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मुंबई कांग्रेस में मचा घमासान, कब जागेगा पार्टी हाईकमान

महाराष्ट्र की राजनीति आज जिस दौर से गुजर रही है ऐसा दौर 1977 में आपातकाल के बाद उपजी जनता पार्टी की लहर के दौरान भी देखने को नहीं मिला था। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दोनों ही पार्टियों में नेताओं के दल-बदल का पतझड़ सा लग गया है। दोनों दलों के दर्जनों दिग्गज नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं या शामिल होने की कतार में अपने नंबर का इंतज़ार कर रहे हैं। इसी पतझड़ के बीच दोनों ही पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व सोनिया गांधी और शरद पवार के बीच मंगलवार को दिल्ली में सीट बंटवारे को लेकर बैठक भी हुई। इस बैठक में सीटों के बंटवारे पर चर्चा हुई या पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं की वजह से आने वाले खालीपन पर चर्चा हुई, इसका अभी पता नहीं चल सका है। 
ऐसी विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों में भी जो बचे-खुचे कांग्रेस नेता हैं, वे गुटबाज़ी को हवा दे रहे हैं और यह एक गंभीर बात है।

आने वाले सप्ताह में किसी भी दिन चुनाव आचार संहिता घोषित हो सकती है लेकिन मुंबई प्रदेश कांग्रेस कमिटी में जो झगड़ा चल रहा है उससे यह संदेश साफ़ जा रहा है कि इन्हें हारने के लिए किसी दूसरी पार्टी की ज़रूरत नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान मुंबई कांग्रेस से बॉलीवुड ऐक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर जुडी थीं और उन्होंने एक मंजे हुए नेता के रूप में चुनाव भी लड़ा था लेकिन अब वह  गुटबाज़ी से परेशान होकर कांग्रेस छोड़ चुकी हैं। उर्मिला के इस्तीफ़े ने कांग्रेस में व्याप्त गुटबाज़ी को चौराहे पर ला दिया है। 

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दरअसल, उर्मिला मातोंडकर को कांग्रेस में प्रवेश दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई थी संजय निरुपम ने। लेकिन जिस दिन इस बात की दिल्ली में औपचारिक घोषणा हुई मुंबई प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर मिलिंद देवड़ा बैठ चुके थे। ठीक चुनाव से पहले निरुपम को हटाकर देवड़ा को अध्यक्ष बनाने का क्या फायदा हुआ, इसका सही जवाब तो लोकसभा चुनावों में मिल गया और मुंबई महानगर जो कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, पूरा ध्वस्त हो गया। 

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चुनाव परिणाम के बाद यह विवाद और उभरना ही था और अब उभरा है तो वह चौराहे पर भी आ गया। कांग्रेस दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की दुविधा में उलझी पड़ी थी और उसने मुंबई में निरुपम और देवड़ा के टकराव की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया। और ऐन चुनाव के मौक़े पर उर्मिला मातोंडकर के इस इस्तीफ़े ने आग में घी का काम किया। 
उर्मिला के इस्तीफ़े को लेकर मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने अपने प्रतिद्वंद्वी संजय निरुपम पर निशाना साधा। देवड़ा ने उर्मिला का साथ देते हुए कहा कि पार्टी के ही कुछ लोगों ने उनके (उर्मिला) साथ धोखा किया।

बता दें कि उर्मिला ने इस्‍तीफ़ा देते हुए कहा था कि वह मुंबई कांग्रेस में छिड़ी अंदरूनी लड़ाई की वजह से ऐसा कर रही हैं। मिलिंद देवड़ा ने उर्मिला के इस्‍तीफ़े के लिए उत्‍तरी मुंबई के कांग्रेस नेताओं को जिम्‍मेदार ठहराया है। 

देवड़ा ने ट्वीट किया, 'जब उर्मिला ने उत्‍तरी मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया, मैंने मुंबई कांग्रेस प्रेजिडेंट के तौर पर उनके चुनाव अभियान का पूरे दिल से समर्थन किया था। मैं उस समय भी उनके साथ खड़ा रहा जब उन लोगों ने भी उन्‍हें धोखा दिया जो उन्‍हें पार्टी में लाए थे। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि उत्‍तरी मुंबई के नेताओं को जिम्‍मेदार ठहराया जाना चाहिए।' लेकिन सवाल यह भी उठता है कि देवड़ा ने उर्मिला मातोंडकर के उस पत्र पर इतने दिन क्या किया जिसमें कुछ नेताओं पर नामजद शिकायत की बात कही जा रही है। हालांकि देवड़ा ने किसी का नाम नहीं लिया है लेकिन माना जा रहा है कि उनके निशाने पर संजय निरुपम ही हैं। 

संदेश कोंडविलकर और भूषण पाटिल, जिन पर उर्मिला ने अपने चुनाव अभियान को नुक़सान पहुंचाने का आरोप लगाया है, निरुपम के विश्‍वसनीय सहयोगी हैं।

उर्मिला ने मुंबई उत्तर लोकसभा सीट से बतौर कांग्रेस कैंडिडेट चुनाव लड़ा था लेकिन चुनाव में उन्हें बीजेपी के नेता गोपाल शेट्टी से करारी शिकस्त मिली थी। पूर्व मुंबई कांग्रेस प्रमुख निरुपम ने उर्मिला के इस्‍तीफ़े पर ट्वीट करते हुए कहा, 'हार मानने की जगह हमें लड़ना चाहिए। मैंने उर्मिला मातोंडकर को बहुत पहले ही आगाह कर दिया कि वह इसमें न पड़ें और धैर्य रखें।' निरुपम ने उर्मिला के इस्‍तीफ़े को दुर्भाग्‍यपूर्ण बताते हुए उनसे इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। 

देवड़ा-निरुपम विवाद ने मुंबई कांग्रेस को एक ऐसे विवाद में उलझा दिया है जिसका समाधान करने के लिए कांग्रेस के शीर्ष कमान को कड़ाई से दख़ल देना होगा। क्योंकि दोनों ही नेताओं के राहुल गांधी से अच्छे सम्बन्ध हैं। ऐसे में उन्हें ही तय करना है कि मुंबई कांग्रेस की कमान किसको देनी चाहिए। वैसे मुंबई कांग्रेस में एक और गुट था कृपा शंकर सिंह का लेकिन उनके बीजेपी में जाने के बाद यह समाप्त हो गया है। 

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कांग्रेस में इसी गुटबाज़ी का नतीजा था कि प्रिया दत्त ने लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। उनकी वह घोषणा पार्टी में टकराव की पहली घंटी थी लेकिन उसे नज़रअंदाज किया और आज नौबत यहां तक आ पहुंची है। कांग्रेस आज सत्ता में नहीं है और उसका संगठन पहले जैसा नहीं रहा, ऐसे में संगठन में होने वाले हर छोटे से छोटे टकराव पर कांग्रेस हाई कमान को नज़र रखनी होगी अन्यथा ऐसे वाकये होते ही रहने हैं।
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संजय राय

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