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सीएए आन्दोलन : 28 लोगों को 63 लाख का नोटिस, अदालत की अवमानना?

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोधियों के प्रति पुलिस इस तरह भेदभावपूर्ण रवैया अपनाती है कि वह अदालत के आदेश के ख़िलाफ़ काम करने से भी नहीं हिचकिचाती है। इसे इससे समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने कांग्रेस कार्यकर्ता सदफ़ ज़फर और रिटायर्ड पुलि, अधिकारी एस. आर. दारापुरी समेत 28 लोगों को नोटिस जारी कर बतौर हर्ज़ाना 63 लाख रुपए जमा कराने को कहा है।
प्रशासन का कहना है कि लखनऊ के हज़रतगंज में 19 दिसंबर को हुए आन्दोलन के दौरान सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया गया। 

निजी संपत्ति जब्त करने की चेतावनी

इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि लखनऊ के अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट के. पी. सिंह ने इन लोगों से 30 दिनों के अंदर पैसे वसूलने का आदेश जारी किया है। इसके साथ ही यह कहा गया है कि यदि इन्होंने पैसे नहीं दिए तो इनकी जायदाद जब्त कर, उसे बेच कर पैसे की उगाही की जाए, इसके लिए क़ानूनी कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए। 

पुलिस की यह कार्रवाई ग़लत और अदालत की अवमानना इसलिए है कि बीते दिनों ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में इस तरह मुआवजा वसूलने पर रोक लगा दी। 

दारापुरी और दूसरे लोगों ने वसूली के इस नोटिस को बेबुनियाद बताया है। उन्होंने कहा है कि उस प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा और सरकारी संपत्ति के नुक़सान से उन्हें किसी तरह नहीं जोड़ा जा सकता है।

यातना का आरोप

पुलिस ने इस मामले में दारापुरी, मुहम्मद शोएब और सदफ़ समेत 46 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज किया है। इन तमाम लोगों को 20 दिसंबर को गिरफ़्तार कर लिया गया था।
सदफ़ जफ़र ने आरोप लगाया था कि जेल में उन्हें यातनाएँ दी गई थीं। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया था। दारापुरी और सदफ़ के मामले में पुलिस बार-बार पूछे जाने पर भी इसके कोई सबूत नहीं दे पाई है कि ये लोग उस हिंसा से जुड़े हुए थे। 

इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद ज़िला प्रशासन ने कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी को यह कहते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि क्यों न उनसे 1.04 करोड़ रुपये वसूले जाएँ। यह वसूली शहर में 29 जनवरी से चल रहे नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से जुड़ी है। नोटिस के अनुसार, प्रदर्शन के दौरान पुलिस कर्मियों की तैनाती को लेकर हर रोज़ के आधार पर वसूली की यह राशि तैयार की गई है। 

क्या है मामला?

उत्तर प्रदेश में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हिंसा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एलान किया था कि इनमें हिस्सा लेने वालों के घर, मकान, ज़मीन, दुकान ज़ब्त कर नुक़सान की भरपाई की जाएगी। मुख्यमंत्री के इस एलान के बाद ज़िलों में अधिकारियों में ज़ुर्माना वसूलने की नोटिसें जारी करने की होड़ लग गयी थी।
मुख्यमंत्री के आदेश का पालन करते हुए ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने न केवल नोटिस लोगों के घरों पर लगा दिया, बल्कि उन्हें सार्वजनिक भी कर दिया। ऐसे प्रदर्शनकारी जिनके ख़िलाफ़ पुलिस हिंसा में लिप्त होने का आरोप पत्र भी न पेश कर पायी थी, उनके ख़िलाफ़ भी लाखों रुपये वसूली का नोटिस जारी कर दिया गया है।
इस संबंध में दायर याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट नें अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार को एक महीने के भीतर काउंटर एफ़ीडेविट जमा करने के निर्देश दिए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस सौरभ श्याम के खंडपीठ ने कानपुर निवासी मुहम्मद फ़ैजान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया।

क्या कहना है प्रशासन का?

लखनऊ ज़िला प्रशासन ने कहा है कि पुलिस की रिपोर्ट के आधार वसूली के नोटिस भेजे गए हैं। एडीएम सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘नए कमिश्नरी प्रणाली के तहत पुलिस को मजिस्ट्र का अधिकार प्राप्त है, इसलिए उन्होंने कहा है कि अभियुक्तों से पैसे वूसले जाएं।’

नोटिस का जवाब

मुहम्मद शोएब और दारापुरी ने नोटिस का जवाब दिया है। उन्होंने जवाब में कहा है कि चूँकि वे उस घटना के समय नज़रबंद थे, लिहाज़ा, वे सरकारी संपत्ति को हुए नुक़सान के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकते। 

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील संजय हेगडे ने कहा कि संपत्ति पर कब्जा अमूमन किसी आपराधिक मामले की सुनवाई के बाद ही किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह आदेश क़ानूनी रूप से संदाहस्पद है और इस चुनौती दी जा सकती है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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