महाराष्ट्र में सत्ता की बिसात पर चल रहे शह-मात के खेल में शिवसेना गच्चा खा गई है। अपने 30 साल पुराने गठबंधन को तोड़कर नए सहयोगियों के साथ सरकार बनाने की शिवसेना की होशियारी फ़िलहाल नहीं चल पाई है और महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर चल रही क़वायद की डोर पूरी तरह राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के हाथ में आ गई है। राज्यपाल कोश्यारी सियासी बिसात पर बिछे मोहरों को अपने हिसाब से घुमाने में जुट गए हैं।
मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बीजेपी से अपना 30 साल पुराना गठबंधन तोड़ने वाली शिवसेना जिनके भरोसे सरकार बनाने का सपना देख रही थी, उन्होंने ही उसका सपना चकनाचूर कर दिया है। दरअसल, रविवार को बीजेपी के सरकार बनाने से हाथ खड़े करने के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने दूसरे नंबर पर सबसे ज़्यादा विधायकों वाली पार्टी शिवसेना को सरकार बनाने का न्यौता दिया था। पर्याप्त संख्या बल जुटाने के लिए राज्यपाल ने शिवसेना को 24 घंटे का वक्त दिया था। यह मियाद सोमवार शाम 7:30 बजे ख़त्म हो गई।
सोमवार को शिवसेना दिनभर एनसीपी और कांग्रेस से समर्थन के एलान होने का इंतजार करती रही। शाम तक जब दोनों पार्टियों की तरफ़ से समर्थन का एलान नहीं हुआ तो शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे शिवसेना के विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे के साथ जाकर राज्यपाल से मिले। उन्होंने राज्यपाल से सरकार बनाने की इच्छा तो ज़ाहिर की लेकिन सरकार बनाने लायक 'संख्या बल' दिखाने में नाकाम रहे। आदित्य ठाकरे ने राज्यपाल से 48 घंटे का और वक्त माँगा। मगर राज्यपाल ने और मोहलत देने से साफ इनकार कर दिया।
यह शिव सेना के लिए झटका था। झटका तो ज़ोर का है लेकिन लगा धीरे से। ऐसा लगा मानो शिवसेना न इधर की रही न उधर की। न ख़ुदा ही मिला न विसाले सनम। मतलब बीजेपी से 30 साल पुराना गठबंधन टूट गया। केंद्र सरकार से अपने एकमात्र मंत्री का इस्तीफ़ा भी करा लिया। लेकिन अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए वह न एनसीपी से समर्थन का एलान करवा पाई और न ही कांग्रेस से।
हैरानी की बात तो यह है कि शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से फ़ोन पर लंबी बातचीत भी की। इसके बावजूद अगर कांग्रेस ने समर्थन का एलान नहीं किया तो इसकी दो वजहें हैं। एक तो कांग्रेस में अभी शिवसेना को समर्थन देने के बारे में पूरी तरह सहमति नहीं बन पाई है। दूसरी यह कि कांग्रेस सरकार बनने से पहले ही शिवसेना के तेवर पूरी तरह ढीले कर देना चाहती है।
कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पार्टी शिवसेना और एनसीपी के साथ न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सहमति बनाए बग़ैर समर्थन की घोषणा नहीं करेगी।
एनसीपी को भेजा न्यौता
राज्य में सरकार बनाने की क़वायद में अब नया मोड़ आ गया है। सरकार बनाने के लिए अपने समर्थन में 145 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी देने में नाकाम रहने के बाद अब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अचानक ही विधानसभा में तीसरे नंबर पर आई एनसीपी को चिट्ठी भेज कर पूछ लिया कि अगर वह सरकार बनाना चाहते हैं तो 24 घंटे में सरकार बनाने की इच्छा और 'पर्याप्त संख्या बल' की जानकारी लेकर राज भवन पहुंचें।
आनन-फ़ानन में एनसीपी के नेता राजभवन पहुंचे और राज्यपाल से मिले। उन्हें बता कर आए कि सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के साथ उनकी बातचीत चल रही है। एनसीपी नेताओं ने राज्यपाल को 24 घंटे की मियाद के भीतर ज़रूरी संख्या बल यानी 145 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी देने का भरोसा दिया है।
शिवसेना का दावा ख़ारिज!
महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों से आ रही ख़बरों के मुताबिक़, अब शिवसेना के लिए सरकार बनाने का दोबारा मौक़ा हासिल करना मुश्किल होगा। क्योंकि राज्यपाल की तरफ़ से दिए गए तय वक़्त में शिवसेना न तो दावा पेश कर पाई और ना ही राज्यपाल को भरोसा दिला पाई उसके पास सरकार बनाने के लिए 'पर्याप्त संख्या बल' है। इसलिए शिवसेना का सरकार बनाने का दावा खारिज हो गया है। शिवसेना का दावा खारिज होने के बाद ही राज्यपाल ने तीसरे नंबर की पार्टी को सरकार बनाने का एक मौक़ा दिया है।
अब सवाल यह है कि क्या सीएम की माँग पर अड़कर बीजेपी और एनडीए से नाता तोड़ने वाली शिवसेना अब एनसीपी का सीएम बनाने के लिए राज़ी होगी? सवाल यह भी है कि एनपीपी-कांग्रेस मिलकर अगर शिवसेना का सीएम चुनें तो क्या राज्यपाल उसे शपथ दिलाने के लिए राज़ी होंगे?
राष्ट्रपति शासन लगाने की तैयारी?
ऐसा लगता है राज्यपाल ने जानबूझ कर यह पेच फंसा दिया है। दरअसल, राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की भूमिका तैयार कर रहे हैं। इसीलिए, राज्यपाल ने पहले शिवसेना को 24 घंटे की मोहलत दी और अब एनसीपी को 24 घंटे की मोहलत दी है। हो सकता है कि एनसीपी के बाद वह कांग्रेस को भी 24 घंटे की मोहलत देकर पूछें कि अगर वह सरकार बनाना चाहते हैं तो ज़रूरी संख्या बल के बारे में उन्हें अवगत कराएं।
महाराष्ट्र विधानसभा के समीकरणों के हिसाब से दो ही सूरत में सरकार बन सकती है। या तो बीजेपी और शिवसेना मिलकर सरकार बनाएं और इस गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला भी है लेकिन अब शिवसेना ने बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ दिया है तो शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों एक साथ आएंगे तभी सरकार बनेगी। अगर ये तीनों दल किसी वजह से साथ नहीं आ पाते हैं तो राज्य में सरकार बनने की कोई सूरत नहीं होगी और ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगना तय है।
सियासी जोड़-तोड़ में शिवसेना के हाथों मात खाने के बाद बीजेपी चुप बैठने वाली नहीं है। बीजेपी खे़मे से आ रहीं खबरों के मुताबिक़, पार्टी चाहती है कि अगर उसकी सरकार नहीं बन पा रही है तो वह किसी और की सरकार भी नहीं बनने देगी।
संवैधानिक परंपरा के मुताबिक़, अगर राज्य में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है और दो या तीन पार्टियां मिलकर सरकार बनाने में नाकाम रहती हैं तो ऐसी सूरत में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है। महाराष्ट्र में विधानसभा को लेकर दो स्थितियां हो सकती हैं। पहली यह कि विधानसभा को निलंबित रखकर सरकार बनाने की संभावना तलाशी जाए या फिर उसे भंग करके नए सिरे से चुनाव कराए जाएं।
फिलहाल महाराष्ट्र की सियासत में आगे क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता है। यह माना जा रहा है कि अगर शिवसेना को सरकार बनाने का मौक़ा नहीं मिलेगा तो फिर वह कांग्रेस या एनसीपी गठबंधन को किसी भी सूरत में समर्थन नहीं देगी। ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र में 6 महीने के भीतर दोबारा विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।
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