अफ़ग़ानिस्तान के हालात को लेकर गुरूवार को केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के हालात गंभीर हैं और भारत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को वहां से निकालने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के ताज़ा हालात के बारे में भी बैठक में मौजूद नेताओं को जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान ने दोहा में किए गए अपने वादे को नहीं निभाया। दोहा में अमेरिका और तालिबान के नेताओं के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे और तालिबान ने इसे निभाने का वादा किया था।
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में अब तक 15 हज़ार लोग वहां से बाहर निकलने के लिए भारत की हेल्प डेस्क से संपर्क कर चुके हैं।
बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, आनंद शर्मा, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी सहित कई दलों के नेता मौजूद रहे। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का राज कायम होने के बाद भारत का उसे लेकर क्या स्टैंड रहेगा, ये सामने आना अभी बाक़ी है।
‘देवी शक्ति ऑपरेशन’
भारत अब तक 800 लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से निकाल चुका है। इसे ‘देवी शक्ति ऑपरेशन’ का नाम दिया गया है। तालिबान का राज आने के बाद से ही वहां के लोगों में दहशत का माहौल है और वे लगातार मुल्क़ से पलायन कर रहे हैं। इस वजह से एयरपोर्ट पर बीते दो हफ़्तों से जबरदस्त भीड़ है। अमेरिकी सैनिकों ने हामिद करज़ई एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लिया हुआ है।
मुश्किल में है सरकार
अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर केंद्र सरकार दबाव में है कि वह करे तो क्या करे। क्या वह तालिबान से बात कर उसे मान्यता दे, अगर वह ऐसा करती है तो फिर आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ने वाले स्टैंड पर उसे देश के भीतर ही सवालों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि तालिबान अब अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने जा रहा है लेकिन भारत सरकार तालिबान को आतंकवादी संगठन मानती है, ऐसे में बड़ी मुश्किल उसके सामने है कि वह क्या क़दम उठाए।
देखिए, इस मसले पर चर्चा-
हम जानते हैं कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 3 अरब डॉलर का निवेश किया है। ताज़ा दौर में भी वह वहां कई बड़े प्रोजेक्ट चला रहा है। हालांकि तालिबान ने उससे कहा है कि वह अपने प्रोजेक्ट्स पर काम जारी रखे लेकिन यह तभी होगा जब भारत सरकार उससे बात करे क्योंकि अब वह आधिकारिक रूप से वहां सरकार बनाने जा रहा है और दुनिया के ताक़तवर मुल्क़ों में से एक चीन ने उसे मान्यता दे दी है।
पाकिस्तान उसके समर्थन में है और चीन-पाकिस्तान और तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान भारत के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। ऐसे में सरकार से बार-बार पूछा जाएगा कि वह अपना स्टैंड साफ करे कि वह तालिबान से बात करेगी या नहीं?
भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर उसकी पैनी नज़र है और उसका पूरा ध्यान अभी वहां से भारतीयों को निकालने पर है। लेकिन उसके बाद तो केंद्र सरकार को इस बारे में फ़ैसला लेना ही होगा कि आख़िर तालिबान से बात की जाए या नहीं। इस भंवर से निकलने के लिए मोदी सरकार को विपक्षी दलों के सुझावों की ज़रूरत है और इसीलिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है।
सरकार पसोपेश में है कि वह अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर क्या स्टैंड ले। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री जयशंकर इस मामले में हालात को भांपने में पूरी तरह फ़ेल रहे।
विपक्ष से नहीं करती बात!
मोदी सरकार पर यह भी आरोप लगता है कि वह विपक्षी दलों को अहमियत नहीं देती। ख़ुद से फ़ैसला कर क़दम उठा लेती है। हालांकि जब वह बुरी तरह घिर जाती है, तब उसे विपक्ष की याद आती है। जैसे- नोटबंदी, कोरोना की पहली लहर में लॉकडाउन लगाने जैसे बड़े मसलों पर उसने विपक्ष से बात नहीं की और प्रधानमंत्री ने टीवी के सामने आकर इनका एलान कर दिया लेकिन गलवान में हुए घटनाक्रम के बाद जब वह मुश्किल में थी तो उसने विपक्षी दलों को बुलाया था, वैसा ही इस बार भी हुआ है।
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