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सहकारिता मंत्रालय के ज़रिए महाराष्ट्र-गुजरात में विपक्ष को तोड़ना चाहती है बीजेपी?

नरेंद्र मोदी सरकार का नया मंत्रालय मिनिस्ट्री ऑफ़ कोऑपरेशन यानी सहकारिता मंत्रालय कामकाज शुरू करे, उसके पहले ही उस पर विवाद शुरू हो गया है। विपक्षी दलों ने इसे राज्य का विषय मानते हुए संघवाद के ख़िलाफ़ बताया है और सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है।

इसके साथ ही महाराष्ट्र और गुजरात की राजनीति से इसे जोड़ कर देखा जा रहा है क्योंकि इन दोनों राज्यों में सहकारी आन्दोलन मजबूत है और सहकारी संस्थाएं राजनीति को प्रभावित करती रही हैं।

तो क्या केंद्र सरकार का मक़सद एनसीपी और इसके नेता शरद पवार जैसे लोगों की राजनीति को कुंद करना है, गुजरात पर बीजेपी की पकड़ और मजबूत करनी है?

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संघवाद के ख़िलाफ़?

संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सहकारिता राज्य का विषय है। 

लेकिन संविधान का 97वां संशोधन दिसंबर 2011 में संसद से पारित कर दिया गया और यह फरवरी 2012 में लागू कर दिया गया। इसके तहत सहकारी संस्थाओं के कुशल प्रबंधन के लिए कई तरह के बदलाव किए गए। 

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट इस संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों पर विचार कर रहा है। 

अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने अदालत में कहा है कि पहली सूची यानी केंद्र की सूची की 44 प्रविष्टि में कई राज्यों में एक साथ काम करने वाली सहकारी संस्थाएं हैं। 

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लेकिन जस्टिस के. एम. जोसफ़ ने इस पर कहा कि इस प्रविष्टि में ‘सहकारी संस्था’ शब्द नहीं है जबकि दूसरी सूची यानी राज्य की सूची की 32वीं प्रविष्टि में ‘सहकारी संस्था’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।उन्होंंने कहा कि जब तक दूसरी यानी राज्य सूची की प्रविष्टि 32 को निकाल कर पहली यानी केंद्र  सूची में नहीं डाला जाता है, राज्य सहकारी संस्थाओं के लिए नियम बनाने को स्वतंत्र हैं। 
22 अप्रैल 2013 को गुजरात हाई कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन की कुछ बातों को खारिज करते हुए कहा था कि केंद्र सहकारी संस्थाओं से जुड़े नियम नहीं बना सकता क्योंकि यह पूरी तरह राज्य का मामला है।

केंद्र-राज्य विवाद

यानी यह साफ है कि संविधान संशोधन के बावजूद यह पूरी तरह साफ नहीं है कि केंद्र सरकार सहकारी संस्थाओं से जुड़े नियम बना सकती है क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधीन है, उस पर सुनवाई चल रही है। 

एनसीपी और कांग्रेस ही नहीं, भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी इस पर काफी उत्तेजित है और केंद्र सरकार के इस फ़ैसले का ज़ोरदार विरोध कर रही है। 

सहकारी संस्थाओं पर नज़र?

सहकारी संस्थाएं किस तरह सक्रिय हैं, उनकी लॉबी कितनी मजबूत है और वे किस तरह कुछ राज्यों और उनके जरिए केंद्र की राजनीति को प्रभावित करने वाले कुछ दलों के लिए बेहद ज़रूरी है, यह समझना होगा। 

देश में इस समय 1,94,195 दूध सहकारी संस्थाएं और 330 चीनी सहकारी संस्थाएं हैं। 

नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019-2020 के दौरान इन दूध सहकारी संस्थाओं के 1.70 करोड़ सदस्य थे, जिन्होंने 4.80 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन किया और उसमें से 3.7 करोड़ दूध इन संस्थाओं के ज़रिए बेचा। 

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चीनी सहकारी संस्थाएं

इंडियन सुगर मिल्स एसोसिएशन के मुताबिक़, साल 2019-2020 के दौरान 270 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इसके एक साल पहले यानी साल 2018-19 में 327.53 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। इसमें लगभग 35 प्रतिशत चीनी सहकारी संस्थाओं से जुड़ी मिलों के थे। 

सहकारी बैंक

नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फ़ॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट की 2019-2020 की रिपोर्ट के अनुसार, 95,238 प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी (पीएसीएस) 363 डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक (डीसीसीबी) और 33 राज्य सहकारी बैंक हैं। 

इन सहकारी बैंकों में 1,35.393 करोड़ रुपए और डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों में 3,78,248 करोड़ रुपए जमा कराए गए। इन ज़िला सहकारी बैंकों का काम किसानों को खेती के लिए छोटा क़र्ज़ देना है और उन्होंने इस साल 3,00,034 करोड़ रुपए के क़र्ज़ दिए।

राज्य सहकारी बैंक मोटे तौर पर चीनी मिलों और कताई मिलों को क़र्ज़ देते हैं और इन्होंने इस साल 1,48,625 करोड़ रुपए के क़र्ज़ दिए। 

शहरों में शहरी सहकारिता बैंक यानी अर्बन कोऑपरेटिव बैंक और कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, 2019-2020 में 1539 अर्बन सहकारी बैकों ने 3,05,368 करोड़ रुपए के क़र्ज़ बाँटे। 

