नरेंद्र मोदी सरकार के बीते 5 साल के शासनकाल में बेरोज़गारी की दर दूनी हो गई है और गाँवों में इसमें 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह हम नहीं कह रहे हैं, ख़ुद सरकार कह रही है।
केंद्र सरकार ने संसद में एक सवाल के जवाब में कहा कि साल 2013-14 में बेरोज़गारी की दर 2.9 प्रतिशत थी, जो साल 2017-18 में 5.3 प्रतिशत हो गई। इसी दौरान गाँवों में बेरोज़गारी 50 प्रतिशत बढ़ी।
श्रम व रोज़गार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने कांग्रेस के कुमार केतकर के एक सवाल के जवाब में राज्यसभा में कहा कि इस 2015-16 में बेरोज़गारी 4.9 प्रतिशत से 7.7 प्रतिशत हो गई। मंत्री ने कहा कि यह रिपोर्ट पीरियॉडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे यानी पीएलएफ़एस के जुटाए आँकड़ों पर आधारित है।
क्या है सर्वे में?
एक दूसरे कांग्रेस सदस्य आनंद शर्मा ने सरकार से पूछा कि क्या आर्थिक गति धीमी होने की वजह से बेरोज़गारी की दर बढ़ कर 8.5 प्रतिशत तक पहुँच गई है? मंत्री ने इसके जवाब में सिर्फ़ इस सर्वे की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस दौरान स्त्रियों की बेरोज़गारी कम हुई है, लेकिन पुरुषों में बढ़ी है। संतोष गंगवार ने कहा कि सरकार ने रोज़गार के मौक़े पैदा करने के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया है। इसके साथ ही सरकार ने मनरेगा, ग्रामीण कौशल योजना, अत्योदय योजना जैसी सरकारी योजनाओं को ज़्यादा पैसे दिए ताकि रोज़गार के मौक़े पैदा किए जा सकें। मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत बग़ैर किसी कोलैटरल के 10 लाख रुपये तक के कर्ज दिए गए, जिससे छोटे-छोटे व्यवसाय को बढ़ाना मिला और रोज़गार का सृजन हुआ।
दूसरी ओर, ग्रामीण इलाक़ों में सितंबर में ख़त्म हुई तिमाही में माँग और खपत बढ़ी है। उपभोक्ता वस्तुओं पर शोध करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी कैंटर वर्ल्डपैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जुलाई-सितंबर में यह खपत 4.2 प्रतिशत बढ़ा है, बीते साल इसी दौरान इसमें 2.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी।
इस दौरान कुल मिला कर बाज़ार 3.1 प्रतिशत बढ़ा, जबकि बीते साल इसी दौरान 1.7 प्रतिशत कम हुआ था।
समझा जाता है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद इस वित्तीय वर्ष के दौरान 5 प्रतिशत की दर से ही बढ़ेगा। यह बीते 6 साल की न्यूनतम बढ़ोतरी होगी। इस बीच
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में कहा है कि भारत में आर्थिक गतिविधियाँ धीमी ज़रूर हुई हैं, पर मंदी नहीं आई है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत में मंदी की कोई संभावना नहीं है।
क्या कहना है वित्त मंत्री का?
उन्होंने तर्क दिया कि 2009-14 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत थी, जो 2014-19 के दौरान बढ़ कर 7.5 प्रतिशत हो गई।
याद दिला दें कि 2009-14 के दौरान मनमोहन सिंह की सरकार थीं और उसके बाद से नरेंद्र मोदी की सरकार है। निर्मला सीतारमण के कहने का मतलब यह है कि जीडीपी वृद्धि दर मनमोहन सिंह के समय की तुलना में ज़्यादा है, यानी पहले से अधिक तेज़ी से विकास हो रहा है।
वित्त मंत्री ने एक और दिलचस्प आँकड़ा पेश किया। उन्होंने कहा कि 2014-19 के दौरान 283.90 अरब डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ, जबकि 2014-19 के दौरान 304.20 अरब डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ। यानी, देश में निवेश पहले से अधिक हुआ है, ज़ाहिर है, आर्थिक गतिविधियाँ भी पहले से तेज़ ही हुई हैं।
6 साल के न्यूनतम स्तर पर जीडीपी
अप्रैल-जून 2019 की यह जीडीपी वृद्धि दर पिछले साल इसी तिमाही की वृद्धि दर 8 फ़ीसदी की अपेक्षा काफ़ी कम है। पाँच फ़ीसदी की यह वृद्धि दर 25 क्वार्टर में सबसे कम है। सबसे बड़ी गिरावट विनिर्माण क्षेत्र में आई है। इसमें सिर्फ़ 0.6 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है जो पिछले साल इसी अवधि की वृद्धि दर 12.1 फ़ीसदी से काफ़ी कम है।
विश्लेषकों का भी कहना है कि गिरावट के लिए मुख्य तौर पर उपभोक्ताओं की कमज़ोर माँग और कमज़ोर निजी निवेश ज़िम्मेदार है।
क्या कहना है रिज़र्व बैंक का?
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने 8 अगस्त को अप्रैल-सितंबर के दौरान अर्थव्यवस्था के 5.8-6.6 फ़ीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई थी। हालाँकि यह उसके जून की 6.4-6.7 फ़ीसदी के अनुमान से भी कम थी। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 4 अक्टूबर को इस वित्तीय वर्ष की अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर जारी की। उसने जीडीपी वृद्धि दर में कटौती कर दी है। आरबीआई ने इसे 6.9 प्रतिशत से कम कर 6.1 प्रतिशत कर दिया है।
राजनीतिक कारणों से ग़लत दावे करने की बात तो फिर भी समझ में आती है, पर जब किसी तरह की कोई राजनीतिक मजबूरी न हो, सामने कोई बड़ा चुनाव न हो, सरकार के पास पूर्ण बहुमत हो, एकदम लुंजपुंज पड़ा विपक्ष हो, फिर सरकार क्यों सच नहीं मानती, सवाल तो यह है। यदि मजबूत सरकार भी मजबूत फ़ैसले नहीं ले तो क्या किया जाए, सवाल यह है। यदि ऐसी सरकार ठोस कदम न उठाए तो अर्थव्यवस्था को कैसे सुधारा जा सकता है, यह चिंता की बात है। निर्मला सीतारमण का बयान अधिक चिंताजनक इस लिहाज से है।
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