Rajendra Bhagwat, Maharashtra Legislature Secretary: Legislature Secretariat has received a letter claiming that Jayant Patil is the Legislative Party Leader for NCP. But, decision has to be taken by the Speaker. As of today, it has not been decided. pic.twitter.com/wqYQreVRau
— ANI (@ANI) November 26, 2019
क्या होता है प्रो-टेम स्पीकर?
प्रो-टेम स्पीकर की बहुत ही सीमित भूमिका होती है, वह बस सभी विधायकों को सदन की शपथ दिलवाता है। उसके बाद विधिवत स्पीकर का चुनाव होता है और प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका ख़त्म हो जाती है।
अमूमन होता यह है कि राज्यपाल सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त कर देते है। पर राज्यपाल इससे बँधा नहीं होता है, क्योंकि इससे जुड़ा कोई क़ानून नहीं है, यह बस संसदीय परंपरा है, जिसका निर्वाह मोटे तौर पर होता रहा है।
अदालत का फ़ैसला
बंबई हाई कोर्ट ने सुरेंद्र वसंत सिरसत केस में 1994 में एक बेहद अहम फ़ैसला देते हुए कहा था, 'प्रो-टेम स्पीकर सभी मक़सदों के लिए होता है, उसे सभी क्षमता, विशेषाधिकार और इम्यूनिटी मिली होती है।' एक दूसरे मामले में भी ऐसा ही फ़ैसला आया था। गोदावरी मिश्रा बनाम नंदकिशोर दास के मामले में ओड़ीशा हाई कोर्ट ने कहा था कि 'प्रो-टेम स्पीकर के अधिकार वे ही होते हैं जो चुने गए स्पीकर के होते हैं।' संविधान के अनुच्छेद 180 (1) के तहत राज्यपाल को यह अधिकार हासिल है कि वह प्रो-टेम स्पीकर चुने।यह भी दिलचस्प है कि साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में फ़्लोर टेस्ट के समय हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को पर्यवेक्षक बना कर भेजा था।
अमूमन होता यह है कि राज्यपाल सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त कर देते है। पर राज्यपाल इससे बँधा नहीं होता है, क्योंकि इससे जुड़ा कोई क़ानून नहीं है, यह बस संसदीय परंपरा है, जिसका निर्वाह मोटे तौर पर होता रहा है।
कांग्रेस के बाला साहेब थोराट को प्रो-टेम स्पीकर बनना चाहिए, क्योंकि वे वरिष्ठतम सदस्य हैं। पर राज्यपाल कोश्यारी ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। वे चाहें तो अपनी मर्ज़ी से किसी दूसरे सदस्य को भी प्रो-टेम स्पीकर बना सकते हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल की अब तक की भूमिका को देखते हुए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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