महाराष्ट्र मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भारी फ़जीहत हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पी. बी. सावंत ने उनकी तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल ने ‘संविधान और संसदीय लोकतंत्र का उल्लंघन किया है।’
उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, ‘महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, वह बहुत ही असंवैधानिक है। मुख्य मंत्री और उप मुख्य मंत्री की नियुक्ति और सरकार बनाने का यह संवैधानिक तरीका नहीं है। विधानसभा का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद भी मुख्य मंत्री को नियुक्त करना भी संवैधानिक नहीं था।’
सुप्रीम कोर्ट के इस पूर्व जज ने कहा :
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राज्यपाल को असंवैधानिक कामकाज का हिस्सा नहीं बनना चाहिए था। पहले विधायक शपथ लेते हैं, उसके बाद ही विधानसभा अस्तित्व में आता है और उसके बाद ही सरकार का गठन होना चाहिए। महाराष्ट्र के राज्यपाल इस महान संवैधानिक पद की गरिमा बरक़रार रखने में नाकाम रहे।
पी. बी. सावंत, रिटायर्ड जज, सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस सावंत ने कोश्यारी पर बेहद तीखा हमला बोलते हुए कहा कि ‘वह सरकार के हाथ की कठपुतली बन कर रह गए। राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है और वह सत्तारूढ़ दल के नेता की तरह व्यवहार नहीं कर सकता।’
उन्होंने इसी तरह एनसीपी नेता अजीत पवार के बारे में भी महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि अजीत पवार को पार्टी विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया है, अब वह व्हिप जारी नहीं कर सकते। ऐसा करना असंवैधानिक होगा।
बता दें कि पिछले शनिवार को शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की सरकार बनने की चर्चाओं के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार को डिप्टी सीएम के पद की शपथ दिला दी।
बीजेपी-एनसीपी की सरकार बनने से राजनीतिक जानकारों को ख़ासी हैरानी ज़रूर हुई थी क्योंकि कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच सरकार गठन को लेकर बातचीत पूरी हो चुकी थी और यह माना जा रहा था कि शनिवार को तीनों दल मिलकर एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेंगे और इसमें सरकार बनने की जानकारी देंगे। लेकिन उससे पहले ही यह सियासी उलटफेर हो गया था।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं और ये दोनों ही दल आसानी से राज्य में सरकार बना सकते थे। लेकिन शिवसेना के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को लेकर अड़ जाने को लेकर दोनों दलों के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। शिवसेना का कहना था कि 50:50 के फ़ॉर्मूले के तहत उसे राज्य में ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए लेकिन बीजेपी मुख्यमंत्री पद के बंटवारे के लिए तैयार नहीं थी। इस मुद्दे पर शिवसेना ने बीजेपी और एनडीए से नाता तोड़ लिया था।
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