्हें कुछ इस तरह दिखाना है कि वे चालबाज़ी के तहत सिविल सेवाओं में घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं।’ इसके साथ ही बेंच ने उस शो को ‘बेहूदा’ क़रार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा कि किसी समुदाय को निशाना बनाने, प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाने या किसी की छवि धूमिल करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ताक़त का इस्तेमाल सही नहीं है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने सुदर्शन टीवी शो का हवाला देते हुए पूछा, ‘एंकर की शिकायत यह है कि एक विशेष समूह सिविल सेवाओं में प्रवेश पा रहा है। यह कितना घातक है? ऐसा चालबाज़ीपूर्ण आरोप यूपीएससी परीक्षाओं पर सवालिया निशान लगाता है, यूपीएससी पर संदेह पैदा करता है। बिना किसी तथ्यात्मक आधार के ऐसे आरोप, इसे कैसे अनुमति दी जा सकती है? क्या ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति एक स्वतंत्र समाज में दी जा सकती है।’
कोर्ट ने सुदर्शन टीवी के वकील श्याम दीवान से कहा,
“
आपका मुवक्किल देश को नुक़सान पहुँचा रहा है और यह स्वीकार नहीं कर रहा है कि भारत विविध संस्कृति वाला देश है। आपके मुवक्किल को सावधानी के साथ अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने की ज़रूरत है।
सुप्रीम कोर्ट बेंच
सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जाँच और रिया के मामले में कुछ चैनलों द्वारा जिस तरह की बेलगाम रिपोर्टिंग की जा रही है और जिसकी आलोचना भी की जा रही है उस दौर में न्यायाधीशों की यह आलोचना बेहद महत्वपूर्ण है।
टीआरपी का खेल!
सुनवाई के दौरान एक न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ समस्या टीआरपी की ही है’ जिसके लिए अधिक से अधिक सेंसेशनलिज़्म पैदा किया जाता है और जो लोगों की प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाता है और इसके लिए ‘अधिकार का स्वाँग’ भरा जाता है। हालाँकि इसके साथ ही कोर्ट ने सुझाव भी दिया कि क्या किया जाना चाहिए। न्यायाधीशों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पाँच प्रतिष्ठित नागरिकों का पैनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मानक बनाए। जब प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने कहा कि नियमन लागू हैं, तो न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने जवाबी सवाल किया- ‘क्या सच में? अगर चीजें इतनी ठीक-ठाक होतीं तो हम हर दिन टीवी पर वो नहीं देखते जिसे देखना पड़ रहा है।’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हमें आपसे यह पूछने की ज़रूरत है कि क्या आपका (एनबीए) लेटर हेड से आगे बढ़कर भी कुछ अस्तित्व है। जब किसी आपराधिक मामले की सामानांतर जाँच या मीडिया ट्रायल चलता है और प्रतिष्ठा धूमिल की जाती है तो आप क्या करते हैं?’
बता दें कि एनबीए यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन टेलिविज़न चैनलों के मालिकों की एक संस्था है और न्यूज़ ब्राडकॉस्टिंग स्टैंडर्स अथॉरिटी यानी एनबीएसए प्रसारण में आचार संहिता और दिशा-निर्देशों को लागू कराता है। ये दिशा-निर्देश उन चैनल के लिए होते हैं जो इसके सदस्य होते हैं।
चैनलों का नियमन कैसे हो?
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, ‘प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुँचाया जा सकता है; छवि को ख़राब किया जा सकता है। इसे कैसे नियंत्रित किया जाए? राज्य ऐसा नहीं कर सकता है।’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि निजी चैनलों का नियमन करना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल होगा।
‘शेयरहोल्डिंग पैटर्न वेबसाइट पर डालें’
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ़ ने सुझाव दिया- ‘हमें दृश्य मीडिया (टेलीविज़न) के स्वामित्व को देखने की ज़रूरत है। कंपनी का पूरा शेयरहोल्डिंग पैटर्न जनता के लिए साइट पर होना ही चाहिए। उस कंपनी के राजस्व मॉडल को भी यह जाँच के लिए रखा जाना चाहिए कि कहीं सरकार एक में अधिक विज्ञापन और दूसरे में कम तो नहीं दे रही है।’
न्यायमूर्ति जोसेफ़ ने कहा कि मीडिया ‘उन मानकों का ग़लत इस्तेमाल नहीं कर सकता है जिसकी वकालत वह ख़ुद करता है’। एंकर द्वारा प्रसारण के दौरान लिए जाने वाले समय की ओर इशारा करते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि कुछ एंकर ‘बोलने वाले को म्यूट कर देते हैं’ और सवाल पूछते हैं।
केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि एक पत्रकार की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। उन्होंने कहा, ‘प्रेस को नियंत्रित करना किसी भी लोकतंत्र के लिए विनाशकारी होगा।’ मेहता ने कहा, “आपने उन कार्यक्रमों को देखा होगा जहाँ 'हिंदू आतंक' को उजागर किया गया था। सवाल यह है कि अदालतें किस हद तक सामग्री के प्रकाशन को नियंत्रित कर सकती हैं।”
सरकारी वकील ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा एक ‘समानांतर मीडिया’ है जहाँ एक लैपटॉप और एक पत्रकार लाखों लोगों को अपनी सामग्री दिखा सकता है।
निष्पक्ष पत्रकारों की ज़रूरत
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि पत्रकारिता के लिए स्वतंत्रता ‘असीमित नहीं है’। उन्होंने कहा कि एक पत्रकार को भी अन्य नागरिकों की तरह ही स्वतंत्रता मिली है। न्यायाधीश ने कहा, ‘अमेरिका की तरह पत्रकारों के लिए स्वतंत्रता का कोई अलग प्रावधान नहीं है। हमें ऐसे पत्रकारों की ज़रूरत है जो अपनी बहस में निष्पक्ष हों।’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा- ‘जब पत्रकार काम करते हैं तो उन्हें निष्पक्ष टिप्पणी के ईर्द-गिर्द काम करना चाहिए। आपराधिक जाँच में देखें, मीडिया अक्सर जाँच के केवल एक हिस्से पर ध्यान केंद्रित करता है।’ उन्होंने कहा कि ‘राष्ट्र के भीतर जो सर्वश्रेष्ठ’ हैं उनको पहले बहस करनी चाहिए और फिर मानक सुझाने चाहिए। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अब एक एंकर एक समुदाय को निशाना बना रहा है। चूँकि हम एक लोकतंत्र हैं तो हमें कुछ मानक तय करने होंगे।’
बता दें कि सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘यूपीएससी जिहाद’ पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई 17 सितंबर को करने का आदेश दिया है।
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