सरकार के दावों पर और अख़बारों के पहले पन्नों पर यक़ीन करें तो कोरोना की दूसरी लहर भी अब ख़त्म होने को है। सवाल पूछा जाने लगा है कि बाज़ार कब खुलेंगे, कितने खुलेंगे? हम कब बाहर निकल कर खुले में घूम पाएँगे?
2014 के मुक़ाबले 2021 में आज भारत कहाँ खड़ा है, आम भारतीय किस स्थिति में हैं? मोदी सरकार के 7 साल के शासनकाल में जहाँ जीडीपी की विकास दर घटती चली गयी, वहीं देशवासियों पर कर्ज बढ़ता चला गया।
GDP के आँकड़े आ गये है । लगातार दूसरी तिमाही विकास नकारात्मक है । मंदी पक्की । क्या मोदी संभाल पायेंगे अर्थव्यवस्था ? आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, हरजिंदर और मधुरेंद्र सिन्हा !
भारत की जीडीपी में इस तिमाही साढ़े सात परसेंट की गिरावट दर्ज की गई है। भारत सरकार ने जुलाई से सितंबर की तिमाही का जीडीपी का आँकड़ा जारी किया है। इसके साथ ही यह पुष्ट हो गया कि भारत आर्थिक मंदी की चपेट में है।
देश के आर्थिक विमर्श में इन दिनों नई हरी पत्तियों की चर्चा अचानक ही शुरू हो गई है। सितंबर महीने के जो आँकड़ें हैं वे भले ही कोई बड़ी उम्मीद न बंधी रही हो, राहत तो दे ही रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फिच का नया अनुमान 10.5 फीसदी गिरावट (उसका जून का अनुमान 5 फीसदी का ही था) का है जबकि गोलडमैन सैक्स का अनुमान तो 14.9 फीसदी पर पहुंच गया है। एक ही दिन में आई तीसरी रिपोर्ट इंडिया रेटिंग्स की है जो 11.8 फीसदी गिरावट की भविष्यवाणी करती है।
ज़ब देश में एक दिन में एक लाख कोरोना केस हो रहे हैं, अर्थव्यवस्था रसातल में जा चुकी हो और चीन मातृभूमि पर कब्जा किये बैठा हो तब कंगना की चर्चा एक बहुत बडे ख़तरे की घंटी है । आशुतोष के साथ चर्चा में उर्मिलेश, आलोक जोशी, विजय त्रिवेदी।
पिछली तिमाही में भारत की जीडीपी विकास दर -23.9 रही है। रिपोर्ट है कि अगली तिमाही में भी यह नकारात्मक रहेगी। यानी 40 साल में पहली बार भारत आर्थिक मंदी की चपेट में जा चुका होगा।
जीडीपी में गिरावट, बढ़ती बेरोज़गारी, बेलगाम कोरोना संक्रमण और चीनी अतिक्रमण को लेकर राहुल गाँधी ने मोदी पर हमला किया है। उन्होंने कहा है कि देश प्रधानमंत्री मोदी द्वारा खड़े किए गए संकटों का सामना कर रहा है।
सिर्फ एक तिमाही में जीडीपी नकारात्मक नहीं है। अगले पूरे साल भी जीडीपी निगेटिव रहेगी। अगर मोदी सरकार ने जल्दी बड़ा कदम नहीं उठाया, वित्त मंत्री को नहीं बदला तो भयानक तबाही होगी।
देश की जीडीपी में तेज़ गिरावट आई तो उसका आम इंसान की ज़िंदगी पर क्या फ़र्क पड़ेगा? भारत को फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर यानी पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने का क्या होगा और इस हालत से उबरने का रास्ता क्या है?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने कोरोना महामारी को ही ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ कहा है। ऐसा कहकर बीते छह सालों में लगातार गिरती अर्थव्यवस्था के वाजिब कारणों को पहचाने से भी बचने की कोशिश कर रही है केंद्र सरकार।
सिर्फ़ 40 दिन में 69 लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन दिया। बेरोज़गारी के भयावह संकट के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने 11 जुलाई को ही इस पोर्टल को लॉन्च किया है।
लॉकडाउन की घोषणा या उससे पहले नौकरियों के बारे में जिस तरह की आशंकाएँ जताई जा रही थीं, ठीक वैसा ही असर हुआ है। लॉकडाउन के दौरान अप्रैल से जुलाई तक 1 करोड़ 89 लाख वेतन भोगी लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं।