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विजय तेंदुलकर के नाटक 'जात ही पूछो साधु की' पर 'अघोषित प्रतिबंध' क्यों?

प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंदुलकर के नाटक 'जात ही पूछो साधु की' का मंचन दशकों से होता रहा है, लेकिन अब विवाद हुआ है। इस विवाद के बाद कला से जुड़े लोगों ने इस नाटक पर 'अघोषित प्रतिबंध' के ख़िलाफ़ ऑनलाइन याचिका शुरू की है। यह विवाद बजरंग दल की वजह से हुआ। बजरंग दल का आरोप है कि इस नाटक में हिंदू संतों पर निशाना साधा गया है। आयोजकों का कहना है कि नाटक के नाम को देखकर इसे हिंदू-विरोधी और भारतीय संस्कृति-विरोधी बताकर विरोध किया जा रहा है जबकि सचाई कुछ और है। इसी विरोध के कारण मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में आयोजित किया जाने वाले पांच दिवसीय छतरपुर थिएटर फेस्टिवल को इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) ने रद्द कर दिया। 

छतरपुर में वह थिएटर फ़ेस्टिवल 28 फ़रवरी से 4 मार्च तक होना था। लेकिन कथित तौर पर बजरंग दल की धमकी के कारण उसे रद्द करना पड़ा। धमकी दी गई थी कि अगर उस फेस्टिवल में विजय तेंदुलकर के लिखे नाटक ‘जात ही पूछो साधु की’ का मंचन हुआ तो  आयोजन को नहीं होने दिया जाएगा।

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70 के दशक से ही ‘जात ही पूछो साधु की’ का मंचन किया जाता रहा है लेकिन अब तक इसके हिंदू-विरोधी या भारतीय संस्कृति विरोधी होने का ऐसा विवाद नहीं हुआ था। अब जो ऑनलाइन याचिका शुरू की गई है उसमें भी ऐसे ही सवाल उठाए जा रहे हैं। कला से जुड़े उद्यमी संजोय रॉय द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन याचिका में कहा गया है, 'नाटक और फेस्टिवल को रद्द करना सभी थिएटर प्रेमियों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है'। रोहिणी हट्टंगडी, लिलेट दुबे और अतुल कुमार सहित थिएटर के दिग्गजों ने नाटक पर 'अनौपचारिक प्रतिबंध' का विरोध करते हुए याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं। 

'टीओआई' की रिपोर्ट के अनुसार इप्टा ने कहा है कि नाटक विशुद्ध रूप से व्यंग्यपूर्ण थे और 'आपत्ति करने वालों' ने स्वीकार किया है कि उन्हें पढ़ा या देखा नहीं गया था। बजरंग दल के शिवहरे ने 'टीओआई' को बताया, 'तेंदुलकर के नाटक का शीर्षक स्पष्ट था। साधु शब्द इसका हिस्सा क्यों होना चाहिए?' नाटक के निर्देशक ने कहा कि 'साधु' का अर्थ 'सज्जन होता है, जो कि इस शब्द का हिंदी में अक्सर उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि इसका आस्था के साथ कोई लेना-देना नहीं था। 

रिपोर्ट के अनुसार शिवहरे ने कहा कि टुकड़े-टुकड़े गैंग कला के बहाने प्रोपेगेंडा कर रहा है, यह युवा लोगों का ब्रेनवॉश करने का एक प्रयास है।

मध्य प्रदेश के लिए इप्टा के महासचिव शिवेंद्र शुक्ला ने कहा कि इप्टी की 'वामपंथी विचारधारा' से बजरंग दल को समस्या है।

शिवेंद्र शुक्ला और ‘जात ही पूछो साधु की’ के निर्देशक शांतनु पांडे ने आरोप लगाया कि उन्हें बजरंग दल से धमकी मिली लेकिन पुलिस से सुरक्षा प्रदान नहीं की गई। हालाँकि इन आरोपों पर छिंदवाड़ा के एसपी सचिन शर्मा ने कहा कि आयोजकों की तरफ़ से न कोई सूचना और न ही कोई आवेदन दिया गया था। उन्होंने कहा कि ऑडिटोरियम या कार्यक्रम के लिए अनुमति लेना ज़रूरी होता है।

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देश भर में 'जात ही पूछो साधु की' के 400 से 500 शो कर चुकी अंक थिएटर ग्रुप की प्रीता ठाकुर ने कहा कि 'इस नाटक में कुछ भी बुरा नहीं है। यह धर्म के बारे में नहीं है और हिंदू विरोधी तो बिल्कुल ही नहीं है। तेंदुलकर एक पुरुष और एक महिला की बेबसी को खूबसूरती से उजागर करते हैं। वास्तव में नाटक एक हास्य है और समाज पर एक टिप्पणी करता है।' 

70 के दशक से हो रहा है मंचन 

नाटककार विजय तेंदुलकर का यह नाटक ‘जात ही पूछो साधु की’ मराठी नाटक ‘पाहिजे जातीचे’ का हिन्दी अनुवाद है। ‘पाहिजे जातीचे’ को 1976 में पहली बार मंचन किया गया था। इसमें से एक पात्र का अभिनय नाना पाटेकर ने भी किया था। आख़िरी बार इसका मंचन मध्य प्रदेश के छतरपुर में ही 7 नवंबर को हुआ था। मध्य प्रदेश में ही अब तक कई बार इसका मंचन किया जा चुका है। इप्टा की ओर से कहा गया है कि नाटक एक कटाक्ष है और भारतीय समाज में जात-पात और पितृप्रधान सत्ता जैसी कुछ बुराइयों को उजागर करता है।

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हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब विजय तेंदुलकर के नाटकों पर विवाद हुआ है। 'गिद्ध' नाटक पर तो 1970 के दशक में ही काफ़ी विवाद हुआ था। 

शाब्दिक हिंसा और अश्लील संवादों का इल्जाम झेलने वाला उनका नाटक ‘गिद्ध’, लंबे अरसे तक रंगमंच पर खेले जाने की बाट जोहता रहा। बावजूद इसके उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। आख़िरकार ‘गिद्ध’ खेला गया और उसे ज़बर्दस्त कामयाबी मिली। कमोबेश यही हालात उनके नाटक ‘सखाराम बाइंडर’, ‘मच्छिंद मोरे के जानेमन’ और ‘बेबी’ के प्रदर्शन के वक़्त भी बने। इन नाटकों में कथित अश्लील दृश्यों एवं हिंसक शब्दावली के प्रयोग पर शुद्धतावादियों ने कड़े एतराज़ उठाए। लेकिन उन्हें हर बार मुँह की खानी पड़ी।

‘घासीराम कोतवाल'

साल 1970 में लिखे गए ‘घासीराम कोतवाल’ ने तो भारतीय रंगमंच में हलचल मचा दी। नाटक ‘घासीराम कोतवाल’ में विजय तेंदुलकर ने मराठी लोक संगीत और पारंपरिक रंगकर्म को आधार बनाते हुए, जिस तरह उसमें आधुनिक रंगमंच की तकनीकी बारीकियों का इस्तेमाल किया, वह मराठी रंगमंच में पहला प्रयोग था। इस नाटक ने मराठी रंगमंच की पूरी तसवीर ही बदल कर रख दी और आज वह अपने आप में एक इतिहास है।
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क़मर वहीद नक़वी

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