जम्मू-कश्मीर में पाबंदी लगे 50 दिन से ज़्यादा हो गए, लेकिन लोगों में ख़ौफ़ कम नहीं हुआ है। आख़िर परिवारों को यह डर क्यों लगा रहता है कि कोई घर से बाहर निकले तो वह लौट भी पाएगा या नहीं? ऐसा डर क़रीब-क़रीब हर परिवार के साथ है। जम्मू-कश्मीर में आम लोगों के साथ क्या-क्या हो रहा है, इस पर एक रिपोर्ट आई है। यह रिपोर्ट तैयार की है एक ऑल-वुमन फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग टीम ने। यह महिलाओं की टीम है जो अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद जम्मू-कश्मीर में लगाई गई पाबंदी के बाद की स्थिति का जायजा लेने गई थी। यह ग़ैर-सरकारी टीम है और इसने स्वतंत्र रूप से काम किया है। इस टीम ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों से मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग शहर की रहने वाली तहमीना ने हाल ही में अपने पति अब्दुल हलीम से कहा, ‘हमें एक और बच्चे की प्लानिंग करनी चाहिए। अगर हमारा फैज़ मारा गया तो कम से कम हमारे पास एक बच्चा तो रहेगा।’
हाल शोपियाँ, पुलवामा, बांदीपोरा का
17-21 सितंबर तक टीम ने अस्पतालों, स्कूलों, घरों, बाज़ारों में गई और ग्रामीण लोगों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी पुरुषों, महिलाओं, युवाओं और बच्चों से बात की। महिला टीम की रिपोर्ट लोगों के ऐसे ही हालात के ज़िक्र से भरी पड़ी है। चाहे वह श्रीनगर हो या शोपियाँ, पुलवामा और बांदीपोरा ज़िले, सभी जगह से ऐसी ही रिपोर्टें आईं। पाँच महिलाओं की टीम में नेशनल फ़ेडरेशन इंडियन वुमन से पंखुड़ी ज़हीर, एनी राजा, कंवलजीत कौर, प्रगतिशील माहिला संगठन से पूनम कौशिक और मुसलिम महिला मंच से सईदा हमीद शामिल हैं। टीम ने राज्य की अपनी यात्रा के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है।रात 8 बजे के बाद लाइट जलाने पर पाबंदी?
‘द वायर’ के अनुसार, टीम ने रिपोर्ट को 43 दिनों तक पाबंदी झेलने वाले आम लोगों से बातचीत को ‘चश्मदीद गवाही’ क़रार दिया है। टीम ने पाया, ‘इस दौरान बाज़ार बंद रहे, होटल, स्कूल, कॉलेज और दूसरे संस्थान भी बंद रहे, सड़कें खाली रहीं। जैसे ही एयरपोर्ट से बाहर आए हमें लगा कि यह दंडात्मक माहौल है जिसमें खुले रूप से साँस लेना भी दूभर हो।’
रिपोर्ट में इस बात का भी ज़िक्र है कि चार ज़िलों में लोगों को रात में क़रीब 8 बजे लाइटें बंद करनी पड़ती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, “बांदीपोरा में हमने एक युवा लड़की को देखा जिसने लाइट जलाए रखने की ग़लती कर दी ताकि वह परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ाई कर सके इस उम्मीद में कि उसका स्कूल जल्द ही खुल जाएगा। 'कर्फ्यू' के इस उल्लंघन से नाराज़ सेना के जवान दीवार फाँद कर अंदर घुसे। घर में सिर्फ़ दो पुरुष, पिता और पुत्र थे, दोनों को पूछताछ के लिए ले जाया गया। ‘क्या पूछताछ?’ इस पर किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं की। तब से दोनों हिरासत में हैं।”
महिला टीम ने बांदीपोरा ज़िले के एक गाँव की ज़रीना के हवाले से लिखा, ‘हमारा मानना है कि पुरुषों को शाम 6 बजे के बाद घर के अंदर रहना चाहिए। शाम के बाद आदमी या लड़का बाहर दिखने पर यह एक बहुत बड़ा जोख़िम होता है। अगर पूरी तरह से ज़रूरी है तो हम महिलाएँ बाहर जाती हैं।’
किशोर भी हिरासत में!
