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सर्वे: गठबंधन करने से बीजेपी-शिवसेना को ज़्यादा फ़ायदा नहीं!

महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज़-सी-वोटर ने चुनावी सर्वे जारी किया है। सर्वे के मुताबिक़, एक बार फिर महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना की सरकार बनने जा रही है। सर्वे में बीजेपी को 134 तथा शिवसेना को 60 सीटें दी गयी हैं। दावा किया गया है कि 16 सितम्बर से 16 अक्टूबर के बीच यह सर्वे प्रदेश के सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया और इस दौरान करीब 19489 मतदाताओं से बात की गयी। यानी हर विधानसभा क्षेत्र से तकरीबन 67 या 68 मतदाता इस सर्वे के सैम्पल साइज रहे। महाराष्ट्र में 21 अक्‍टूबर को वोट डाले जाएंगे और नतीजे 24 अक्‍टूबर को आएंगे। 

सर्वे ने कांग्रेस को 44 व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को 42 सीटें दी हैं जो साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में उनके प्रदर्शन से क्रमशः 2 और 1 सीट अधिक हैं। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 63 सीटें जीती थी और इस बार उसे बीजेपी से गठबंधन करने के बावजूद सीटों में इज़ाफा होने के बजाय नुक़सान होता दिख रहा है। 

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2014 का विधानसभा चुनाव इन सभी प्रमुख पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा था। भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना से गठबंधन टूटने के बाद आरपीआई सहित कई छोटी-छोटी पार्टियों का गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था और वह 122 सीटें जीतने में सफल रही थी। 

साल 2014 का चुनाव ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ और ‘मोदी लहर’ पर लड़े गए थे जबकि 2019 का लोकसभा चुनाव पुलवामा, सर्जिकल स्ट्राइक पर केंद्रित था और मुद्दों से हटाकर राष्ट्रवाद के ज्वार में लड़ा गया था।

महाराष्ट्र में सूखा, बाढ़, किसान आत्महत्या, कृषि उपज का अच्छा भाव नहीं मिलना, बेरोज़गारी, दलित उत्पीड़न, आर्थिक मंदी जैसे अनेक मुद्दे हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार को  जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने से आगे ले जाना ही नहीं चाहते। इस कड़ी में एक और मुद्दा जुड़ गया है विनायक दामोदर सावरकर को ‘भारत रत्न’ पुरस्कार देने का। 

सर्वे सत्ताधारी गठबंधन को 194 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत दे रहा है जबकि पिछली बार अलग-अलग लड़ने पर दोनों दलों को कुल 185 सीटें मिली थीं। इसलिए, गठबंधन करने से इन दलों को ज़्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है।

सर्वे में तीन महत्वपूर्ण सवाल हैं जो विरोधाभाषी संकेत दे रहे हैं। सर्वे में एक सवाल पूछा गया है कि क्या आप वर्तमान सरकार को बदलना चाहते हैं?  इसमें 55% लोगों का कहना था हाँ जबकि 44.6% लोगों ने नहीं कहा। इसी से लगता हुआ दूसरा सवाल पूछा गया कि क्या आप मुख्यमंत्री को बदलना चाहते हैं? 54.5% लोगों का जवाब था हाँ और 44.7% का नहीं। 0.8% लोग असमंजस की स्थिति में थे। तीसरा सवाल था कि क्या आप अपने क्षेत्र के विधायक को बदलना चाहते हैं? 54.7% लोगों ने कहा हाँ और 43.1% लोगों ने इससे इनकार किया जबकि 2.2% अनिर्णय की स्थिति में थे। इन तीनों सवालों के जवाब में एक बात बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है कि मतदाओं ने इस सरकार को हटाने, मुख्यमंत्री बदलने और अपने-अपने क्षेत्र के विधायक बदलने के लिए क़रीब एक जैसा ही ट्रेंड दिखाया है। मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को चाहने वालों की संख्या से क़रीब 10 से 11% ज्यादा मतदाता उन्हें बदलने के पक्ष में हैं। 

सी-वोटर के इस सर्वे से दो दिन पूर्व बीजेपी का एक आतंरिक सर्वे मीडिया की सुर्खियां बना था। उक्त सर्वे में कहा गया है कि बीजेपी को 122 सीटों पर आसान जीत मिल रही है लेकिन पंकजा मुंडे सहित चार मंत्रियों की सीट ख़तरे में है। बीजेपी ने पहले ही अपने तीन मंत्रियों का टिकट काटकर उन्हें चुनाव मैदान से बाहर कर दिया है। तो क्या फडणवीस सरकार और उसके मंत्रियों के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा है?

