मामला क्या है?
इस विवाद की जड़ में क्या यही कंपनी है? इस कंपनी पर बीते बरस ईडी और इनकम टैक्स ने भी छापा मारा था। इन छापों के दौरान कोलकाता पुलिस ने इन एजेंसियों को सुरक्षा कवच प्रदान किया था। उसके बाद बहूबाज़ार थाने में दर्ज एक मामले में कोलकाता पुलिस ने ख़ुद भी इस कंपनी पर तीन हफ़्ते पहले छापेमारी की थी।
इस कंपनी का परिचय इस तथ्य से मिलाकर पढ़ना प्रासंगिक होगा कि इसने नागेश्वर राव की पत्नी एम. संध्या को गुंटूर ज़िले में एक भूखंड ख़रीदने के लिये 25 लाख रुपये का कर्ज दिया था। नागेश्वर राव की पत्नी संध्या ने इस कंपनी को 'इन्वेस्टमेंट' के नाम पर 60 लाख रुपये दिये थे। कोलकाता पुलिस का कहना है कि संध्या इस कंपनी से वेतन भी लेती रही थीं। ख़ुद नागेश्वर राव ने 30 अक्तूबर 2018 को एक प्रेस नोट जारी कर इस मामले में सफ़ाई दी थी।
एंजेला मर्केंटाइल पर की गई छापेमारी में बाक़ी दूसरे लेनदेन के साथ संध्या के इस लेनदेन की जाँच भी शामिल थी। बताया जाता है कि रजिस्ट्र्रार आफ कंपनीज इस कंपनी को बेनामी कंपनी समझ कर जाँच कर रहा है।
इस कंपनी पर नोटबंदी के तुरंत बाद बहुत बड़ी मात्रा में पुराने नोट्स की अदल-बदल के आरोप भी हैं।ऐसा संभव है कि राजनीतिक आक़ाओं की आकांक्षाओं को सहलाने के नाम पर निजी खुंदक निबटाने का एडवेंचर उल्टा पड़ गया हो? राव को एंजेला मर्केंटाइल पर छापों के मामले में कोलकाता पुलिस की भूमिका पर पूरा शक था।
नागेश्वर राव अब सीबीआई के अंतरिम निदेशक नहीं हैं, वह वापस अतिरिक्त निदेशक रह गए हैं।सीबीआई समेत देश की ख़ुफ़िया और वित्तीय ख़ुफ़िया सेवाओं के वरिष्ठ लोगों के अंतरंग व्हाट्सऐप ग्रुप में पूछा जा रहा है कि जिस अफ़सर ने ज्वाइंट डायरेक्टर सीबीआई (चेन्नई ज़ोन) रहते हुए एचटीएल लिमिटेड की 400 करोड़ रुपये से ज्यादा क़ीमत की जमीन वीजीएन डेवलपर्स ग्रुप को सिंगल पार्टी टेंडर में पौने 275 करोड़ में सौंपने के मामले में सर्च तो दूर, दो बरस तक फ़ाइल की धूल तक न झड़ने दी,उसी ने अंतरिम सीबीआई निदेशक के रूप में अपनी सेवा के आख़िरी दिन एक दूसरे आई पी एस अफ़सर (पुलिस कमिश्नर ) के घर चालीस आदमी छापा मारने कैसे भेज दिए ?
नागेश्वर राव उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के बेहद क़रीबी होने की वजह से भी मशहूर हैं। विवेकानन्द फ़ाउंडेशन और कई संघी नेताओं से उनका मेल-मिलाप भी सबको पता है। ओड़ीशा में तैनाती के दौरान उन्हें उनके संघी स्टाइल के भड़काऊ बयानों पर जवाबदेह भी होना पड़ा था।
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने नागेश्वर राव से इस सब पर स्पष्टीकरण माँगे। राव गोलमोल जवाब देते रहे। नतीजतन आलोक वर्मा ने राव को सीबीआई से वापस ओड़ीशा कैडर में भेजने की सिफ़ारिश की। बिना सीवीसी की सहमति के वर्मा राव को उड़ीसा भले न भेज सके, पर उन्होंने राव को चेन्नई से हटाकर चंडीगढ़ भेज दिया और वीजीएन प्रकरण की जाँच सीबीआई के बैंकिंग फ्रॉड सेक्शन में बेंगलुरू ट्रांसफ़र कर दी। ये सारे तथ्य उन दो याचिकाओं का हिस्सा हैं, जिन्हें सीबीआई के उन अफ़सरों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है, जिनका तबादला आलोक वर्मा का क़रीबी मानकर अंतरिम निदेशक बनते ही राव ने अंडमान निकोबार कर दिया था।
नागेश्वर राव पर ओड़ीशा की एक निचली अदालत में एक जायदाद संबंधी विवाद में मुक़दमा चला। बाद में रसूखदार होने के नाते वे मुद्दई से सुलह कर मुक़दमा बंद करवाने में कामयाब ज़रूर हो गये, पर मुक़दमे से यह सवाल तो उठता है कि आख़िर राव सीबीआई जैसी एजेंसी के लायक़ हैं या नहीं?
ओड़ीशा में अपने कैडर में वह अग्निशमन विभाग के आला ओहदे पर तैनात थे। वहाँ राव पर पाँच हज़ार कर्मचारियों की पीली चमकीली वर्दी की ख़रीद में तीन करोड़ रुपये की हेराफेरी का आरोप लगा था।
इधर अंतरिम निदेशक सीबीआई के दौर के अपने रोल में मनमाने ढंग से थोक में सीबीआई अफ़सरों का तबादला करने के कारण राव एक नई मुसीबत में पड़ गये। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए सीबीआई के एक ऐसे अफ़सर का भी तबादला कर दिया था, जो बिहार के 'शेल्टर होम' मामले की जाँच के इनवेस्टीगेटिंग आफ़िसर थे और जिसकी मानीटरिंग सुप्रीम कोर्ट कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले ही राव को अवमानना का नोटिस देते समय उन पर मौखिक टिप्पणी की थी, 'आपको भगवान बचाए।'
क्या नये और दो साल के लिए सर्वशक्तिमान सीबीआई निदेशक तथ्यों का संज्ञान लेने का संवैधानिक दायित्व निभाएँगे?
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