मिर्ज़ापुर मिड-डे मील मामले में क्या जिलाधिकारी ने झूठ बोला था। मिर्ज़ापुर के डीएम अनुराग पटेल ने कहा था कि बच्चों को नमक रोटी देने की घटना सिर्फ़ उसी दिन हुई थी और यह साज़िशन कराई गई थी। लेकिन उस स्कूल में बच्चों के लिए खाना बनाने वाली महिला ने जिलाधिकारी के झूठ की पोल खोल दी है। बता दें कि यह मामला मिर्ज़ापुर के सियूर के एक सरकारी स्कूल का है, जहाँ बच्चों को मिड डे मील में नमक के साथ रोटी दिये जाने का वीडियो सामने आया था।
यह वीडियो बनाना पत्रकार पवन जायसवाल को भारी पड़ गया था और खंड शिक्षा अधिकारी ने जायसवाल और ग्राम प्रधान प्रतिनिधि राजकुमार पर मुक़दमा दर्ज करा दिया था। बच्चों के रोटी के साथ नमक खाने का वीडियो तेज़ी से वायरल हुआ था और इस मामले में यूपी सरकार की ख़ासी किरकिरी हुई थी।
इस मामले में हैरतअंगेज मोड़ तब आ गया था जब मिर्ज़ापुर के डीएम का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह प्रिंट मीडिया के पत्रकार को बता रहे थे कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। जब उनसे यह पूछा गया था कि पत्रकार ख़बर बनाने गया था तो उसके ख़िलाफ़ क्यों मुक़दमा दर्ज करा दिया गया और वह साज़िशकर्ता कैसे हो गया। इस पर डीएम ने कहा था कि ‘प्रिंट मीडिया के पत्रकार का ख़बर बनाने का तरीक़ा अलग होता है। प्रिंट मीडिया के पत्रकार थे तो फ़ोटो खींच लेते, जो गंभीरता लग रही थी, ग़लत हो रहा था, उसे आप छाप सकते थे लेकिन उन्होंने (पत्रकार ने) ऐसा नहीं किया, इसलिए उनकी भूमिका संदिग्ध लगी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया।’ इसके बाद लोगों ने उन्हें जमकर ट्रोल किया था। अपने इसी बयान में डीएम ने यह कहा था कि बच्चों को नमक रोटी देने की घटना सिर्फ़ उसी दिन हुई थी।
सभी पत्रकार सावधान !! मिर्ज़ापुर के डीएम के हिसाब से अगर आप अख़बार/प्रिंट मीडिया के पत्रकार हैं तो आप सिर्फ़ और सिर्फ फ़ोटो खिंच सकते हैं और अगर आपने ग़लती से वीडियो बना लिया तो आप पर FIR हो सकती है। शर्मनाक। pic.twitter.com/OFHljUpp16
— Vinod Kapri (@vinodkapri) September 3, 2019
This is the cook who served rotis + salt to kids at #Mirzapur. Please hear who she blames for the mess and her opinion on journalist #PawanJaiswal , who has been booked by the @mirzapurpolice for conspiracy , for his expose on the story ! You should award the journo , @UPGovt !! pic.twitter.com/XYzCMeTUnG
— Alok Pandey (@alok_pandey) September 4, 2019
पत्रकार पवन जायसवाल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज होने से पत्रकारों में ग़ुस्सा है और उन्होंने मिर्जापुर में जोरदार प्रदर्शन किया था। एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने भी सरकार की इस कार्रवाई की निंदा की थी और कहा था कि यह बात बेहद हैरान करने वाली है कि ग़लती को सुधारने के बजाय सरकार ने पत्रकार के ख़िलाफ़ ही आपराधिक मुक़दमा दर्ज करा दिया।
पवन जायसवाल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि उसने स्कूल में जाने से पहले अतिरिक्त बेसिक शिक्षा अधिकारी (एबीएसए) बृजेश सिंह को इस बारे में बताया था। पवन ने कहा, ‘22 अगस्त को सुबह 10.50 बजे मेरे पास राजकुमार का फ़ोन आया और उसने मुझे बच्चों को मिल रहे मिड-डे मील में गड़बड़ी के बारे में बताया और इसके बाद ही मैंने एबीएसए को इस बारे में बताया था और मेरे पास दोनों से की गई बातचीत की रिकार्डिंग है।’ जायसवाल ने कहा कि उनके ख़िलाफ़ यह कार्रवाई प्रशासन द्वारा उसे चुप कराने की कोशिश है।
यूपी सरकार ने सोमवार को दावा किया था कि पत्रकार पवन जायसवाल ने एक शिक्षक को निलंबित करवाने के लिए साज़िश की थी और राजकुमार पाल भी इस साज़िश में शामिल था। लेकिन सीउर गाँव के स्थानीय निवासियों ने कहा कि ऐसा सरकार ने घटना को छुपाने के लिए ऐसा कहा था। इस तरह यूपी सरकार के इस झूठ की भी पोल खुल गई।
कुल मिलाकर सच्चाई को सामने वाले पत्रकार के ख़िलाफ़ कार्रवाई के कारण यूपी सरकार को ख़ासी फ़जीहत का सामना करना पड़ा है। सरकार को करना तो यह चाहिए था कि वीडियो सामने आने के बाद शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करती जिससे समाज में यह संदेश जाता कि सरकार भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ है लेकिन सरकार ने उल्टी कार्रवाई करके अपने लिये मुसीबत मोल ले ली।
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