इस सर्वे की सटीकता जानने के लिए इसे महाराष्ट्र के विभागों या संभागों की कसौटी पर देखना होगा। पिछली बार बीजेपी-शिवसेना का सबसे अच्छा प्रदर्शन मुंबई, कोंकण और विदर्भ क्षेत्र में देखने को मिला था।

विदर्भ में एनसीपी-कांग्रेस को फ़ायदा 

अगर क्षेत्रवार बात करें कोंकण को छोड़कर 5 क्षेत्रों में कमल खिला था। विदर्भ क्षेत्र से विधानसभा की कुल 62 सीटें आती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में बीजेपी ने 44 सीटों पर कब्‍जा किया, जबकि उससे अलग होकर लड़ रही शिवसेना को महज 4 सीटें मिलीं थीं। कांग्रेस  को 10, एनसीपी को 1 और अन्‍य के खाते में 3 सीटें गईं थीं। सूखा, किसानों की आत्महत्या, सिंचाई परियोजनाओं का लंबित कार्य, दलितों का उत्पीड़न इस क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे हैं। एबीपी न्यूज़-सी-वोटर ने जो सर्वे किया है उसके अनुसार इस संभाग में कांग्रेस और एनसीपी अपना प्रदर्शन सुधारने जा रही हैं। इस बार कांग्रेस-एनसीपी को 19, बीजेपी-शिवसेना को 40 तथा अन्य को 3 सीटें मिलने की बात कही गई है। यानी कांग्रेस-एनसीपी को यहां 8 सीटों का फायदा मिलेगा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, वित्त मंत्री  सुधीर मुनगंटीवार और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इसी संभाग से आते हैं। कांग्रेस की तरफ से नाना पटोले कमान संभाले हुए हैं और इसका असर सर्वे में भी दिख रहा है।

मराठवाड़ा

2014 के विधानसभा चुनाव में मराठवाड़ा क्षेत्र में भी बीजेपी ने दमदार प्रदर्शन किया था। इस क्षेत्र की कुल 46 सीटों में से 15 पर बीजेपी ने कब्‍जा जमाया था और शिवसेना को 11 सीटें मिलींं थीं। कांग्रेस ने 9 तथा एनसीपी ने 8 सीटें जीतीं थीं। अन्‍य को 3 सीटें मिलीं थीं। सर्वे में इस बार यहां कांग्रेस-एनसीपी को 20 सीटें और बीजेपी-शिवसेना को 24 तथा 2 सीटें अन्य को मिलने की बात कही गई है। सूखा, किसानों की आत्महत्या, बेरोज़गारी यहां के प्रमुख मुद्दे हैं। 

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पश्चिम महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना आगे

महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में से सबसे ज्‍यादा 70 सीटें पश्चिम महाराष्ट्र से आती हैं और सरकार बनाने में विदर्भ और पश्‍चिम महाराष्‍ट्र की महत्‍वपूर्ण भूमिका रहती है। 2014 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र से किसी भी पार्टी को यहां एकतरफ़ा वोट नहीं पड़े थे। सबसे ज्‍यादा 24 सीटें बीजेपी की झोली में आईं थी और 19 सीट जीतकर एनसीपी दूसरे नंबर पर रही थी। शिवसेना ने 13 और कांग्रेस ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि 4 सीटें अन्‍य के खाते में गईं थी। सांगली-कोल्हापुर, पुणे में आयी बाढ़, राहत सामग्री में देरी तथा कृषि उपज को दाम नहीं मिलना यंहा का मुद्दा है। सी-वोटर का सर्वे इस बार बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 6 सीटों का इजाफ़ा होने की बात कह रहा है। भगवा गठबंधन को सर्वे में कुल 43 सीटें दी गई हैं जबकि कांग्रेस -एनसीपी को 26 सीटें। 

उत्तर महाराष्ट्र में प्याज है मुद्दा

उत्तर महाराष्ट्र क्षेत्र में कुल 35 सीटें हैं जिनमें से 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 14 जबकि शिवसेना और कांग्रेस की झोली में 7-7 सीटें आई थीं। एनसीपी को 5 सीटें मिलीं थीं और अन्‍य के खाते में 2 सीटें आईं थीं। इस बार सर्वे के मुताबिक़ बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 21 तथा  कांग्रेस-एनसीपी को 13 तथा 1 सीट अन्य के खाते में जाने की बात कही गयी है। यानी कांग्रेस गठबंधन को एक सीट का मुनाफा होने वाला है। प्याज की क़ीमतें इस क्षेत्र का प्रमुख मुद्दा हैं। दो साल पहले तक एक रुपये किलो के भाव से यहां प्याज बिकता था लेकिन इस साल प्याज की कीमतें बढ़ने लगीं तो सरकार ने निर्यात पर पाबंदी लगा दी जिससे किसानों में रोष है। 

कोंकण में भगवा गठबंधन मजबूत 

कोंकण की 39 सीटों में से शिवसेना को 2014 के विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर जीत मिली थी जबकि जबकि बीजेपी के हिस्‍से में 10 सीटें आईं थीं। एनसीपी को 8 और कांग्रेस को केवल एक सीट मिली थी। अन्य को 6 सीटें मिलीं थी। इस बार सर्वे में बीजेपी-शिवसेना को 34 तथा कांग्रेस गठबंधन को 4 तथा 1 सीट अन्य के खाते में जाने की बात कही गई है। 

मुंबई में भी बीजेपी-शिवसेना आगे

पिछले विधानसभा चुनाव में मुंबई की 36 सीटों पर  शिवसेना और बीजेपी के बीच जबरदस्‍त टक्‍कर देखने को मिली थी। बीजेपी ने यहां 15, शिवसेना  ने 14, कांग्रेस ने 5 सीटें जीती थीं। एनसीपी को एक भी सीट नहीं मिली थी जबकि अन्‍य के खाते में 2 सीटें गईं थीं। इस बार सर्वे में बीजेपी-शिवसेना को 32 तथा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को 4 सीटें मिलने की बात कही है। पीएमसी बैंक घोटाला, आरे कॉलोनी के पेड़ों की कटाई, बेरोज़गारी, मुंबई में मूलभूत सुविधाएं इस क्षेत्र का विशेष मुद्दा हैं। 

मुंबई और कोंकण को छोड़ दें तो बाक़ी सभी संभागों में दोनों गठबंधनों में टक्कर बराबर की लगती है। पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र में जिस तरह से शरद पवार की सभाओं और रैलियों में भीड़ उमड़ रही है, उसे देखते हुए यह नहीं लगता कि फडणवीस सरकार की वापसी इतनी आसान होगी।
पिछले तीन दिनों में मोदी की पुणे और मुंबई की सभाओं में जिस तरह से लोगों में कमी देखी गयी, उसे देखकर भी यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या बीजेपी सरकार वापस आएगी? शुक्रवार को सातारा में पवार की सभा में बड़ी संख्या में लोग जमा थे और तभी बारिश शुरू हो गयी। यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि सभा बिखर जाएगी लेकिन जिस तरह से शरद पवार भरी बारिश में भाषण देते रहे और जनता उन्हें सुनती रही, उससे लगता है कि पवार अभी भी दमदार हैं। 
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ऐसी ही एक विशाल रैली पिछले दिनों सोलापुर में भी देखने को मिली थी। दरअसल 15 सितम्बर से पहले महाराष्ट्र में यह चुनाव एकतरफा से लग रहे थे। लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जब से शरद पवार से सवाल पूछा कि उन्होंने 70 साल में महाराष्ट्र के लिए क्या किया? उसके बाद से एक सहानुभूति की लहर शरद पवार के समर्थन में देखने को मिल रही है। ईडी प्रकरण ने उस सहानुभूति में और इजाफा किया। 

लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान मोदी और शाह पुलवामा-बालाकोट पर बोलते रहे। उसी तरह इस बार भी धारा 370 पर ही इन्होंने अपना प्रचार केंद्रित कर रखा है। लेकिन पवार ने पहले से ही सभाओं में कहना शुरू कर दिया था कि 'मोदी -शाह आयेंगे और 370 पर बात करेंगे।’ लिहाजा प्रचार अभियान में अब सावरकर को मुद्दा बनाया गया। लेकिन शरद पवार और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार को सूखा, बाढ़, बेरोज़गारी पर केंद्रित करने की कोशिश की। अब देखना है जनता किन मुद्दों पर वोट करती है। 

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संजय राय

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