लोगों के बयानों पर रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘14 या 15 वर्ष की आयु के लड़कों को भी ले जाया गया, यातनाएँ दी गईं, क़रीब 45 दिनों तक। उनके कागजात छीन लिए जाते हैं, परिवारों को सूचित नहीं किया जाता है। पुरानी एफ़आईआर बंद नहीं हुई हैं। फ़ोन छीन लिए जाते हैं; उन्हें कहा जाता है कि सेना के शिविर से ले लें...।’
महिला टीम की रिपोर्ट के अनुसार, ‘एक महिला ने कहा कि वे कैसे उसके 22 वर्षीय बेटे के लिए आए। लेकिन चूँकि उसका हाथ पर प्लास्टर चढ़ा था, इसलिए उन्होंने उसकी जगह 14 साल के बच्चे को उठा लिया। दूसरे गाँव में हमने सुना कि दो लोगों को बेरहमी से पीटा गया था। कोई कारण नहीं। 20 दिनों के बाद बुरी तरह टूटा हुआ एक लौट आया। दूसरा अभी भी हिरासत में है।'
कश्मीर गई महिला टीम को बताया गया कि एक अनुमान के अनुसार क़रीब 13,000 लड़कों को इस पाबंदी के दौरान उठा लिया गया।
बता दें कि 16 सितंबर को जम्मू-कश्मीर में किशोरों को हो रही दिक़्क़तों की शिकायत पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि यदि ज़रूरत पड़ी तो वह जम्मू-कश्मीर जाएँगे। उन्होंने उस शिकायत पर यह बात कही जब बच्चों के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता ने एक याचिका में आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट तक पहुँचने में दिक्कतें आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ईनाक्षी गांगुली द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था। गांगुली ने याचिका में आरोप लगाया कि छह साल से 18 साल तक के बच्चों को जम्मू-कश्मीर में पाबंदी लगने के कारण काफ़ी दिक्कतें हो रही हैं।
ऐसी रिपोर्टें भी आई हैं कि हिरासत में लेकर दूसरे राज्यों में भेज दिया गया है।
महिलाओं की टीम ने रिपोर्ट में लिखा है कि वे जहाँ भी गईं लोगों की दो ‘अटूट भावनाएँ’ उनके सामने आईं। पहली इच्छा आज़ादी की थी। वे भारत या पाकिस्तान से कुछ भी नहीं चाहते हैं... अनुच्छेद 370 के बारे में कुछ लोग कहते हैं कि इसने भारत के साथ आख़िरी जुड़ाव को भी तोड़ दिया है। दूसरी (भावना) माताओं की पीड़ा का रोना था जिसमें वे मासूमों के साथ क्रूरता पर तत्काल रोक की माँग करती हैं।’
'फ़र्स्ट पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार, अन्य माँगों में टीम ने सेना द्वारा की गई ज़्यादतियों की जाँच करने, नागरिक क्षेत्रों से सेना के जवानों को हटाने, संचार लाइनों की बहाली, अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली और राज्य के राजनीतिक भविष्य के बारे में लोगों के साथ बातचीत शुरू करने की माँग की है। टीम इस माँग को गृहमंत्री अमित शाह को सौंपेगी।
सरकार क्या मानती है?
हालाँकि महिला टीम की इस रिपोर्ट पर सरकार की प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है, लेकिन जम्मू-कश्मीर को लेकर न्यूयॉर्क में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की सफ़ाई आई है। उन्होंने कहा, ‘कृपया याद रखें कि 5 अगस्त से पहले, कश्मीर में गड़बड़ी थी। मेरा मतलब है कि कश्मीर में मुश्किलें 5 अगस्त से शुरू नहीं हुई हैं। 5 अगस्त वाला तरीक़ा उन कठिनाइयों से निपटने का एक तरीक़ा है। इसलिए विकल्प यह था कि या तो आप उसको जारी रखते जो साफ़ तौर पर काम नहीं कर रहा था, या फिर आप कुछ अलग करने की कोशिश करते। और फ़ैसला कुछ अलग करने की कोशिश करने का था।’
उन्होंने कहा, ‘अब हमें एहसास हुआ कि यह एक आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें बहुत गहरे निहित स्वार्थ हैं जो इसका विरोध करेंगे। और इसलिए जब हमने यह परिवर्तन किया तो हमारी पहली चिंता यह थी कि हिंसा होगी, प्रदर्शन होंगे और आतंकवादी उस प्रदर्शन का उपयोग करेंगे।’
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