चीनी लॉबी

सुगर लॉबी यानी चीनी या शक्कर लॉबी को महाराष्ट्र ही नहीं देश का सबसे बड़ा राजनीतिक लाबी माना जाता है। 

इसी तुलना हम अमेरिका की गन लॉबी से कर सकते हैं। जिस तरह उस गन लॉबी के समर्थन के बग़ैर चुनाव जीनता मुश्किल है और वह लॉबी पक्ष-विपक्ष सबको प्रत्यक्ष-परोक्षै पेसे देती है, उसी तरह महाराष्ट्र की चीनी लॉबी भी मजबूत है और सक्रिय भी। 

किसी जमाने में महाराष्ट्र के 13 जिलों में लगभग 360 चीनी मिलें थी और चीनी लॉबी के सबसे बड़े नेता कांग्रेस के बसंत दादा पाटिल थे। 

बाद में कई निजी चीनी मिलें खुलीं और उसके बाद सहकारी चीनी मिलों की स्थिति पहली जैसी नहीं रही। 

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आज भी महाराष्ट्र के छह ज़िलों को चीनी क्षेत्र माना जाता है, ये हैं, पुणे, सांगली, सतारा, सोलापुर, कोल्हापुर और अहमदनगर। इन ज़िलों में 70 से ज़्यादा विधानसभा सीटें हैं। यहां 100 से ज़्यादा चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में और लगभग 70 निजी चीनी मिलें हैं। 

इन सहकारी संस्थाओं के पास बहुत ज़्यादा पैसा तो है ही, ये राजनीतिक रूप से भी अहम हैं। इन तमाम सहकारी संस्थाओं का लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होता है, इसलिए महाराष्ट्र और गुजरात में ये लोकतंत्र की नर्सरी माने जाते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि किस पार्टी की ज़मीनी स्तर पर कितनी पकड़ है क्योंकि वे लोग ही पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक के चुनाव में वोट देते हैं या चुने जाते हैं। 

महाराष्ट्र में 70-80 सीटें तो इन चीनी क्षेत्रों में हैं ही, लगभग 150 विधायक हैं जो किसी न किसी रूप से चीनी लॉबी से जुड़े हुए हैं।

चीनी राजनीति

महाराष्ट्र के शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार समेत उनका पूरा कुनबा इस चीनी लॉबी से जुड़ा हुआ है या उसे नियंत्रित करता है। 

साल 2014 के चुनाव में पहली बार बीजेपी ने चीनी क्षेत्र से सबसे ज़्यादा 24 सीटें जीती थीं। उस चुनाव में एनसीपी को 19, शिवसेना को 13, कांग्रेस को 10 सीटें मिली थीं।

लेकिन उसके बाद 2019 में स्थिति बदली और शिवसेना व एनसीपी ने चीनी इलाक़े की लगभग 50 सीटों पर क़ब्जा कर लिया। 

बीजेपी की रणनीति इस इलाक़े में एनसीपी को विशेष रूप से कमज़ोर करना है और वह निशाने पर शरद पवार को रखना चाहती है क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में पवार की महात्वाकांक्षा कई बार खुल कर सामने आई गई है, उन्हें कई बार संभावित तीसरे मोर्चे के नेता के रूप में भी पेश किया जाता है।

राजनीति की नर्सरी

यही हाल गुजरात के दूध सहकारी व सहकारी बैंकों का है। गृह मंत्री अमित शाह अहमदाबाद डिस्ट्र्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं। 

इन्हीं कारणों से बीजेपी ने इस मंत्रालय के बारे में फ़ैसला किया और ठीक इन्हीं कारणों से एनसीपी, कांग्रेस जैसे दल इसका विरोध भी कर रहे हैं। 

कांग्रेस अपने बड़े राजनीतिक उद्येश्यों से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को निशाने पर ले रही है। इसने पहले ही आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक में घपला हुआ और अब यह मामला सीधे अमित शाह के अधीन हो जाएगा तो इस तरह के घपलों पर पर्दा डाला जा सकेगा।

बीजेपी का जवाब

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चह्वाण का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव और अगले गुजरात विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने के लिए यह कदम उठाया गया है।

उनका तर्क है कि बीजेपी महाराष्ट्र के महाविकास अघाड़ी गठबंधन को कमज़ोर करना चाहती है। 

इसी तरह सीपीआईएम भी आर्थिक मुद्दा उठा कर इस मामले में बीजेपी को घेरना चाहती है। पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि पहले बीजेपी सरकार ने सरकारी बैंकों से निजी क्षेत्र को मिले पैसे माफ़ करवा दिए जो अरबों रुपयों में है, उसकी नज़र अब इन सहकारी बैंकों पर है, वह ये पैसे निजी क्षेत्र को दिलवाना चाहती है।

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सीपीआई के डी राजा ने साफ कह दिया है कि उनकी पार्टी संसद के अगले सत्र में यह मुद्दा उठाएगी।

महाराष्ट्र बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस इसका जवाब देते हुए कहते है कि केंद्र सरकार ने पहले भी चीनी मिलों की मदद की है और आगे भी करती रहेगी। लिहाज़ा, चीनी मिलों को इससे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। वे ज़ोर देकर कहते हैं कि सहकारी संस्थाओं के बेहतर और पेशेवर व कुशल प्रबंधन की ज़रूरत है और इस मंत्रालय का यही मक़सद है। 

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प्रमोद मल्लिक

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