मामला क्या है?
एक फ़ोर्ड इकोस्पोर्ट गाड़ी में 16 अप्रैल को 3 लोग मुंबई के कांदीवली से केंद्र शासित क्षेत्र सिलवासा जा रहे थे। लॉकडाउन की वजह से राजमार्ग बंद था और इस कारण इस गाड़ी के ड्राइवर ने हाईवे छोड़ दिया और पतले रास्तों को चुना। पालघर ज़िले के दहानू तालुका के एक गाँव ने 70-80 लोगों ने गाड़ी रुकवा दी और उस पर हमला कर दिया।गिरफ़्तार किए गए लोगों में अधिकतर लोग दहानू तालुका के गढ़चिंचाले गाँव के हैं। इस गाँव में साक्षरता दर सिर्फ 30 प्रतिशत है और अधिकतर लोग औद्योगिक इकाइयों में मज़दूर हैं या खेतिहर मज़दूर हैं। ये तमाम लोग अनुसूचित जनजाति के हैं।
सांप्रदायिक रंग
रविवार शाम तक इस मामले को साप्रदायिक रंग दे दिया गया और यह कहा गया कि मारे गए तीन लोगों में एक आदमी ‘गेरुआ कपड़ों’ में कोई ‘साधु’ था। यह भी कहा गया कि हिन्दू साधु होने के कारण ही उन पर हमला किया गया।Horrific video of a mob lynching in cops’ presence in #Palghar Maharashtra, run by @OfficeofUT whr a few days ago a cop & doctor had been assaulted.
— Baijayant Jay Panda (@PandaJay) April 19, 2020
Media downplayed, said “mistaken suspicion as robbers” & suppressed that they were in Hindu religious robes.
Why this hypocrisy?
कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों ने इसे ‘मुसलमान एंगल’ भी देने की कोशिश की और संकेतों में यह साबित करना चाहा कि हमला करने वाले मुसलमान थे और हमला इसलिए किया गया कि गाड़ी में भगवा कपड़ों में हिन्दू साधु थे।
सरकार की चेतावनी
मामला इतना बढ़ गया कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने ट्वीट कर कहा कि हमला करने वाले और मारे गए लोग एक ही धार्मिक समुदाय के थे। उन्होंने कहा, ‘पुलिस को निर्देश दिया गया है कि उन लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए तो बेवज़ह इसे सांप्रदायिक रूप दे रहे हैं।’सच क्या है?
इस वारदात में मारे गए 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरि और 35 वर्षीय सुशील गिरि गोसावी घुमक्कड़ आदिवासी समुदाय के हैं। ये दोनों वाराणसी के पंच दशनाम जूना अखाड़ा से भी जुड़े हुए हैं। गाड़ी में मौजूद तीसरा आदमी ड्राइवर नीलेश तलगाडे था।गोसावी समुदाय पर हमले
यह पहला मौका नहीं है जब गोसावी समुदाय के किसी व्यक्ति पर भीड़ ने हमला किया है। महाराष्ट्र के ही धुले ज़िले के सकरी तालुका स्थित रैनपदा गाँव में 2018 में उत्तेजित भीड़ ने 5 लोगों को पीट-पीट कर मार डाला था। मारे गए सभी लोग गोसावी समुदाय के ही थे।लेकिन इस पूरे मामले में दिलचस्प सवाल यह है कि इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशश क्यों की गई और यह साबित करने की कोशिश क्यों की गई कि एक दूसरे धर्म के लोगों ने हिन्दू साधुओं को पीट-पीट कर मार डाला।
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