loader

यूपी उपचुनाव के नतीजे बीजेपी सहित सभी दलों के लिए ख़तरे की घंटी क्यों?

उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी है तो विपक्षी दलों के लिए भी चेतावनी कम नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन उपचुनावों में सभी क्षेत्रों में दो-दो रैलियाँ कीं। चुनाव की अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले जमकर परियोजनाओं का लोकार्पण, शिलान्यास किया गया। हर विधानसभा क्षेत्र में एक-एक कबीना मंत्री, दो-दो प्रदेश पदाधिकारियों की ड्यूटी लगायी गई। उपचुनावों के दौरान स्थानीय मुद्दे व विकास नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370, 35ए, राम मंदिर, ‘हाउडी मोदी’, पीओके में घुसकर मारने जैसे मामले ही प्रचारित हुए। इन सबके बाद भी नतीजों में बीजेपी ने अपनी दो सीटें गँवा दी है। 

हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के मुक़ाबले बीजेपी के 12 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट घट गए। एक जगह तो उसका उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहा। हालाँकि बीजेपी ने इन उपचुनावों में आठ सीटें जीतीं जबकि उसके पास पहले नौ सीटें थीं। सपा के लिए खुश होने की वजह एक की जगह तीन सीटों पर जीत हासिल करना रहा। हालाँकि जिस नज़दीकी मुक़ाबले में उसने कुछ सीटें हारीं, वह ज़रूर उसके लिए चिंताजनक है।

ताज़ा ख़बरें

उत्साहहीन विपक्ष का फीका प्रचार

लोकसभा चुनावों के उलट इन उपचुनावों में सपा और बसपा अलग-अलग लड़ीं। दोनों प्रमुख विपक्षी दलों में उत्साह का अभाव दिखा और उनके बड़े नेता प्रचार तक में नहीं निकले। सपा मुखिया अखिलेश यादव महज रामपुर में चुनावी सभा करने गए तो मायावती पूरे समय महाराष्ट्र और हरियाणा में रैलियाँ करती रहीं। वैसे भी इन चुनावों में कांग्रेस का कुछ भी दाँव पर नहीं था पर प्रियंका गाँधी के पूरे यूपी की कमान संभालने के बाद उनके प्रचार में भी उतरने की उम्मीद थी जो पूरी नहीं हुई। बसपा ने पूरे चुनाव को स्थानीय नेताओं के दम पर लड़ा तो सपा ने महज ट्वीट और प्रेस रिलीज से माहौल बनाने की कोशिश की। इन सब अनुकूल हालात के बाद भी बीजेपी को अपेक्षाकृत परिणाम न मिलना पार्टी के लिए ज़रूर चिंता का सबब है। बीजेपी का दावा सभी 11 सीटें जीतने का था। कम से कम 10 सीटों पर काबिज हो जाने का दावा तो हर छोटे बड़े नेता कर रहे थे।

सपा-बसपा गठबंधन से बढ़ती बीजेपी की मुश्किल?

उपचुनावों के नतीजे साफ़ बताते हैं कि अगर यूपी में लोकसभा चुनावों की तर्ज पर सपा-बसपा गठबंधन रहा होता तो बीजेपी के लिए परेशानी ज़्यादा बड़ी होती। गठबंधन होने की दशा में शायद बीजेपी के पास कानपुर की गोविंदनगर, लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट ही आती। ज़्यादातर जगहों पर सपा-बसपा को मिले वोट बीजेपी से कहीं ज़्यादा हैं। गंगोह में जहाँ कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे स्थान पर लड़ा और मुश्किल से हारा वहाँ भी सपा-बसपा मिलकर बीजेपी को आसानी से शिकस्त दे सकती थीं। 

बीजेपी को इन उपचुनावों में कुल 35 फ़ीसदी वोट मिले हैं जबकि सपा को 22 फ़ीसदी, बसपा को 17 और कांग्रेस को 12 फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा वोट मिले हैं।

बसपा के लिए सबक़

उपचुनावों के नतीजे किसी और के मुक़ाबले सबसे बड़ा सबक़ बसपा के लिए है। लोकसभा चुनावों के बाद दंभ में आकर गठबंधन तोड़ने वाली मायावती को मुसलिम और दलित वोटों पर बड़ा भरोसा था। उपचुनावों में कई जगहों पर बसपा चौथे स्थान पर पहुँची है। गंगोह, कानपुर, जैदपुर, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़ सदर में उसके प्रत्याशी चौथे नंबर पर लुढ़क गए हैं। नतीजे साफ़ बताते हैं कि बसपा की राजनीति को कम से कम यूपी में मुसलिमों का सहारा नहीं मिलने वाला है। दलितों में भी महज जाटव वोट ही उसके पाले में आ सके हैं। जैदपुर सुरक्षित सीट पर बसपा प्रत्याशी चौथे नंबर पर रहा और उसकी ज़मानत तक जब्त हुई। उपचुनाव में सभी स्थानों पर बसपा को पहले के मुक़ाबले कम वोट मिले हैं। हालाँकि बेपरवाह मायावती ने नतीजों के बाद अजीबोगरीब बयान देते हुए कहा कि बीजेपी ने बसपा को कमज़ोर करने के लिए सपा के कुछ प्रत्याशी जितवा दिए हैं।

उत्तर प्रदेश से और ख़बरें

कांग्रेस का वोट बढ़ा और आत्मविश्वास भी

यूपी में पस्त हालत में पड़ी कांग्रेस को जीत तो किसी सीट पर नहीं मिली पर वोट ज़रूर उसे थोड़ा ढाँढस बंधाते हैं। लोकसभा चुनावों में उसे 6.5 फ़ीसदी वोट मिले थे जो इस बार बढ़कर 12.8 फ़ीसदी हो गए हैं। कांग्रेस दो स्थानों गंगोह और कानपुर में दूसरे स्थान पर रही है। पाँच जगहों पर उसे बसपा से भी ज़्यादा वोट मिले हैं। गंगोह में तो जीत आख़िरी मौक़े पर उसके हाथों से फिसल गयी। गंगोह में प्रशासन पर जानबूझकर हरवाने का इल्ज़ाम लगाते हुए प्रियंका ने ट्वीट किया और अपने नेताओं को चुनाव आयोग पर धरना देने भी भेजा।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
कुमार तथागत

अपनी राय बतायें

उत्तर प्रदेश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें