सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद मामले में पाँचवें दिन मंगलवार को इस मुद्दे पर सुनवाई हुई कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर का अस्तित्व था या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ज़मीन पर कब्ज़े के सबूत पेश करने को कहा। रामलला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन ने तर्क रखा कि उस जगह पहले से ही राम मंदिर था और उसी पर मसजिद बनाई गई थी।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पाँच जजों की संविधान पीठ ने पूछा कि रामलला का जन्मस्थान कहाँ है? इस पर वैद्यनाथन ने दलील की कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मसजिद के मुख्य गुंबद के नीचे वाले स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान माना है। रामलला की ओर से यह भी दावा किया गया कि मुसलिम पक्ष की तरफ़ से विवादित स्थल पर उनका मालिकाना हक़ साबित नहीं किया गया था। इसके बाद कोर्ट ने साफ़ तौर पर पूछा कि आप सुन्नी वक़्फ बोर्ड के दावे को नकार रहे हैं, आप अपने दावे को कैसे साबित करेंगे?
रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि लोग बाहर से भारत आए थे और उन्होंने मंदिरों को तोड़ा था। किसी भी रिपोर्ट में वहाँ पर नमाज़ किए जाने का ज़िक्र नहीं है। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने हिंदू पक्ष की दलील पर आपत्ति की और कहा कि अभी तक अदालत में कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया। सभी दलीलें केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय पर आधारित हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने धवन से कहा कि वह मुसलिम पक्षों का प्रतिनिधित्व करें। दूसरे पक्ष की बहस में बाधा न डालें।
सुप्रीम कोर्ट कर रहा है 14 अपीलों की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट का यह फ़ैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। यही कारण है कि इस मामले के ख़िलाफ़ कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मई 2011 में हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसी मामले में यह सुनवाई चल रही है।
मध्यस्थता कमेटी विफल
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में समाधान के लिए इसी साल 8 मार्च को मध्यस्थों की एक कमेटी बनाई थी। जस्टिस एफ़. एम. कलीफ़ुल्ला (रिटायर्ड) की अध्यक्षता में बनी कमेटी में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाँचू को भी शामिल किया गया था। समिति ने मामले की मध्यस्थता को लेकर रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी। समिति ने सभी पक्षों से कहा था कि वे इसकी गोपनीयता को बनाए रखें। लेकिन मध्यस्था कमेटी विफल रही।
मध्यस्थता और बातचीत के ज़रिए अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिशें पहले भी कई बार हुईं हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 3 अगस्त, 2010 को सुनवाई के बाद सभी पक्षों के वकीलों को बुला कर यह प्रस्ताव रखा था कि बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझाने की कोशिश की जाए। लेकिन हिन्दू पक्ष ने बातचीत से मामला सुलझाने की पेशकश को ख़ारिज़ कर दिया था।
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