हाथरस में दलित समुदाय की एक युवती के साथ हैवानियत और फिर उसका जबरन दाह संस्कार करने के कारण इस समुदाय के साथ ही हर आम व खास शख़्स में गुस्सा है। ऐसे में बीजेपी के दलित नेताओं के भीतर भी बेचैनी है, क्योंकि पीड़िता के परिवार की ओर से बीजेपी के स्थानीय सांसद (जो दलित समुदाय से ही हैं) पर पीड़िता को सही वक़्त पर इलाज मुहैया न कराने के आरोप लगाए गए हैं।
इसके अलावा भी लोग बीजेपी के दूसरे दलित नेताओं से पूछ रहे हैं कि वे इतनी वीभत्स घटना के बाद भी आवाज़ क्यों नहीं उठाते। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के कई दलित सांसदों ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में कहा कि इस घटना से सरकार और शासन की छवि को चोट पहुंची है, साथ ही राजनीतिक नुक़सान भी हुआ है।
हालांकि यह उनकी सियासी मजबूरी है कि इसके बाद भी उन्हें राज्य सरकार में विश्वास होने की बात कहनी पड़ी।
बेतहाशा बढ़ रहे अपराध
उत्तर प्रदेश में बेतहाशा बढ़ रहे अपराधों के कारण योगी सरकार कटघरे में है। आम जनमानस में इन अपराधों के कारण ग़ुस्सा है। प्रदेश में ‘राम राज्य’ देने का वादा करने वाले योगी आदित्यनाथ ने जब ख़ुद यह बताया कि हाथरस की घटना को लेकर मुल्क़ के वजीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी ने उन्हें फ़ोन किया है तो लोगों को लगा कि शायद राज्य सरकार अब क़ानून व्यवस्था के मसले को गंभीरता से लेगी।
योगी के बस में नहीं?
लेकिन उसी दिन यानी 30 सितंबर को बलरामपुर में दलित समाज की एक और युवती के साथ अमानवीय वारदात हो गई। इस युवती के साथ बलात्कार किया गया और अभियुक्तों ने उसके पांव और कमर को तोड़ दिया। गंभीर रूप से घायल युवती की मौत हो गई। इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में अपराध पर लगाम लगा पाना योगी आदित्यनाथ के बस की बात नहीं है। ऐसे न जाने कितने अपराध तो मीडिया में आ ही नहीं पाते।
अब योगी सरकार हाथरस के परिवार को 25 लाख रुपये का मुआवज़ा, परिवार के सदस्य को नौकरी, घर देने की बात कहकर दलित समुदाय के गुस्से को शांत करना चाहती है। इसे लेकर दलित सवाल पूछ रहे हैं कि क्या उनकी बहन-बेटियों की जान इतनी सस्ती है?
बहरहाल, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में उत्तर प्रदेश बीजेपी के चार दलित सांसदों ने हाथरस मामले में पुलिस की कार्रवाई की निंदा की और कहा कि इसकी उचित जांच होनी चाहिए। उन्होंने परिवार को शामिल किए बिना युवती का दाह संस्कार करने पर भी सवाल उठाए।
कौशांबी के सांसद विनोद कुमार सोनकर ने कहा, ‘निश्चित रूप से इस घटना से राज्य और हमारी सरकार की छवि ख़राब हुई है। इससे राजनीतिक नुक़सान भी हो रहा है। लेकिन राज्य सरकार परिवार को न्याय दिलाने के लिए पूरे प्रयास कर रही है।’
सोनकर ने इस तरह की घटनाओं के लिए पुलिस में जातिवाद और भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होने की बात मानी। इसके बाद सोनकर एसपी और बीएसपी सरकारों के काम पर उतर आए और गिनाने लगे कि उनकी सरकारों में पुलिस विभाग और नौकरशाही में किस तरह जाति के आधार पर पद बांटे जाते थे।
सोनकर को कुछ दिन पहले ही बीजेपी के अनूसूचित जाति विभाग का अध्यक्ष बनाया है और उनके बयान में पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ न जाने की राजनीतिक मजबूरी साफ दिखाई देती है।
बिहार चुनाव की चिंता
एक दूसरे सांसद ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर चेतावनी दी कि इस घटना से पार्टी को बिहार चुनाव में नुक़सान होगा। इसका मतलब नेताओं को सिर्फ़ राजनीतिक नफ़े-नुक़सान की चिंता है, समाज के या देश के किसी शख़्स की पीड़ा से उनका कोई वास्ता नहीं।
उत्तर प्रदेश के मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर ने राज्य की पुलिस पर ग़रीबों और दलितों का उत्पीड़न करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे पुलिसकर्मियों को सजा देनी चाहिए। सांसद ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि यह सरकार दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी।
निराश हैं दलित
प्रधानमंत्री मोदी के फ़ोन के बाद एक्शन में आए योगी आदित्यनाथ ने आनन-फानन में एसआईटी गठित कर एक हफ़्ते में रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
सांसदों के बयानों से इतर दलित समाज कह रहा है कि राजनीतिक मजबूरी की वजह से ये सांसद हाथरस जैसी घटना पर चुप्पी साधे हुए हैं। दलित सांसद ख़ुद को और योगी सरकार को बचाने की राजनीतिक बाध्यता निभा रहे हैं लेकिन यह उन्हें भी पता है कि समाज चुप रहने वालों को माफ़ नहीं करेगा।
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