क्या इस लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया भुगतान और आवारा पशुओं की समस्या के मुद्दे चुनाव को प्रभावित करेंगे? इस सवाल का जवाब इससे मिलेगा कि गन्ना किसान नाराज़ हैं या ख़ुश। हालाँकि पिछले दो सालों में अधिकतर गन्ना किसान बकाये भुगतान नहीं होने का आरोप लगाकर विरोध-प्रदर्शन करते रहे हैं, लेकिन सरकार किसानों को संतुष्ट करने के दावे करती रही है। किसानों के सामने आवारा पशुओं की समस्या भी है। यदि इन समस्याओं से किसानों में नाराज़गी होगी तो इसका चुनाव पर असर पड़ेगा। और यह असर किस कदर पड़ता है, यह 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुल मतदाताओं के 70 फ़ीसदी लोग सीधे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से गन्ने की फ़सलों पर निर्भर हैं। इनकी नाराज़गी का सीधा मतलब यह होगा कि इस क्षेत्र में 18-22 सीटों पर चुनाव के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गन्ना किसानों के बकाये भुगतान का वादा किया था और इस वजह से उसने इस क्षेत्र की लोकसभा सीटों पर जबर्दस्त जीत दर्ज की थी। बीजेपी को सपा और बसपा को मिले वोटों के कुल जोड़ से भी ज़्यादा वोट मिले थे। इसके बाद 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी अधिकतर सीटों पर बीजेपी का कब्ज़ा हुआ। हालाँकि विधानसभा में इसे कम वोट मिले। बीजेपी को जहाँ 2014 में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे, वहीं 2017 में यह घटकर 44 फ़ीसदी पर आ गया। इस बार इस क्षेत्र में 11 और 18 अप्रैल को लोकसभा के चुनाव हैं। तो इस बार क्या है स्थिति?
आरोप: इस साल का नहीं हुआ भुगतान
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में शामली में चीनी मिल में गन्ना बेचने के लिए लाइन में खड़े किसानों के बयान छपे हैं। एक किसान सरी तोमर कहते हैं कि 2017 में योगी आदित्यनाथ ने 14 दिन के अंदर बकाया भुगतान करने का वादा किया था, लेकिन किसानों को सिर्फ़ 2017-18 के लिए ही भुगतान किया गया है। एक अन्य किसान राकेश कुमार ने यूपी और केंद्र सरकार की तारीफ़ करते हुए कहा कि एक दशक में पहली बार सभी बकाया भुगतान हो गया है, सिर्फ़ इस साल का ही भुगतान बाक़ी है।
‘लागत बढ़ी, गन्ने की क़ीमत नहीं’
एक अन्य किसान अशोक कुमार ने कहा कि खाद की क़ीमत पिछले साल के 1100 से बढ़कर 1400 रुपये हो गयी है, बिजली 100 रुपये से बढ़कर 150 रुपये प्रति महीने हो गयी है तो गन्ना पिछले साल की क़ीमतों पर ख़रीदना कहाँ तक उचित है।
दावा: पिछले साल का पूरा भुगतान कर दिया
रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव (गन्ना) संजय भूसरेड्डी का बयान है जिसमें वह कहते हैं कि पिछले दो साल में गन्ना किसानों का 59 हज़ार करोड़ रुपये का पिछला बकाया चुकाया गया है। वह यह भी कहते हैं कि गन्ना किसानों का इस साल का क़रीब 24 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान भी चीनी मिलों ने कर दिया है। हालाँकि अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार इस साल गन्ना किसानों का 10 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का बकाया अभी भी है। हालाँकि किसान इससे काफ़ी ज़्यादा बकाये होने की शिकायतें करते रहे हैं।
आवारा पशुओं से फ़सलें चौपट, किसान खफ़ा
