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प्रतीकात्मक तसवीर।

गुजरात: शव लेने और अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतजार कर रहे लोग

महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के साथ ही गुजरात में भी कोरोना को लेकर हालात बेहद ख़राब हैं। गुजरात में अहमदाबाद से लेकर सूरत तक से बेहद ख़राब तसवीरें सामने आ रही हैं। ऐसी भी घटनाएं हैं, जिसमें लोगों को अस्पताल से अपने परिजनों का शव लेने के लिए और फिर अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा। 

टाइम्स ऑफ़ इंडिया (टीओआई) में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, मनोज चावड़ा की मां पुरीबेन का निधन कोरोना के कारण सोमवार सुबह वडाज के सिविल अस्पताल में हुआ था। चावड़ा टीओआई को बताते हैं, “हम लोग सुबह 7 बजे अस्पताल पहुंच गए थे लेकिन हमें शव लेने के लिए 2 बजे तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि लाइन इतनी लंबी थी। हम ये तक नहीं गिन पा रहे थे कि कितने लोगों को उनके परिजनों के शव दिए गए और हम अपनी मां के शव का इतंजार करते रहे।” 

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वडाज के रहने वाले चावड़ा बताते हैं कि पहले ही काफी देर हो चुकी थी इसलिए बिना देरी किए उन्होंने एक मिनी ट्रक किराये पर लिया और श्मशान घाट पहुंचे। लेकिन हमले पहले ही 10 वाहन वडाज के श्मशान घाट पर खड़े थे। घाट के प्रबंधकों ने बताया कि मां के शव का अंतिम संस्कार करने में छह से आठ घंटे और लगेंगे। 

चावड़ा की आपबीती से समझ सकते हैं कि सिर्फ वे ही नहीं बल्कि हज़ारों लोग इस परेशानी से गुजर रहे हैं। 

अस्पतालों में लेकर दौड़ते रहे लोग

गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर इंद्राणी बनर्जी के साथ इससे भी बुरा हुआ। बनर्जी को दो दिन से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी इसलिए उनके सहयोगी उन्हें शुक्रवार को गांधीनगर के एक सिविल अस्पताल में लेकर पहुंचे। लेकिन यह अस्पताल फुल हो चुका था। इसके बाद उन्हें गांधीनगर के ही प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया। 

यहां इलाज के लिए ज़रूरी कुछ उपकरणों की कमी के कारण उन्हें शनिवार को अहमदाबाद के नगर निगम के अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उन्हें यह कहकर वापस जाने को कह दिया गया कि उनके साथ आए लोग उन्हें 108 सेवा की EMRI एंबुलेंस से नहीं लाए बल्कि प्राइवेट वाहन से लाए हैं। वापस उन्हें गांधीनगर के एक अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने रात 2 बजे दम तोड़ दिया। 

बनर्जी के कॉलेज के सहयोगी और छात्र उन्हें एक से दूसरे अस्पताल में लेकर दौड़ते रहे लेकिन कहीं अस्पताल फुल और कहीं सरकारी एंबुलेंस में न लाने की वजह से बनर्जी को इलाज नहीं मिला और उनकी जान चली गई। ये उस शख़्स की हालत है जो प्रोफ़ेसर है और जिसके साथ काफी लोग हैं। 

हजारों ग़रीब लोग ऐसे हैं जिनके पास इतना पैसा ही नहीं है कि एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक प्राइवेट एंबुलेंस लेकर दौड़ें। 

अहमदाबाद में बेड फुल 

अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के बाहर एंबुलेंस की लंबी लाइन दिखाई दे रही है क्योंकि 1200 बेड का यह अस्पताल पूरी तरह भर चुका है और एंबुलेंस वेटिंग में हैं। इसलिए इन्हीं के भीतर ही मरीजों को ऑक्सीजन दी जा रही है। गुजरात में एक्टिव मामलों की संख्या 30 हज़ार से ज़्यादा हो चुकी है और इनमें से 7,165 मामले तो अहमदाबाद में ही हैं। 

हालात बताते हैं कि स्थिति बहुत गंभीर है और राज्य सरकार कोरोना संक्रमण को संभालने में फेल साबित हो रही है। सूरत में रेमडेसिवर लेने के लिए लोगों की भीड़ लग रही है। अहमदाबाद, सूरत के कई अस्पतालों में बेड, वेंटिलेटर और आईसीयू की किल्लत की ख़बरें हैं और अधिकांश सरकारी और निजी अस्पतालों में बेड फुल हो चुके हैं। 

हाई कोर्ट की टिप्पणी 

राज्य में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए हाई कोर्ट ने कुछ दिन पहले ही अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर बन रहे हालात का स्वत: संज्ञान लिया और मीडिया में आ रही ख़बरों का हवाला देते हुए कहा है कि राज्य स्वास्थ्य आपातकाल की जैसी स्थिति की ओर जा रहा है। 

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चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि न्यूज़ चैनल्स कोरोना को लेकर बेहद दुखद ख़बरों से भरे पड़े हैं और बुनियादी ढांचे की स्थिति बेहद ख़राब है और ऐसी दुश्वारियां हैं जिनका जिक्र नहीं किया जा सकता। अदालत ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर कहा कि न केवल टेस्टिंग, बेड्स और आईसीयू की कमी है बल्कि ऑक्सीजन की सप्लाई और ज़रूरी दवाओं जैसे- रेमडेसिवर की भी कमी है।

पिछले साल भी गुजरात में ऐसे ही हालात बने थे और हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल की तुलना न सिर्फ़ ‘काल कोठरी’ से की जा सकती है, बल्कि यह ‘उससे भी बदतर’ है। अदालत ने विजय रुपाणी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि वह कोरोना पर ‘नकली तरीके’ से नियंत्रण पाना चाहती है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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