कोरोना से मुक़ाबले की लड़ाई में अब रिज़र्व बैंक भी उतर आया है। सरकार ने ग़रीबों के लिए एलान किए तो अब रिज़र्व बैंक के फ़ैसले से मध्य वर्ग के एक हिस्से और व्यापारी वर्ग को कुछ राहत मिलेगी।
रिज़र्व बैंक ने कहा है कि वह चार मोर्चों पर कोरोना संकट से मुक़ाबले का प्रयास कर रहा है-
- सिस्टम में इतनी नकदी रखने की कोशिश ताकि कोरोना से मची उथल-पुथल के बावजूद वित्तीय बाज़ार और संस्थान सामान्य तरह से चलते रहें।
- यह सुनिश्चित करना कि महामारी के असर के बावजूद प्रभावित लोगों को बैंक क़र्ज़ आसानी से मिल सके और मिलता रहे।
- भुगतान में राहत देकर और वर्किंग कैपिटल आसानी से उपलब्ध करा कर कोविड19 से पैदा हुई आर्थिक दिक्कतों को कम करने का इंतज़ाम।
- बीमारी के भयानक प्रसार के कारण बाज़ार में मची उठापटक को देखते हुए बाज़ार के कामकाज के तौर-तरीक़ों में ज़रूरी सुधार लागू करना।
अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से देखें तो रिज़र्व बैंक के एलान से बैंकिंग व्यवस्था में तीन लाख 74 हज़ार करोड़ रुपए की नकदी निकल आएगी। बाज़ार में या इकोनॉमी में इस्तेमाल के लिए। ये क़दम उठाने की ज़रूरत क्यों थी? क्योंकि रिज़र्व बैंक को साफ़ दिख रहा है कि आगे अर्थव्यवस्था के लिए भारी संकट का समय आ रहा है। ग्रोथ रेट का अनुमान तो नहीं दिया गया लेकिन इतना ज़रूर कहा गया है कि अगले पंद्रह महीने तक तो ग्रोथ ख़राब रहने का डर है ही। उससे आगे भी आर्थिक भविष्य अनिश्चित है। आज सुबह ही क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने भारत की ग्रोथ रेट के अनुमान में तगड़ी कटौती की है। हालाँकि सिर्फ़ सत्रह दिन पहले मूडीज़ ने भारत की सालाना जीडीपी ग्रोथ दर का अनुमान घटाकर 5.3 पर्सेंट किया था। यानी हाल अच्छे नहीं थे। लेकिन अब कोरोना संकट के बाद तो उसने इसे बुरी तरह काटकर 2.5% पर पहुँचा दिया है। रिज़र्व बैंक और मूडीज़ के बयान को पढ़ें तो साफ़ है कि हाल बेहद ख़राब हैं।
और हाल ख़राब हैं, ये देखने के लिए दरअसल ऐसे किसी एलान की ज़रूरत भी नहीं थी। अपने चारों तरफ़ दिख तो रहा है। सब कुछ बंद है। न कमाई, न ख़र्च। ऐसे में अर्थव्यवस्था का चक्का कैसे घूमेगा? यह कहना भी मुश्किल है कि किस क़दम का कितना असर होगा। लेकिन यह तो साफ़ दिख रहा है कि सबको मदद की ज़रूरत है। ग़रीब से लेकर अमीर तक। ग़रीबों के लिए वित्तमंत्री ने कई क़दमों का एलान एक ही दिन पहले किया है।
और अब रिज़र्व बैंक ने कुछ दूसरे तबक़ों को राहत देने की कोशिश की है। इनमें एक एलान है जिससे लाखों परिवारों को राहत मिल सकती है।
आरबीआई ने बैंकों को छूट दे दी है कि वे ईएमआई के भुगतान को तीन महीने तक के लिए माफ कर सकते हैं।
रिज़र्व बैंक की घोषणा में कहा गया है कि लंबी अवधि के क़र्ज़ की किस्त चुकाने के लिए तीन महीने का मोरेटोरियम दिया जा सकता है। यानी कंपनियों के लिए हुए बड़े-बड़े लोन पर क़र्ज़ की किस्त अगर तीन महीने तक न आई तो उसे एनपीए या डूबत खाते में नहीं डाला जाएगा। इससे इतना तो बिल्कुल साफ़ है कि जितने लोगों ने घर का क़र्ज ले रखा है उन्हें तीन महीने तक ईएमआई चुकाने से छूट मिल जाएगी। मगर यह साफ़ नहीं है कि इन तीन महीनों में उन पर ब्याज चढ़ता रहेगा या उससे भी छूट मिलेगी।
इसी तरह एक और साफ़ एलान है कि जिन लोगों ने भी वर्किंग कैपिटल के लिए क़र्ज़ ले रखा है या कैश क्रेडिट लिमिट ले रखी है उन पर तीन महीने तक ब्याज नहीं जोड़ा जाएगा। इससे बहुत बड़ी संख्या में व्यापारियों को लाभ होगा। बड़े से लेकर छोटे तक। रिज़र्व बैंक की तरफ़ से यह फ़ैसला ज़रूरी था ताकि इनको राहत भी मिल सके और उनकी क्रेडिट हिस्ट्री और सिबिल रेटिंग पर भी असर न पड़े।
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