महाराष्ट्र में दो लड़ाइयाँ चल रही हैं, एक कोरोना के ख़िलाफ़ और एक राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के लिए। विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह से प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना और राष्ट्रपति शासन तक लग गया था उसी स्थिति की पुनरावृत्ति नहीं हो, इसके लिए सत्ताधारी गठबंधन कोई कसर नहीं छोड़ रहा। सोमवार को राज्यपाल को भेजे गए प्रस्ताव में एक बार फिर राज्यपाल से अपील की गयी है कि वह तत्काल उद्धव ठाकरे को विधायक मनोनीत करें और प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता दूर करें।
9 अप्रैल को भी मंत्रिमंडल की तरफ़ से राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को एक प्रस्ताव भेजा गया था कि प्रदेश में विधान परिषद की 9 सीटों के चुनाव पर कोरोना की वजह से चुनाव आयोग ने रोक लगा रखी है, लिहाज़ा उन्हें राज्यपाल द्वारा मनोनीत की जाने वाली दो सीटों के कोटे से विधायक मनोनीत कर दिया जाए। राज्यपाल कोटे से कला और सामाजिक क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वाले लोगों का मनोनयन होता है।
इसके पीछे यह तर्क भी दिया गया कि उद्धव ठाकरे कुशल फ़ोटोग्राफ़र हैं, उनकी फ़ोटोग्राफ्स की प्रदर्शनियाँ हुई हैं और किताबें भी प्रकाशित हुई हैं, लिहाज़ा कला के कोटे से उन्हें विधायक मनोनीत किया जाना चाहिए। लेकिन राज्यपाल ने इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया। इसके विपरीत राजभवन में विरोधी पक्ष के नेताओं की सरगर्मियाँ बढ़ने लगीं। इन गतिविधियों पर शरद पवार, सांसद संजय राउत आदि नेताओं ने टिप्पणियाँ भी कीं और कहा कि क्या जानबूझकर प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का खेल खेला जा रहा है?
राज्य के पूर्व एटॉर्नी जनरल, संविधान विशेषज्ञों ने भी मीडिया में आकर यह बताया कि किस तरह से राज्यपाल मंत्रिमंडल के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए बाध्य होते हैं। लेकिन इन्हीं अटकलों के बीच भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का बयान आता है कि सत्ताधारी गठबंधन के नेता ख़ुद चाहते हैं कि ठाकरे इस्तीफ़ा दें। एक भाजपा नेता ने मंत्रिमंडल के प्रस्ताव को ही तकनीकी आधार पर अदालत में चुनौती दे डाली।
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