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सीएए: वसूली वाले होर्डिंग्स को लेकर हाई कोर्ट सख़्त, कल आएगा फ़ैसला

उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों से सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान की वसूली के लिए योगी सरकार की ओर से सड़कों, चौराहों पर होर्डिंग्स लगाना जनता ही नहीं हाई कोर्ट को नागवार गुजरा है। मामले का खुद-ब-खुद संज्ञान लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने शनिवार को भी इस मामले में सुनवाई की थी और अवकाश के दिन यानी रविवार को भी सुनवाई की।

हाई कोर्ट ने कहा कि रविवार दोपहर तीन बजे तक सभी होर्डिंग्स हटा दी जाएं और अदालत को इस बारे में सूचित किया जाए। हाई कोर्ट ने सरकार के अधिकारियों से कहा कि उम्मीद है आपको सदबुद्धि आएगी और होर्डिंग्स को तुरंत हटा दिया जाएगा। इसके बाद अदालत ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत इस मामले में 9 मार्च को फ़ैसला सुनाएगी। 

किस क़ानून के तहत लगी होर्डिंग्स?

इससे पहले शनिवार को मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किस क़ानून के तहत ये होर्डिंग्स लगाई गई हैं। हाई कोर्ट ने रविवार को छुट्टी के बावजूद मामले की सुनवाई जारी रखते हुए योगी सरकार के अधिकारियों को हाजिर रहने को कहा था। अधिकारियों ने हाई कोर्ट को बताने की कोशिश की कि ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है। इस पर कोर्ट की ओर से कहा गया कि अदालत ने बहुत सी चीजें रोकने का आदेश नहीं पारित किया है। राज्य सरकार की ओर से पक्ष रख रहे वकीलों और अधिकारियों मे कोर्ट के आदेश के बाद खलबली मच गई है। हाई कोर्ट का आदेश जारी होते ही बड़ी संख्या में लखनऊ नगर निगम के कर्मचारियों को छुट्टी के दिन तलब कर लिया गया है।

इन होर्डिंग्स में लोगों को हिंसा के लिये जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे वसूली करने की बात लिखी गई है। होर्डिंग्स में लोगों की तसवीरें लगाई गई हैं और कहा गया है कि इन लोगों से 67 लाख रुपये की वसूली की जानी है।
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होर्डिंग्स में कहा गया है कि अगर आरोपी वसूली की राशि नहीं दे पाते हैं तो उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया जायेगा। योगी सरकार की ओर से प्रदेश में कई लोगों को संपत्ति जब्त करने का नोटिस जारी किया जा चुका है। लखनऊ में नागरिकता क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान एक शख़्स की मौत हो गई थी। लखनऊ के कई चौराहों पर लगे ये होर्डिंग चर्चा का विषय बने हुए हैं। 

इन होर्डिंग्स में में प्रदेश में आईजी रहे एस.आर. दारापुरी सामाजिक कार्यकर्ता व रंगकर्मी दीपक कबीर, जाने माने शिया उलेमा मौलाना सैफ अब्बास व कांग्रेस नेत्री सदफ़ ज़फ़र के भी फ़ोटो हैं। एस.आर. दारापुरी को यूपी पुलिस ने नज़रबंद कर दिया है। अदालत दारापुरी, सदफ़ ज़फ़र व दीपक कबीर को ज़मानत दे चुकी है और पुलिस उनके ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल होने का कोई भी साक्ष्य पेश नहीं कर सकी थी। 

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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस मामले में योगी सरकार को घेरा है। प्रियंका ने ट्वीट कर कहा, ‘यूपी की बीजेपी सरकार का रवैया ऐसा है कि सरकार के मुखिया और उनके नक्शे कदम पर चलने वाले अधिकारी खुद को बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान से ऊपर समझने लगे हैं। उच्च न्यायालय ने सरकार को बताया है कि आप संविधान से ऊपर नहीं हो। आपकी जवाबदेही तय होगी।’

इन दिनों उत्तर प्रदेश में अधिकारी लगातार लोगों को वसूली नोटिस जारी कर रहे हैं। इस मामले में वकीलों का कहना है कि जिला प्रशासन की ओर से मुख्यमंत्री की शाबासी मिलने की होड़ में जो नोटिस भेजे जा रहे हैं, वे क़ानूनी तौर पर वैध नही हैं। 

वसूली को लेकर प्रदेश सरकार के निर्देश के बाद लखनऊ जिला प्रशासन ने नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों की तसवीरों वाले होर्डिंग्स पूरे शहर में लगा दिये थे। होर्डिंग्स के लगने के बाद देश भर में तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई थी।

लोगों का कहना था कि यह न केवल ग़ैर-क़ानूनी है बल्कि निजता के अधिकार का हनन है। इन होर्डिंग्स के लगने के बाद उन लोगों की जानमाल का भी ख़तरा पैदा हो गया है जिनपर प्रदर्शन में शामिल होने और हिंसा करने का आरोप तक नहीं सिद्ध हो पाया है।

मौलाना सैफ अब्बास ने मानहानि का मुक़दमा दायर करने की बात कही, वहीं सदफ़ और दीपक के साथ दारापुरी ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात कही थी। लेकिन इससे पहले ही हाई कोर्ट ने खुद ही संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई शुरू कर दी।

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कुमार तथागत

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