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संघ पर बैन लगाने की मांग से क्या पंजाब में बढ़ेगा तनाव?

सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख़्त ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर जोरदार हमला बोला है। अकाल तख़्त ने कहा है कि संघ को आज़ादी से काम करने की अनुमति देने से देश का बंटवारा होगा। अकाल तख़्त के प्रमुख ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा है कि संघ पर प्रतिबंध लगना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि संघ जो कर रहा है उससे देश में विभाजन पैदा होगा। संघ के नेताओं की ओर से जो बयान दिये जा रहे हैं, वे देश के हित में नहीं हैं।’ हरप्रीत सिंह अमृतसर में पत्रकारों से बात कर रहे थे। जब पत्रकारों ने हरप्रीत सिंह से कहा कि बीजेपी का संबंध आरएसएस से है तो उन्होंने कहा कि यह देश के हित में नहीं है, इससे देश को नुक़सान पहुंचेगा और देश बर्बाद होगा। 

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सिख समुदाय के धार्मिक नेताओं का संघ की विचारधारा से पहले भी टकराव होता रहा है। पिछले हफ़्ते शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ कहने पर आपत्ति जताई थी। मोहन भागवत ‘हिंदू राष्ट्र’ की बात पहले भी कई मौक़ों पर दोहराते रहे हैं। 

 

संघ प्रमुख ने दशहरे वाले दिन स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘भारत अकेला देश है जहां यहूदियों को आश्रय मिला है, पारसियों की पूजा उनके मूल धर्म सहित केवल भारत में सुरक्षित है। विश्व के देशों में सर्वाधिक सुखी मुसलमान केवल भारत में मिलेंगे। यह क्यों हैं? क्योंकि हम हिंदू हैं और इसलिए हमारा हिंदू देश है, हमारा हिंदू राष्ट्र है।’

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी संघ प्रमुख के बयान पर पलटवार करते हुए कहा था कि भारत न कभी हिंदू राष्ट्र था, न है और न कभी बनेगा।

अकाल तख़्त प्रमुख के संघ पर बैन लगाने की मांग के बाद निश्चित रूप से संघ की भूमिका को लेकर सवाल खड़े होने लाजिमी हैं। संघ ख़ुद भी सिखों के बीच पैठ बढ़ा रहा है और राष्ट्रीय सिख संगत नाम से उसकी सिख इकाई लगातार सिखों को संघ के साथ जोड़ रही है। 

एक ओर आरएसएस राष्ट्रीय सिख संगत के जरिए पंजाब में संघ की विचारधारा का प्रचार करने में जुटा है लेकिन कट्टरपंथी सिख संगठन इसे सिख विरोधी बताते हुए इसका विरोध करते रहे हैं।

खालिस्तानी उग्रवादी संगठन 1984 के सिख विरोधी दंगों को आधार बनाकर हिंदू और सिख समुदायों को बांटने में लगे हैं। पिछले कुछ समय में पंजाब में संघ की शाखाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने के कारण भी खालिस्तानी संगठन उग्र हुए हैं। 

विवाद का प्रमुख कारण यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिख धर्म को हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा मानता है जबकि कट्टरपंथी सिख संगठन सिख धर्म को अलग बताते हैं और इसे हिंदू धर्म के साथ जोड़ने का पुरजोर विरोध करते हैं।

राष्ट्रीय सिख संगत और खालिस्तानी संगठनों के टकराव के कारण ही उग्रवादी संगठन बब्बर खालसा ने 2009 में राष्ट्रीय सिख संगत के तत्कालीन अध्यक्ष रुलदा सिंह की पटियाला में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद भी पंजाब में संघ के कई नेताओं की हत्या हुई और इसके लिए कट्टरपंथी खालिस्तानी उग्रवादियों को जिम्मेदार माना गया। अक्टूबर 2017 में दिल्ली में आयोजित होने वाले सर्व धर्म सम्मेलन को लेकर भी यह टकराव देखने को मिला था। 

खालिस्तान आंदोलन को भड़काने की कोशिश

पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में इस तरह के वीडियो सामने आये हैं जिनमें पंजाब के अंदर खालिस्तान आंदोलन को भड़काने और 2020 तक पंजाब में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई है। ये उग्रवादी संगठन पंजाब को खालिस्तान नाम का अलग देश बनाने के मंसूबे पाले हुए हैं। कहा जाता है कि इन संगठनों से जुड़े लोग पाकिस्तान, कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों में सक्रिय हैं और भारत में रहने वाले सिखों को अलग देश के नाम पर भड़का रहे हैं। 

आईएसआई दे रही हवा 

पंजाब के जानकारों के मुताबिक़, पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई लगातार खालिस्तान समर्थकों को हवा दे रही है और उसकी कोशिश पंजाब का माहौल ख़राब करते हुए एक बार फिर राज्य में कत्लेआम करवाने की है। बता दें कि पंजाब लंबे समय तक उग्रवाद की चपेट में रहा और इस दौरान खालिस्तान के मुद्दे पर हजारों निर्दोष हिंदुओं-सिखों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 

सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर भी कुछ साल पहले ही पंजाब में दंगे हो चुके हैं। कुल मिलाकर पंजाब ऐसे मुहाने पर खड़ा है, जहां किसी भी छोटी घटना से हिंदुओं और सिखों के बीच तनाव बढ़ सकता है। 

ऐसे समय में संघ प्रमुख के बयान के बाद एसजीपीसी अध्यक्ष का पलटवार करना और अकाल तख़्त के प्रमुख का संघ की विचारधारा को देश को तोड़ने वाला बताने के साथ ही इस पर बैन लगाने की मांग करना काफ़ी अहम है। 

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पवन उप्रेती

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