loader

महाराष्ट्र में इस बार त्रिकोणीय मुक़ाबले के आसार

आचार संहिता लागू हो गई है लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन और सीटों के बंटवारे का खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ है। जोड़तोड़ की क़वायदों को देखकर यह आकलन लगाया जा सकता है कि इस बार मुक़ाबला त्रिकोणीय होने वाला है। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेताओं द्वारा प्रयास किए जा रहे थे कि मोदी विरोधी मतों का विभाजन रुक जाए लेकिन वैसा होता नहीं दिख रहा है। 

कांग्रेस-एनसीपी को इस मामले में काफ़ी हद तक सफलता मिली है कि पिछली बार जो पार्टियाँ बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के साथ खड़ी थीं, इस बार उनके साथ हैं।

कांग्रेस-एनसीपी के लिए एक और राहत की बात है कि इस बार आम आदमी पार्टी मैदान में नहीं उतरने वाली है। पिछली बार आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसके बहुत से प्रत्याशियों ने अच्छे वोट भी बटोरे थे। 

ताज़ा ख़बरें

दलित-मुसलिमों पर है नज़र 

बीजेपी-शिवसेना व कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बाद इस बार प्रकाश अम्बेडकर और असदउद्दीन ओवैसी का वंचित गठबंधन भी प्रदेश की सभी सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है। इस गठबंधन की नज़र महाराष्ट्र के 6 फ़ीसदी दलित और 11 प्रतिशत मुसलिम मतदाताओं में अपनी पैठ बनाकर वोटों का नया ध्रुवीकरण तैयार करने की है।

क़रीब एक महीने तक प्रकाश अम्बेडकर और कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं में गठबंधन को लेकर वार्ता चल रही थी जो अब ख़त्म सी हो गई है क्योंकि गठबंधन के लिए प्रकाश अम्बेडकर ने 22 सीटों की माँग रखी थी। वंचित बहुजन आघाडी का विदर्भ-मराठवाड़ा की कुछ सीटों के साथ-साथ ईशान्य मुंबई, दक्षिण-मध्य और उत्तर-पश्चिम मुंबई लोकसभा सीट पर प्रभाव हो सकता है। 
महाराष्ट्र से और ख़बरें
इस चुनाव की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि दो प्रमुख दलित नेताओं की पार्टियाँ किसी भी प्रमुख गठबंधन का हिस्सा रहेंगी या नहीं, इसे लेकर संशय है। प्रकाश आम्बेडकर ने तो अपनी राह स्पष्ट कर दी है जबकि रामदास आठवले अभी भी दुविधा में हैं। 
आठवले यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में बने रहें या कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिला लें। आठवले जिस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे थे, वहाँ से शिवसेना ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है।
आठवले शिवसेना-बीजेपी गठबंधन होने के बाद से दर्जनों बार अपने लिए सीट की माँग कर चुके हैं और नहीं मिलने पर साथ छोड़ देने की धमकी भी दे चुके हैं लेकिन उनको लेकर शिवसेना-बीजेपी की तरफ़ से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। 
सम्बंधित खबरें

राणे और ठाकरे पर रहेगी नज़र

इस बार के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे की भूमिका पर भी सबकी नज़र रहेगी। नारायण राणे का प्रभाव कोंकण क्षेत्र में है लेकिन उनकी घटती लोकप्रियता के बाद वह क्या शिवसेना को कोई नुक़सान पहुँचा पाएंगे, यह देखना होगा। राणे ने साफ़ तौर पर घोषणा भी की है कि वह शिवसेना को नुक़सान पहुँचाने के लिए उसके ख़िलाफ़ प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे।

मनसे ने काटे थे शिवसेना के वोट

राज ठाकरे ने 9 मार्च को अपनी पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में नरेंद्र मोदी पर जिस तरह से हल्ला बोला था, उससे उन्होंने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। साल 2009 के लोकसभा चुनावों में मनसे ने शिवसेना के वोटों में बड़ी सेंधमारी थी जिसकी वजह से शिवसेना ठाणे जैसी लोकसभा की अपनी मजबूत सीट हार गई थी। 

2014 के चुनाव में शिवसेना 20 तथा बीजेपी 24 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। 4 सीटें दोनों ही पार्टियों ने गठबंधन के दूसरे साथियों के लिए छोड़ी थीं लेकिन इस बार बीजेपी 25 और शिवसेना 23 सीटों पर लड़ रही है।

गठबंधन करने से हुई मुसीबत 

गठबंधन में रहने के बावजूद पिछले साढ़े चार साल तक शिवसेना-बीजेपी का जुबानी युद्ध जारी था। युद्ध इस स्तर पर था कि दोनों ही पार्टियाँ चुनाव अलग-अलग लड़ने की तैयारी में थीं। जिन नेताओं ने बड़े पैमाने पर दो साल से अलग चुनाव लड़ने की तैयारी की थी, वे आज गठबंधन को पचा नहीं पा रहे हैं। ऐसे लोकसभा क्षेत्रों से बग़ावत के स्वर सुनाई दे रहे हैं जो पार्टी प्रमुखों के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं। 

कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में 25-23 का फ़ॉर्मूला तय हुआ है। दोनों ही पार्टियाँ मित्र दलों को अपने-अपने हिस्से में से सीटें देंगी। दलित और मुसलिम वोटों में बंटवारा नहीं हो इसके लिए शरद पवार बसपा, सपा से गठबंधन की जुगत में लगे हैं।
आमतौर पर बसपा महाराष्ट्र में प्रदेश की सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारती रही है और वे 5 से 10 हजार वोट हासिल कर लेते हैं। समाजवादी पार्टी का मुंबई में भिवंडी और कल्याण लोकसभा में कुछ प्रभाव है और कांग्रेस-एनसीपी नहीं चाहती कि मतों के विभाजन से शिवसेना-बीजेपी को फ़ायदा पहुँचे। वर्तमान में प्रदेश की 48 सीटों में 40 बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पास हैं। कांग्रेस के पास 2, एनसीपी के पास 5 तथा स्वाभिमानी शेतकरी पार्टी के पास 1 सीट है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय

अपनी राय बतायें

महाराष्ट्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें