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क्या 6.26% महँगाई दर पर हमें खुश होना चाहिए?

अर्थनीति के जानकार और रिजर्व बैंक के कामकाज पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ इस आँकड़े से काफ़ी उत्साहित हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ज़्यादातर जानकारों को महँगाई में और तेज़ उछाल की आशंका थी।
आलोक जोशी

महँगाई के नए आँकड़े आ गए हैं। जून महीने में महँगाई बढ़ने की दर यानी मुद्रास्फीति की दर में मामूली गिरावट दर्ज हुई है।

मई में यह दर 6.3% थी, जबकि जून में घटकर 6.26% हो गई है। आम आदमी की नज़र से देखेंगे तो यह खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसी बात होगी।

लेकिन अर्थनीति के जानकार और रिजर्व बैंक के कामकाज पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ इस आँकड़े से काफ़ी उत्साहित हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ज़्यादातर जानकारों को महँगाई में और तेज़ उछाल की आशंका थी।

अलग अलग चैनलों और अख़बारों या एजेंसियों के सर्वे में यह आँकड़ा 6.5 से लेकर 6.9 प्रतिशत तक होने के अनुमान लगाए गए थे। 

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क्या खुश हुआ जाए?

इसीलिए यह आँकड़ा इन सबके लिए एक सुखद आश्चर्य की तरह आया है। अब भी महंगाई की दर चार से छह प्रतिशत के बीच नहीं है, यानी रिजर्व बैंक ने महँगाई के लिए जो लक्ष्य रखा हुआ है उस दायरे से यह अब भी ऊपर है।

यानी ख़बर ऐसी नहीं है कि महँगाई पर आरबीआई की चिंता ख़त्म हो जाए।

ज़्यादातर जानकारों को लगता है कि चिंता के बावजूद रिज़र्व बैंक अगले महीने की पॉलिसी में ब्याज दरें बढ़ाने की नहीं सोचेगा, क्योंकि यह महँगाई इतनी ज़्यादा नहीं है कि इसके लिए ग्रोथ की बलि दी जाए।

क्या हाल है जेब का?

यह तो मैक्रोइकोनॉमी यानी देश की अर्थव्यवस्था का हाल देखनेवालों की राय है। मगर हमारी आपकी जेब का हाल देखना हो तो यह जानना ज़रूरी है कि जहाँ खुदरा मँहगाई का आंकड़ा मई के मुक़ाबले जून में गिरा है।

वहीं खाद्य पदार्थों की खुदरा महँगाई का आँकड़ा इस महीने भी बढ़ा है और यह 5.01% से बढ़कर 5.15% हो गया है।

indian economy clocks inflation rate of 6.26 per cent - Satya Hindi
ध्यान देने की बात यह है कि जो बढ़त यहाँ दिखती है वो साल भर पहले के दामों के मुक़ाबले होती है। और पिछले साल मई में खाने पीने की महँगाई 9.।2% और जून में करीब पौने नौ प्रतिशत थी। यानी यह बढ़त पहले से काफ़ी चढ़े हुए भाव के ऊपर है।पिछले साल इसके बाद नवंबर तक यह आँकड़ा नौ प्रतिशत से नीचे नहीं आया था बल्कि सितंबर और अक्तूबर में तो यह 10.68 और 11.07% तक पहुंच चुका था। तो अब जो भी बात होगी इसके ऊपर की ही होगी।
खाने पीने की चीज़ों के भीतर देखें तो अनाज की महँगाई में कुछ गिरावट है और सब्जियों की महँगाई दर तो शून्य से नीचे 0.7% चली गई। इसका मतलब हुआ कि सब्जियों का दाम पिछले साल के इसी महीने के मुक़ाबले कुछ कम हुए है।

ख़तरे के निशान से ऊपर

दूध और चीनी की महँगाई भी काफ़ी कम है, हालांकि यह दूध का दाम बढ़ने से पहले के आँकड़े हैं। लेकिन दूसरी तरफ दालों में 10 प्रतिशत, फलों में 11.82%, अंडे की महंगाई में करीब 20 प्रतिशत और सबसे ज़्यादा खाने के तेलों की महंगाई दर 34.78% पर ख़तरे के निशान से बहुत ऊपर दिखाई पड़ रही है।

खाने पीने की चीज़ों से बाहर जहां सबसे फिक्र की बात दिख रही है, वो ख़बर सबको पहले से ही पता थी। लेकिन अब उसका असर देखिए।हेल्थ यानी स्वास्थ्य सुविधाओं की महंगाई दर 7.71% पर और ईंधन व बिजली की महँगाई दर 12.68% पर है। जबकि ट्रांसपोर्टेशन और कम्युनिकेशन में यह आँकड़ा 11.56% पर है।

ये दोनों आँकड़े - ईंधन और माल भाड़े की महंगाई बेहद ख़तरनाक हैं, क्योंकि यही आगे जाकर करीब करीब हर चीज़ की महँगाई बढ़ाने का काम करती हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी ख़बर नहीं है, ऐसा भी नहीं है कि सरकार को इस बारे में चेताया नहीं गया। लेकिन इसके बाद भी पेट्रोल डीज़ल के दाम जिस अंदाज़ में बढ़ रहे हैं, आने वाले महीनों में महंगाई की तसवीर क्या होगी, समझना मुश्किल नहीं है।
इस वक्त रिजर्व बैंक महंगाई रोकने के लिए ब्याज दर बढ़ाने का फॉर्मूला भी आसानी से नहीं आजमा सकता क्योंकि कोरोना की मार से बेहाल अर्थव्यवस्था को सहारे की ज़रूरत है, धक्का लगाने की ज़रूरत है, ब्याज बढ़ाकर उसकी स्पीड पर ब्रेक लगाने की नहीं।
(बीबीसी हिन्दी से साभार)
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