डीके शिवकुमार
कांग्रेस - कनकपुरा
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पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान में एक बार फिर अहमदिया समुदाय के लोगों पर ज़ुल्म की कहानी सामने आई है। इसलाम को ही मानने वाले अहमदिया समुदाय के लोग इन दिनों पेशावर छोड़कर जाने को मज़बूर हैं। इन लोगों को अपनी संपत्तियों को बेचना पड़ा है और महफूज़ जगह की तलाश में वे पाकिस्तान में दूसरी जगहों पर ठिकाना बना रहे हैं।
ऐसा इसलिए है कि क्योंकि पेशावर में उनकी जान को हर वक़्त ख़तरा है। 22 करोड़ की आबादी वाले मुल्क़ पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों की संख्या क़रीब 40 लाख है।
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों के लिए जीना बेहद मुश्किल है। वे कट्टरपंथियों के ज़ुल्म का शिकार होते रहे हैं और कई ऐसे वाकये हुए हैं जब इस समुदाय के लोगों को ईशनिंदा के नाम पर क़त्ल किया गया है।
पेशावर अफ़ग़ानिस्तान से लगता हुआ इलाक़ा है और यहां पर बड़ी संख्या में कट्टरपंथियों के मदरसे हैं। इन मदरसों के लोग इसलाम की व्याख्या अपने हिसाब से करते हैं और उसे न मानने वाले उनके सितम का शिकार होते हैं।
पाकिस्तान में अहमदियों के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर नफ़रती अभियान लंबे वक़्त से चल रहा है और हालात ऐसे हैं कि वे खुलकर अपनी आस्था के बारे में बात नहीं कर सकते।
कई बार अहमदियों की मसजिदों पर हमला किया जा चुका है और कट्टरपंथियों ने इसका जश्न भी मनाया है।
कट्टरपंथियों का कहना है कि अहमदिया समुदाय के लोग मुसलमान नहीं हैं बल्कि काफ़िर हैं। इनका बायकॉट किया जाए और इनसे किसी तरह का लेन-देन न किया जाए। इस समुदाय के व्यापारियों के बायकॉट करने के कई वाकये पाकिस्तान में हो चुके हैं। अहमदियों को इस बात की भी इजाजत नहीं है कि वे दूसरे समुदाय की मसजिदों के अंदर नमाज़ अदा कर सकें।
अहमदिया समुदाय के संस्थापक मिर्जा ग़ुलाम अहमद थे और इनका जन्म 1835 में पंजाब के क़ादियान इलाक़े में हुआ था। इनकी बातों को मानने वालों को अहमदिया के अलावा क़ादियानी भी कहा जाता है।
पाकिस्तान में सुन्नी समुदाय की आबादी ज़्यादा है और वहां अहमदियों के साथ ही शिया और हजारा समुदाय पर भी ज़ुल्म की ख़बरें आती रहती हैं।
1973 तक पाकिस्तान में अहमदियों को मुसलमान ही माना जाता था। लेकिन 1974 के बाद उनके ख़ुद को मुसलमान कहने पर रोक लगा दी गई। 1974 में तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने एक क़ानून बनाकर अहमदियों को ग़ैर-मुसलमान करार दे दिया। 1974 में ही पाकिस्तान में अहमदियों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। इसके बाद 1984 में राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक़ ने भी कई तरह की पाबंदियां अहमदियों पर लगा दीं।
बहरहाल, पेशावर छोड़कर जा रहे अहमदिया समुदाय के लोग दूसरी जगहों पर भी अपनी पहचान छिपाकर रहने को मज़बूर हैं। उन्होंने औने-पौने दामों में अपनी संपत्तियों को बेचा है और वे नहीं जानते कि उन पर हो रहे ये ज़ुल्म कब ख़त्म होंगे।
नए पाकिस्तान का नारा देकर हुक़ूमत में आए इमरान ख़ान के राज में अहमदियों पर ज़ुल्म बढ़े हैं। यह बात अहमदिया मुसलिम जमात ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को बीते महीने लिखे एक पत्र में कही है। पत्र में लिखा है कि इमरान की हुक़ूमत ने अहमदिया समुदाय से जुड़ी 20 से ज़्यादा वेबसाइट को बंद कर दिया है।
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