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क्या वाकई वायनाड राहुल के लिए सुरक्षित सीट है?

राहुल गाँधी ने वायनाड को देश के राजनीतिक मानचित्र पर ख़ास पहचान दिला दी है। पश्चिमी घाट की हरी-भरी सुंदर पहाड़ियों के बीच बसे वायनाड संसदीय क्षेत्र पर अब देश की ख़ास नज़र है। वायनाड को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं। बड़ा सवाल यही कि पहली बार दक्षिण की किसी सीट से चुनाव लड़ने की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष को किस तरह का फ़ायदा होगा? फ़ायदा होगा तो कितना होगा? क्या किसी तरह के नुक़सान की भी गुंजाइश है? क्या अमेठी में कड़े मुक़ाबले से घबरा कर ही राहुल गाँधी ने वायनाड से भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया? क्या वाकई वायनाड कांग्रेस अध्यक्ष के लिए सुरक्षित सीट है? इन्हीं सवालों को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है।

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बताया जाता है कि राहुल गाँधी ने काफ़ी विचार-मंथन करने के बाद अमेठी के साथ-साथ वायनाड से भी चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। इस निर्णय के पीछे एक रणनीति भी है। 

रणनीति के तहत वायनाड को केंद्र बनाकर पूरे दक्षिण पर राजनीतिक विजय की कोशिश है। राहुल वायनाड से लड़कर यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में दक्षिण भी शामिल है।

राहुल को लगता है कि वायनाड से लड़ने की वजह से कांग्रेस और उसे सभी सहयोगी दलों को न सिर्फ़ केरल बल्कि पड़ोसी राज्यों- कर्नाटक और तमिलनाडु में भी फ़ायदा होगा। कांग्रेस नहीं चाहती कि बीजेपी केरल और दक्षिण के दूसरे राज्यों में अपना जनाधार मज़बूत करे। सबरीमला आंदोलन के ज़रिये बीजेपी ने हिंदुओं को अपनी ओर आकर्षित कर कांग्रेस का जनाधार अपनी ओर खींचने की पूरी कोशिश की थी। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह से केरल में ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण भारत में उसका जनाधार और भी मज़बूत होगा और बीजेपी को केरल में खाता खोलने का मौक़ा भी नहीं मिलेगा।

आदिवासियों, किसानों की संख्या 40 फ़ीसदी

ग़ौर करने वाली बात यह है कि वायनाड में मुसलमानों और ईसाइयों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है। वायनाड में मुसलमानों की आबादी जहाँ 29 फ़ीसदी है वहीं ईसाइयों की आबादी 22 फ़ीसदी है। वायनाड की जनसंख्या में हिंदुओं की आबादी 49 फ़ीसदी है। इतना ही नहीं, साल 2009 और 2014 में यहाँ से कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई और ये उम्मीदवार मुसलिम समुदाय से ही थे। 2009 और 2014 में वायनाड से जीत हासिल करने वाले कांग्रेसी उम्मीदवार शाहनवाज़ की मृत्यु नवंबर 2018 में हुई। चूँकि लोकसभा के चुनाव नज़दीक थे इसलिए उपचुनाव नहीं करवाये गये। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पहाड़ी इलाक़ा होने की वजह से वायनाड में आदिवासियों और किसानों की संख्या सबसे ज़्यादा है। आदिवासियों और किसानों मिलाकर कुल जनसंख्या का 40 फ़ीसदी हिस्सा बनते हैं। यही वजह है कि राहुल गाँधी ने माना कि मुसलमानों, ईसाइयों और हिन्दू आदिवासियों और किसानों की संख्या बड़ी होने की वजह से यह दक्षिण में उनके लिए सबसे सुरक्षित सीट है। लेकिन इसी बात को लेकर बीजेपी से कांग्रेस पर तीख़े हमले करने शुरू कर दिये हैं। 

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क्या ‘मुसलिम तुष्टीकरण’ है?

बीजेपी ने एक बार ‘मुसलिम तुष्टीकरण’ का मुद्दा उछला है। बीजेपी साथ ही यह बात भी ज़ोर-शोर से कह रही है कि राहुल गाँधी को अमेठी में हार का डर है इसी वजह से उन्होंने वायनाड का रुख़ किया। इसी बात के ज़रिये बीजेपी यह धारणा बनाना चाहती है कि कांग्रेस सिर्फ़ अमेठी में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत में कमज़ोर है। बीजेपी ने वायनाड की सीट अपने सहयोगी भारत धर्म जन सेना के अध्यक्ष तुषार वेल्लापल्ली को उम्मीदवार बनाया है, जो इरावा नाम की पिछड़ी जाति के हैं। तुषार के पिता नटेशन ‘श्री नारायण धर्म परिपालन योगम’ नाम की इस संस्था के कर्ताधर्ता है और यह संस्था केरल में पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए कई सालों से काम कर रही है। राहुल गाँधी के चुनाव मैदान में होने की वजह से बीजेपी के बड़े नेता भी वायनाड में तुषार वेल्लापल्ली के समर्थन में प्रचार करेंगे।

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क्यों नाराज़ हैं वामपंथी पार्टियाँ?

वायनाड की सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से वामपंथी पार्टियाँ भी राहुल गाँधी से काफ़ी नाराज़ हैं। 2009 और 2014 में वायनाड सीट से सीपीआई का उम्मीदवार चुनाव मैदान में रहा है। इस बार भी वामपंथी मोर्चे ने यह सीट सीपीआई को दी है। वामपंथियों से बातचीत किये बिना वायनाड से चुनाव लड़ने से केरल के वामपंथी इतने नाराज़ हैं कि उन्होंने राहुल गाँधी की हार के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने का एलान किया है। लेकिन कांग्रेसी नेताओं को उम्मीद है कि वे वामपंथियों का गुस्सा दूर करने में कामयाब होंगे। दिलचस्प बात तो यह है कि कांग्रेसी नेता मानते हैं कि अगर वामपंथियों ने पूरी ताक़त भी झोंक दी तब भी वायनाड से राहुल गाँधी की ही जीत होगी। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो यह मान रहे हैं कि वायनाड सीट को लेकर कांग्रेस और वामपंथियों में गुप्त साँठगाँठ हो चुकी है।

इस बात में दो राय नहीं कि राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह से केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में कांग्रेस के कार्यकर्ता काफ़ी उत्साहित हैं लेकिन इसका शेष भारत के कांग्रेसी समर्थकों पर क्या असर पड़ेगा, यही सवाल राजनीतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा का एक बड़ा विषय बन गया है।

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अरविंद यादव

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