आईएसआईएस के आख़िरी लोग थे
कुछ अमेरिकी सैनिक टुकड़ियाँ और आकाश में उड़ रहे टोही विमान इन्हें कवर दे रहे थे। यूरोप के किसी सेंट्रल पार्क जितने इलाक़े में खुले आसमान के नीचे ध्वस्त टेम्परेरी रिहाइशों में से झाँकते आईएसआईएस के ये आख़िरी लोग थे। बघूज़ नामक सीरियाई गाँव के बाहर का यह वह दृश्य था, जहाँ न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए पहुँचे दो अख़बारनवीसों के सिवा सिर्फ़ अमेरिकी सैनिक और रेगिस्तान ही उपलब्ध था। इन अखबारनवीसों को भी मीलों दूर से दूरबीन के जरिये ही कार्रवाई देखने की अनुमति थी।
इस्लामी राज्य बनाने के लिए लड़े थे
कुर्द लड़ाकों ने औरतों, बच्चों की अलग कतारें बनवा दी थीं और मर्दों की अलग। मर्दों को लगभग वस्त्रहीन करके फ़िंगरप्रिंट्स वग़ैरह लिए जा रहे थे जिससे उनकी शिनाख़्त हो सके। इन आख़िरी लोगों में ज़्यादातर बाहरी देशों (यूरोप, कनाडा, अफ़्रीका) के नागरिक थे। ये कैलिफ़ैट बनाने के लिए सीरिया में लड़ने आए थे। इनमें से कोई भी स्थानीय गाँव बघूज़ का निवासी नहीं था। कुछ तुर्क थे, कुछ इराकी और बाक़ी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के।
किसी तरह रखा ख़ुद को जिंदा
कुर्द लड़ाकों की जाँच के बाद काफ़िला क़रीब पांच सौ मीटर दूर अमेरिकी सैनिकों के पास पहुँचा जिन्होंने फिर से जाँच की, दुबारा फ़िगर प्रिंट्स, फ़ोटोग्राफी हुई, मेडिकल जाँच भी हुई, खाने के कुछ पैकेट भी बाँटे गए क्योंकि आईएसआईएस के इन लोगों ने हफ़्तों यहाँ की स्थानीय वनस्पति को उबाल कर किसी तरह अपने को जिंदा रखा था। तमाम नवजात शिशु और स्त्रियाँ और बच्चे-बूढ़े पहले ही दम तोड़ चुके थे।
रुक्मिणी कॉलिमची नामक अमेरिकी पत्रकार ने अपने ट्विटर हैंडल पर जारी की गई एक स्टोरी में लिखा कि कई औरतों ने उन्हें बताया कि वे लोग पत्तियाँ उबाल कर पीने को मजबूर थे क्योंकि खाने को कुछ नहीं था।
टोरंटो के लॉरेंस हाइट्स की रहने वाली दो बच्चों की 28 वर्षीय माँ दुरे अहमद ने बताया कि वह अल्बर्टा की दूसरी कैनेडियन स्त्री के साथ कैलिफ़ैट बनाने आई थी। उसने अपने स्वेटर काट कर बच्चों के डायपर बनाये थे। उन्होंने एक स्थानीय वीड उगा ली थी जिसकी पत्तियों को खाकर वे जिंदा थीं।
रुक्मिणी ने लिखा कि सबसे दर्दनाक वह पल था जब सुरक्षा कारणों से समय पर मेडिकल सपोर्ट न मिल पाने के कारण अमेरिकी सैनिकों के पास पहुँचे औरतों, बच्चों के समूह में से 6 बरस के एक बच्चे ने आख़िरी साँस ली। वह बच्चा मोर्टार हमले में घायल हो गया था।
बगदादी को मान लिया था ख़लीफ़ा
एक बूढ़ा अपने बेटे के साथ मिला जिसके परिवार के बीस लोग पिछले महीने एक हवाई हमले में मारे गए थे। वह इराक़ के अनबार इलाके से था। उसे लगा था कि बगदादी ही सारे मुसलमानों का असली ख़लीफ़ा है। बाद में वह रोने लगा कि उसके इस बयान से उसे आईएसआईएस वाला न मान लिया जाए पर वह नहीं बता सका कि वह और उसका परिवार सीरिया के इस रेगिस्तान में आईएसआईएस के क़ब्जे वाले इलाक़े में कैसे और क्या करने आया था?
आईएसआईएस, आइसिल, दाइश आदि नामों से चर्चित इस आतंकी प्रयोग के सिरियन चैप्टर का यह हालिया अंत है पर वह विचार क़ायम है, जिससे आईएसआईएस बनता है।
अमेरिकी सेनाओं के सीरिया छोड़ने का फ़ैसला हो चुका है। ट्रम्प अपनी पीठ ठोक चुके हैं और इस प्रायोजित पागलपन में मारे गए हज़ारों लोगों की लाशें चील खा चुकी हैं। कुछ को आख़िरी सलाम मिला और तमाम इससे भी महरूम रह गए।
अब दुनिया इस पर बात करेगी और सीरिया के भविष्य के फ़ैसले लेगी। समझना मुश्किल है कि जब चीजें आख़िर में बातचीत से ही हल होती हैं तो जंग होती क्यों है?
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