उत्तर प्रदेश में सड़कों पर आवारा घूम रही गायें लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि चारे-पानी की कमी होने के कारण किसानों ने इन्हें आवारा छोड़ दिया है। ये अब फ़सलों को तबाह कर रहे हैं। परेशान किसानों ने आवारा गाय-बैलों को सरकारी भवनों में भी बंद कर दिए। एक अनुमान के मुताबिक़, इस समय प्रदेश भर में 5 लाख से ज़्यादा गाय और बैल सड़कों पर आवारा घूम रहे हैं और खेतों को नुक़सान पहुँचा रहे हैं। रिपोर्टें तो ऐसी हैं कि प्रदेश की योगी सरकार को पार्टी के सांसद और विधायक हर बैठक में आवारा पशुओं को लेकर किसानों व आम नागरिकों में फैले असंतोष को लेकर चेताते रहे हैं और लोकसभा चुनाव में इनसे होने वाले नुक़सान की बात कर रहे हैं।
गायों के ख़रीदार नहीं मिल रहे
'हिंदुस्तान टाइम्स' ने एक रिपोर्ट में लिखा है कि अंगदपुर गाँव के डॉ. किरपाल सिंह ने अपनी दो गायों को बेचने के लिए कई बार प्रयास किये, लेकिन कोई ख़रीदार नहीं मिलने से वे उन्हें बेच नहीं पाये। पशुओं के अधिकतर व्यापारी मुसलिम हैं, जिन्होंने योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद पशुओं की ख़रीद-फरोख़्त बंद कर दी है। इस कारण गायों की माँग कम हो गयी और क़ीमतें बहुत ज़्यादा गिर गयीं। इसका नतीजा यह हुआ कि किसानों को बहुत ज़्यादा नुक़सान हुआ। इस क्षेत्र में गन्ना किसानों का भी भुगतान बकाया है।
स्कूल की फीस भी जमा नहीं कर पा रहे
रिपोर्ट में जिवाना के गुरुकुल इंटरनेशनल स्कूल और अमिनगर सराय के वेदांती इंटरनेशनल स्कूलों के मालिकों के बयान का ज़िक्र है जिसमें वे कहते हैं कि स्कूलों में बच्चे फीस जमा नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि किसानों के पास पैसे ही नहीं हैं। आरएलडी नेता जयंत चौधरी कहते हैं कि चीनी मिल द्वारा किसानों के बकाये का भुगतान नहीं होने से किसानों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी प्रभावित हो रही है।
बीजेपी समर्थक ही विरोधी बन गये!
'बिज़नेस लाइन' ने शामली में एक किसान देशपाल राणा से बातचीत प्रकाशित की है। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार 1978 से शामली में संघ परिवार और बीजेपी के कार्यकर्ता रहे राणा अब गन्ने का भुगतान नहीं होने और आवारा पशुओं की समस्या के कारण पार्टी और संघ के आलोचक बन गये हैं। देशपाल राणा ने कहा कि दो महीने में आवारा पशुओं ने जौ की 60 फ़ीसदी फ़सलों को तबाह कर दिया है। उन्होंने कहा कि सिर्फ़ जौ ही नहीं, गेहूँ और गन्ने की फ़सलें भी चौपट हो गयी हैं।
'बिज़नेस लाइन' की रिपोर्ट में बैसवाल के एक अन्य किसान विष्णु चौधरी ने कहा है, 'पहले हम बछड़ों को बेचकर 3 से 5 हज़ार कमाई कर लेते थे, लेकिन गोरक्षक गैंग के डर से अब कोई भी इन्हें ख़रीदने को तैयार नहीं है।'
क्या है परेशानी?
प्रदेश सरकार ने ज़िलाधिकारियों को आवारा गौवंश की व्यवस्था करने के निर्देश देने के साथ ही तेज़ी से गोशालाएँ बनाने को कहा है। प्रदेश सरकार के पास विभिन्न ज़िलों से जो आकलन भेजा गया है उसके मुताबिक़, एक आवारा गाय के चारे पर सालाना 2,200 रुपये का ख़र्च आएगा। इस हिसाब से आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए 1500 करोड़ रुपये की तुरंत ज़रूरत है। इसके अलावा हर नगर पालिका, पंचायत और नगर निगम में गोशालाओं के निर्माण के लिए पैसों की ज़रूरत है। पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रदेश सरकार गोशालाओं के निर्माण के लिए 160 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है। लेकिन बड़ी तादाद में आवारा गाय, बैलों को देखते हुए यह रकम काफ़ी नहीं है।
सरकार के दावे कुछ भी हों, लेकिन किसानों में कितनी नाराज़गी है, या है भी नहीं, इसका पता तो चुनाव नतीजों के बाद चलेगा।
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