सीटी रवि
भाजपा - चिकमंगलूर
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बीजेपी और शिवसेना के नेताओं के बीच सीट बंटवारे को लेकर होने वाली बैठकों से जो ख़बरें निकलकर आ रही हैं उनसे तो यही संकेत मिल रहे हैं कि न तो अब कोई बड़े भाई जैसी बात है और ना ही बराबर की सीटें।
बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि पश्चिमी महाराष्ट्र में मजबूत पकड़ रखने वाली जन सुराज्य शक्ति पार्टी ने शुरुआत में नौ सीटों की मांग की थी लेकिन बाद में इसके नेता विनय कोरे ने बातचीत में चार सीटों पर सहमति जता दी है जबकि अन्य सहयोगियों के साथ बातचीत जारी है। इनमें केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले की अगुवाई वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, शिव संग्राम और राष्ट्रीय समाज पार्टी शामिल है। इन तीनों राजनीतिक दलों ने बीजेपी के चुनाव चिह्न पर उनके उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
महाराष्ट्र में 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में इन राजनीतिक दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन बाद में ये एक साथ आ गए थे। बीजेपी ने 122 सीटों पर जबकि शिवसेना ने 63 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी बड़े पैमाने पर अन्य पार्टियों के जीते हुए विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है। इन विधायकों की संख्या को आधार बनाकर भी वह शिवसेना पर दबाव बनाने का काम कर रही है। वैसे इस बार शिवसेना भी दूसरे दलों के कई विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराने में सफल हुई है।
बीजेपी ज़्यादा सीटें लेने के लिए एक और बात को बड़े आधार के रूप में पेश कर रही है वह है कश्मीर से धारा 370 हटाना। सीटों के बंटवारे को लेकर जो सौदेबाजी चल रही है उसमें यह भी एक बड़ा मुद्दा है।
बीजेपी के नेता सीटों के बंटवारे को लेकर चल रही बातचीत में बड़े जोर-शोर से यह तर्क दे रहे हैं कि 370 हटाने से उनके जनाधार में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है लिहाजा उन्हें ज़्यादा सीटें चाहिए।
लोकसभा चुनाव और उसके बाद कुछ दिनों तक शिवसेना और बीजेपी नेताओं की परस्पर बयानबाज़ी को देखकर यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि यह गठबंधन टूट सकता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुंबई यात्रा भी शामिल है, के बाद गठबंधन बने रहने के प्रबल आसार बढ़ गए।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण के दौरान गठबंधन की बात कही थी और सार्वजनिक सभा में उद्धव ठाकरे को अपना छोटा भाई कहकर संबोधित किया था। मोदी के इस संबोधन को इस बात से भी जोड़कर देखा गया था कि क्या अब शिवसेना छोटे भाई की भूमिका में अपने आपको सहज महसूस करने लगी है? क्योंकि यह पहली बार होगा जब महाराष्ट्र की राजनीति के इस भगवा राजनीतिक गठबंधन में सीटों की संख्या का प्रस्ताव बीजेपी की तरफ़ से दिया जा रहा है।
साल 2015 के विधानसभा चुनाव का गठबंधन इन दोनों पार्टियों में महज कुछ सीटों पर सहमति नहीं बन पाने की वजह से टूट गया था। लेकिन अब जो ख़बरें मिल रही हैं कि बीजेपी शिवसेना के लिए 120 से कम ही सीट छोड़ने के मूड में है तो यह इस बात का भी संकेत है कि अगला मुख्यमंत्री बीजेपी का ही होगा। जबकि शिवसेना लोकसभा चुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री पद को लेकर काफ़ी आसक्त दिखती रही है।
लोकसभा चुनाव में हुए गठबंधन के बाद शिवसेना के नेता शिवसैनिकों में यह संदेश भेजने लगे थे कि यह समझौता इस शर्त पर किया गया कि अगला मुख्यमंत्री उन्हीं की पार्टी का होगा। जब मुख्यमंत्री पद के लिए दोनों ओर के नेताओं की बयानबाज़ी बढ़ी तो उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस ने यह बयान देने शुरू कर दिए कि उन लोगों ने सब कुछ तय कर लिया है और समय आने पर उसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा।
लेकिन अब जब सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा पूरी होने वाली है तो यह संकेत स्पष्ट नज़र आने लगे हैं कि शिवसेना कहीं ना कहीं बैकफ़ुट पर आ गई है। अब सवाल यह उठता है कि कम सीटें मिलने की स्थिति में क्या शिवसेना में भी भगदड़ मचेगी? महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) के नेताओं की मानें तो ऐसा होने की प्रबल संभावनाएं हैं।
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